खाद्य मंत्री का भाषण

केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रोफेसर गिरधारी लाल एक जागरुक सांसद तो थे ही, साथ ही नए-नए खाद्य मंत्री के पद को भी बखूबी निभा रहे थे। जनता को उन पर बड़ा विश्वास था। खाद्य समस्या का समाधान वे चुटकी बजाते कर देते थे, लोगों को राशन में गेहूं-चावल आदि खाद्यान्न उचित मूल्य पर मिल रहे थे। इसीलिए पार्टी और प्रधानमंत्री उनसे प्रसन्न थे।
एक बार देश में कम वर्षा हुई, मानसून दगा दे गया। गेहूं का उत्पादन अत्यंत सीमित हुआ। अन्य देशों से आयात करने की मांग उठी, किन्तु उसके आने में भी समय लगता। अत: वे देश में जहां भी जाते, अपने भाषणों में जनता से महाराणा प्रताप के जीवन से प्रेरणा लेने को कहते। आपको प्रताप जैसे वीर के जीवन से बहुत कुछ सीखना चाहिए। उनकी वीरता, देश प्रेम, स्वाभिमान, धैर्य और भूखे रहकर भी अकबर के सामने दासतावश सिर न झुकाने से प्रेरणा लेनी चाहिए और मौका पड़ने पर अन्न के विकल्प के रुप में अन्य पदार्थों को भी अपनाना चाहिए।
खाद्यमंत्री महोदय के पीए ने एक दिन उनसे पूछा-‘सर, आप हर जगह जनता से एक ही बात कहते हैं कि महाराणा प्रताप के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए, आखिर बात क्या है ? आपके इन विशेष भाषणों का राज क्या है ?’
खाद्यमंत्री महोदय ने अपने पीए को राज की एक बात बतायी कि मैं बहुत ही प्रैक्टिकल खाद्यमंत्री हूं। इस बार गेहूं का उत्पादन देश में बहुत कम हुआ है। दूसरे देशों से जो गेहूं आएगा, वह महंगा पड़ेगा और जनता की क्रयशक्ति के अनुकूल नहीं होगा। अब आगे चलकर जनता को घास की रोटियां खाने में कोई परेशानी नहीं होगी। भविष्य में गेहूं का उत्पादन वैसे ही बढ़ती आबादी के कारण भी अत्यंत सीमित होगा और बढ़ती हुई घोर महंगाई के कारण हर किसी को इसे खरीद कर खाने की सामर्थ्य नहीं होगी। जब महाराणा प्रताप जैसे वीर प्रतापी राजा मुश्किलों में घास की रोटियां खा सकते थे, तो क्या हम और हमारी जनता इसे खा नहीं सकती।
खाद्यमंत्री के इस प्रैक्टिकल विचारों को सुनकर उनका पीए गद्गद् हो गया कि आपको निश्चित ही प्रधानमंत्री का पद संभालना चाहिए।

(सुमन सागर)