विजीलैंस का दुरुपयोग

पंजाब में आम आदमी पार्टी की नीतियों तथा उसकी सरकार की कारगुज़ारी को देख कर लोगों में यह धारणा दृढ़ होती जा रही है कि यह पार्टी भाजपा की ‘बी’ टीम है। अभिप्राय यह कि उसकी बहुत-सी नीतियां तथा रणनीतियां भाजपा से मिलती-जुलती हैं। इस संबंध में बड़ा उदाहरण यह दिया जाता है कि जिस तरह केन्द्र में भाजपा की सरकार अपने विपक्षी दलों के नेताओं, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष राय रखने वाले पत्रकारों तथा बुद्धिजीवियों को तंग-परेशान करने के लिए भ्रष्टाचार या देश-द्रोह के आरोपों के तहत पुलिस, सी.बी.आई., आयकर विभाग तथा एन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट (ई.डी.) का उपयोग करती है, उसी तरह पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई करने के बहाने अपने विरोधी राजनीतिक नेताओं, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष मीडिया को दबाने तथा कुचलने के लिए विजीलैंस विभाग का चयनित रूप में उपयोग करती है।
चाहे मुख्यमंत्री भगवंत मान तथा उनकी सरकार ये दावे करते हैं कि वे पिछली सरकारों के समय हुये भ्रष्टाचार को दृष्टिगत रखते हुये ही यह कार्रवाई कर रहे हैं, परन्तु स्पष्ट एवं कड़वा सच यह है कि इस सरकार के एक वर्ष से अधिक के कार्यकाल में किसी भी विभाग में भ्रष्टाचार नहीं रुका तथा मौजूदा समय में भी लोगों की धारणा यह है कि कोई भी काम पैसे दिये बिना नहीं होता परन्तु सरकार का विजीलैंस विभाग ज्यादातर विपक्षी पार्टियों के नेताओं की ही भिन्न-भिन्न मामलों में जांच-पड़ताल तथा धर-पकड़ कर रहा है। सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्रियों तथा विधायकों पर जब गम्भीर आरोप लगते हैं तो विजीलैंस विभाग पहले तो ज्यादा समय तक चुप्पी धारण किए रखता है, तथा जब सार्वजनिक दबाव में कार्रवाई करने हेतु विवश भी होता है तो आधे-अधूरे मन से ही कार्रवाई करता दिखाई देता है। दूसरी ओर विपक्षी दलों के नेताओं को बार-बार प्रश्न भेज कर तथा बार-बार पेश होने के लिए बुला कर उन्हें तंग-परेशान किया जाता है तथा उनकी छवि धूमिल की जाती है ताकि आगामी समय में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों तथा लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को राजनीतिक तौर पर लाभ पहुंचाया जा सके। आम आदमी पार्टी की सरकार की नीतियों अथवा उनके मंत्रियों एवं विधायकों के भ्रष्टाचार या अनियमितताओं के विरुद्ध यदि कोई विपक्षी नेता अधिक बोलता है तो उसके विरुद्ध कोई पुराना मामला निकाल कर या किसी अन्य से शिकायत करवा कर मामला दर्ज करवा दिया जाता है। अगर कुछ और न हो सके तो आय से अधिक सम्पत्ति होने का नोटिस जारी कर दिया जाता है। इस प्रकार विचाराधीन आया विपक्षी नेता तथा उसका परिवार वित्तीय स्रोतों तथा अपनी सम्पत्ति का रिकार्ड एकत्रित करता एवं विजीलैंस की पेशियां भुगतता फिरेगा तो डर कर चुप हो जायेगा। दोनों हालात में लाभ सत्तारूढ़ पार्टी को होगा।
पिछले समय में सरकार के निर्देशों के अनुसार विजीलैंस विभाग ने पहले पूर्व कांग्रेसी मंत्रियों को निशाना बनाया था। उसके बाद कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आये पूर्व कांग्रेसी मंत्रियों को निशाना बनाया गया। अब विजीलैंस विभाग द्वारा जानबूझ कर यह समाचार प्रकाशित करवाये जा रहे हैं कि आने वाले समय में अकाली-भाजपा सरकार में मंत्री रहे अकाली नेताओं को विजीलैंस अपना निशाना बनाएगी। विजीलैंस की इस योजनाबंदी को प्रदेश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में अच्छी तरह समझा जा सकता है। पिछले दिनों सिख गुरुद्वारा एक्ट-1925 में, आम आदमी पार्टी की सरकार ने विधानसभा में अपने भारी बहुमत के बल पर गुरबाणी के प्रसारण संबंधी एक धारा 125-ए शामिल करके, संशोधन किया है। इसके विरुद्ध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और शिरोमणि अकाली दल में सख्त नाराज़गी पाई जा रही है। शिरोमणि अकाली दल के कई नेताओं द्वारा इस संदर्भ में मोर्चा लगाने के ऐलान भी किए गए हैं। इसके लिए सरकारी एजेंडा के मुताबिक शिरोमणि अकाली दल के नेताओं को भयभीत करना बहुत ज़रूरी है। इसी बात के दृष्टिगत विजिलैंस विभाग ने अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर यह खबर जारी करवाई है कि आने वाले दिनों में अब बारी अकाली नेताओं की आएगी।
अपने राजनीतिक मालिकों के आदेश मुताबिक ही विजिलैंस विभाग ने आज़ाद और निष्पक्ष मीडिया की छवि खराब करने और उसको तंग और परेशान करने का प्रौजैक्ट भी अपने हाथ में लिया हुआ है, ताकि सत्तारूढ़ शासकों की ़गलत और पंजाब को नुक्सान पहुंचाने वाली नीतियों की मीडिया में आलोचना न हो सके और ऐसे मीडिया का मूंह बंद किया जा सके।जहां तक भ्रष्टाचार का संबंध है, हमारे देश में भी और हमारे राज्य में भी यह एक बड़ा मुद्दा है। हम इस बात के पक्ष में हैं कि यदि किसी नेता या किसी अन्य शहरी नागरिक के खिलाफ भ्रष्टाचार या किसी अन्य गम्भीर आरोप के ठोस सबूत हैं तो उसके विरुद्ध कार्रवाई ज़रूरी होनी चाहिए परन्तु यह कार्रवाई कानून के अनुसार लोकायुक्त जैसी निष्पक्ष और आज़ाद संस्था स्थापित करके तथा पुलिस विभाग के विजिलैंस विंग को उसके अधीन करके होनी चाहिए। भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई सीधे तौर पर राजनीतिक शासकों या उनके अधीन काम कर रहे पुलिस विभाग के एक विंग के ज़रिये नहीं होनी चाहिए। लोकायुक्त तक आम लोगों की भी पहुंच होनी चाहिए और वह इतना सामर्थ्यशाली होना चाहिए कि सत्ताधारियों के खिलाफ भी शिकायत मिलने पर कार्रवाई कर सके। ऐसी किसी शक्तिशाली संस्था की अनुपस्थिति में की गई कार्रवाई कभी भी आज़ाद और निष्पक्ष नहीं हो सकती। इसी कारण ऐसी कार्रवाई पर प्रश्न उठने लाज़िमी हैं। बहुत से लोग ऐसी कार्रवाई को बदला लेने की भावना के अधीन या सत्ताधारी राजनीतिक शासकों को लाभ पहुंचाने के लिए की जाने वाली कार्रवाई के रूप में देखते हैं और ऐसी कार्रवाइयां बहुत बार राजनीतिक मतभेदों को दुश्मनी में भी बदल देती हैं।
नि:संदेह राज्य में चल रहा यह पूरा घटनाक्रम लोकतंत्र, शहरी आज़ादी और प्रैस की स्वतंत्रता के लिए बहुत घातक है। राजनीतिक पार्टियों, मानवाधिकार संगठनों और सचेत नागरिकों को इसके विरुद्ध संगठित होकर आवाज़ बुलंद करनी चाहिए, ताकि राज्य में एमरजैंसी की तरह पैदा किए गये भय और दहशत के माहौल को खत्म किया जा सके।