अपनी त्वचा को टुकड़ों में गिराने वाला - भूत मेंढक

दक्षिण अफ्रीका के कुछ भागों में एक ऐसा मेंढक पाया जाता है, जिसके पेट की त्वचा सफेद होती है एवं यह इतनी पतली होती है कि इसके पाचन अंग साफ दिखाई देते हैं। इसीलिए इसे भूत मेंढक कहते हैं। 
भूत मेंढक की तीन जातियां हैं। पहली जाति टेबल पर्वत पर, दूसरी जाति केप प्रांत में और तीसरी जाति नाटाल एवं ट्रांसवाल में पाई जाती है। भूत मेंढक सरलता से दिखाई नहीं देता। यह दिन का अधिकांश समय जमीन के नीचे के छिद्रों में, पत्थरों के नीचे, चट्टानों की दरारों अथवा गुफाओं आदि में व्यतीत करता है। इसके साथ ही यह काफी समय पानी के भीतर भी रहता है। भूत मेंढक रात्रि के समय बाहर निकलता है और पहाड़ी चट्टानों अथवा वृक्षों आदि पर चढ़ जाता है। यह ऐसे दुर्गम स्थानों पर रहता है कि दिन अथवा रात किसी भी समय इसका पीछा नहीं किया जा सकता।
भूत मेंढक की शारीरिक संरचना अन्य मेंढकों से काफी अलग होती है। इसके शरीर के ऊपर का भाग हरा होता है एवं इस पर लाल रंग का एक जाल सा होता है। पेट की त्वचा सफेद पारदर्शी होती है, जिससे भीतर के अनेक अंग साफ दिखाई देते हैं। भूत मेंढक का सिर, शरीर की तुलना में अन्य मेंढकों की अपेक्षा बड़ा और चपटा होता है। प्राय: मेंढकों के गर्दन नहीं होती, किंतु भूत मेंढक के छोटी सी गर्दन होती है। इसके पैर असामान्य रूप से लंबे होते हैं तथा चारों पैरों की उंगलियों के अंत में चूषक डिस्क होती है। भूत मेंढक की उंगलियों की बनावट वृक्ष मेंढक के समान होती है, हालांकि यह वृक्षों पर अधिक नहीं चढ़ता है। टेबल पर्वत पर पाए जाने वाले भूत मेंढक की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसके आगे के पैरों की भीतरी त्वचा और उंगलियों की पोरों में छोटे-छोटे हुक होते हैं। इसी प्रकार के हुक नीचे के जबड़ों में बाहर की ओर, ऊपर के जबड़ों में तथा थूथुन में भी होते हैं। जीव वैज्ञानिकों का मत है कि इन्हीं हुकों की सहायता से यह जलस्रोतों के किनारे की दुर्गम एवं सपाट चिकनी चट्टानों से लटका रहता है। कुछ भूत मेंढकों के शरीर की त्वचा में कांटे होते हैं। ये विभिन्न प्रकार की झाड़ियों पर चढ़ जाते हैं और दिन के समय इन्हीं झाड़ियों में रहना अधिक पसंद करते हैं।
भूत मेंढक की आंखें सभी मेंढकों से अलग होती हैं। इसकी पुतलियां हीरे की तरह होती हैं। उनमें सूर्य का तेज़ प्रकाश भीतर नहीं जा पाता, जिससे यह दिन में भी देख सकते हैं। ऐसे जीव को रात के समय भी सब कुछ दिखायी देता है। मेंढक समय-समय पर निर्मोचन करते हैं। दूसरे मेंढक निर्मोचन करके एक ही बार में अपनी त्वचा गिराकर उसे खा जाते हैं। किंतु भूत मेंढक अपनी त्वचा को टुकड़ों में गिराता है और गिरायी हुई त्वचा को कभी नहीं खाता। इसका प्रमुख भोजन छोटे मोटे कीड़े मकोड़े हैं। भूत मादा मेंढक एक बार में 25 से 35 तक अंडे देती है। सामान्यत: मादा भूत मेंढक किसी नदी के किनारे या पानी की सतह से कुछ ऊपर किसी छेद में अंडे देती है। इसका टेडपॉल चपटा होता है और यह अपने चूषकों की सहायता से चट्टानों की सतह पर उगने वाली काई को खाता रहता है।

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