900 कारीगर, 10 लाख घंटे, 20,000 किलो ऊन अद्भुत है संसद में बिछी इस कालीन की कथा

नये संसद भवन के फर्श पर बिछी कालीन खास है। उत्तर प्रदेश के भदोही शहर में बनी यह रंग बिरंगी हैंड नॉटेड कालीन, जो कभी मुगलों के दरबार के लिए खास तौर पर बनती थी, अब नयी संसद के फर्श पर अपनी खूबसूरत मौजूदगी दर्ज करा रही है। इसे सैकड़ों मजदूरों ने अपने हाथ से बुना है। इसके बनने की अपनी कहानी भी कम रोमांचक नहीं है। इस कालीन को बनाने के लिए न्यूजीलैंड से 20,000 किलो ऊन मांगायी गयी है। यह ऊन न्यूजीलैंड से इसलिए मांगायी गयी, क्योंकि न्यूजीलैंड की यह ऊन अपनी लंबाई, चमक और मजबूती के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसीलिए भारत की नयी संसद के लिए इसे न्यूजीलैंड के उत्तरी और दक्षिण क्षेत्रों से आयात किया गया। न्यूजीलैंड से मंगाकर बीकानेर की एक कताई मिल में इससे धागे तैयार हुए। फिर इन धागों को भदोही भेजा गया, जहां कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) की प्रशासनिक समिति के पूर्व सदस्य और कालीन कारोबारी संजय गुप्ता की देख-रेख में यह कालीन तैयार हुई। यह कालीन जो कि 6000 स्क्वायर यार्ड से भी ज्यादा को कवर करती है, को सात महीने के अंदर तैयार किया गया।  जीआई टैग वाली इस कालीन को 300 से ज्यादा टुकड़ों में करके साल 2022 में दिल्ली भेजा गया। भदोही के कालीन निर्यातक संतोष गुप्ता और युवा कालीन कारोबारी नेहा राय के मुताबिक नई संसद में इस कालीन के बिछने के बाद भदोही को इस विश्व प्रसिद्ध उत्पादन के नक्शे में और मजबूती से बल मिला है। 11 गुणा 8 मीटर साइज के मखमली कालीन के इन टुकड़ों को 38 अलग-अलग रंगों और चित्रों से सजाया गया है। संसद के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रंग संयोजन और डिजाइन की कालीनें बिछायी गई हैं। 
मसलन-आगंतुकों और मीडिया दीर्घाओं के लिए कालीन अलग तरह की है, जबकि राज्यसभा के लिए दूसरी तरह की डिजाइन वाली कालीन है। राज्यसभा की फर्श पर बिछायी गई कालीन की डिजाइन कमल के फूल से प्रेरित है और इस लोटस मोटिफ को 12 भिन्न-भिन्न रंगों के मिश्रण से बनाया गया है। जिन कारीगरों ने ये कालीन बनायी है, उन सबका रजिस्ट्रेशन हुआ था और 314 करघों के जरिये इन 900 कारीगरों ने यह खास कालीन बुनी। 
संसद के लिए यह खास कालीन आधुनिक हथकरघों से नहीं बल्कि पारंपरिक हथकरघों पर बुनी गई। बुनने के पहले अंतिम रूप से इसके डिजाइन को तय करने की बहुत लंबी जद्दोजहद हुई। फिर हर दिन के आधार पर बुनकरों ने रात दिन एक करके इस कालीन को बुना। इस कालीन को रंगा भी बहुत खास तरीके से गया है। कालीनों को रंगने के लिए रसायनों की जगह पारंपरिक प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया गया है। राज्यसभा और लोकसभा दोनों की फर्श के लिए अलग-अलग डिजाइन के कालीन बुने गये हैं। लोकसभा के फर्श के लिए मोर पंख के डिजाइन को प्राथमिकता दी गई है। इसके एक ओम्ब्रे को बनाने के लिए 38 रंगों का इस्तेमाल किया गया है। इस काम को बहुत ही सजगता और सफाई से किया गया है। यहां तक कि जिस फैक्टरी में यह कालीन बनी है, उसका ऑडिट पार्लियामेंट सिक्योरिटी द्वारा किया गया है। 
इस ऐतिहासिक कालीन को बुनते हुए कई तरह की खास सजगताएं भी बरती गई हैं। जैसे बुनने के पहले तक कारीगरों को इस कालीन का पूरा डिजाइन मालूम नहीं होता था। मुख्य कारीगरों द्वारा इस कालीनों के बुनने के लिए बुनकरों को हर रोज़ सुबह नई डिजाइन बतायी जाती थी। शायद यह सजगता इसलिए बरती गई होगी कि कहीं संसद में बिछने के पहले ही कालीन का यह डिजाइन लीक न हो जाए। संसद में बिछायी गई इस सफस्टिकेटेड कालीन की सफाई के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल होगा। इसे हर सप्ताह छुट्टी वाले दिन अच्छी तरह से साफ किया जायेगा, जबकि हर कामकाजी दिन पर सुबह संसद खुलने के पहले आम सफाई हुआ करेगी। कालीन की उम्र कम से कम 20 साल की है और अगर इसकी बहुत सही तरीके से देखभाल की गई तो यह और भी ज्यादा देर तक सही सलामत रहेगी। हर पांच साल के बाद कालीन की मुरम्मत हुआ करेगी। 
कहने का मतलब यह कि जब भी नई संसद चुनकर आयेगी। संसद की यह कालीन हर बार मुरम्मत होकर नये रूप में बिछेगी। लोकसभा चुनावों की घोषणा के बाद इस कालीन की साफ-सफाई और मुरम्मत का काम चला करेगा और जब तक नई लोकसभा चुनकर आयेगी, तब तक यह बिल्कुल नये ढंग से तरोताजा हो चुकी होगी। इस कालीन को बुनने के लिए जहां 70 प्रतिशत से ज्यादा भदोही के स्थानीय कारीगरों का इस्तेमाल किया गया, वहीं 30 प्रतिशत कारीगर, बुनकर और इसकी डिजाइन में निर्णायक हस्तक्षेप करने वाले लोग बाहर से थे। दुनिया के कई संसद भवनों में एक से बढ़कर एक कालीनें बिछी हैं, लेकिन फिलहाल भारत की नई संसद में बिछी कालीन सबसे अच्छी और पर्यावरण के अनुकूल है।