....कौन चित्रकार है पंजिम (गोवा) के फॉनटेनहास क्षेत्र का...

धीमी-धीमी वर्षा, छाते के नीचे, हवादार मौसम में पंजिम गोवा (Goa) की सड़कों पर घूमते हुए हम फॉनटेनहास (Fontainhas) नामक रिहायशी क्षेत्र में पहुंचे, जिसे लोगों के कहने अनुसार देखना क्यों ज़रूरी था? क्या अलग था इस क्षेत्र में? इस तरह के प्रश्न मन में उठ रहे थे।
1700 में एनटोनियो जोयाओ डी. सेकिऊरा (Antonio Joao de Sequeira) नामक व्यक्ति जो एक गोवा मूल के थे, परन्तु गोवा से बाहर रहते थे, वह अफ्रीका की पुर्तगाली कालोनी से आए थे। उन्होंने फॉनटेनहास क्षेत्र में नारियल की कृषि की शुरुआत की। यहां के अधिकतर लोग मछली पालन का काम करते थे। पुर्तगालियों ने गोवा पर 1510 से 1961 तक लगभग 450 वर्ष तक शासन किया तथा फॉनटेनहास इनका निवास था। एनटोनियो की मृत्यु के बाद 1810-1839 में यहां पर प्लेग नामक बीमारी बहुत ज्यादा फैल गई, जिस कारण पुर्तगाली सरकार पंजिम शिफ्ट हो गई तथा फॉनटेनहास क्षेत्र के छोटे-छोटे प्लाट बिना किसी योजनाबंदी के बेच दिए गए। यही कारण है कि फॉनटेनहास क्षेत्र में बहुत तंग गलियां हैं, जो एक-दूसरे के साथ जुड़ती हैं। इन गलियों के नाम प्रसिद्ध नेताओं के नाम पर रखे गए हैं। ...रूया 31 डी जनेरियो (...Rua 31 de janeiro) सड़क का नाम स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर रखा गया था। 18 जून रोड राम मनोहर लोहिया के नाम पर रखा गया था, जिसे पुर्तगाल से आज़ाद करवाया था। गोवा के लोगों की धार्मिक आस्था को मन में रखते हुए 1818 में सेंट सैबेस्टीयन (st. sabastion) के नाम पर छोटा गिरिजाघर (छोटा चर्च) बनाया गया था। हिन्दू धर्म के लोगों के लिए मारुति मंदिर बनाया गया था, जोकि प्रसिद्ध एलटोनी पहाड़ी पर बनाया गया था।
फोंटे फीनिक्स (Fonte Phoenix) पानी का बहुत बड़ा जल भंडारण था, जिसमें सुरंगों द्वारा नज़दीक की नदियों आदि से पानी जमा किया जाता था, जिस कारण इस क्षेत्र का यह नाम पड़ा। 
फॉनटेनहास के इतिहास संबंधी जानकर इस क्षेत्र को देखने की उत्सुकता और बढ़ रही थी। बिल्कुल सामने सड़क पर जब चलना शुरू करें तो सामने सेंट सैबेस्टीयन चैपल जोकि पूरे सफेद रंग में बना है, के दर्शन होते हैं। भीतर जाकर सड़कों पर चलना शुरू किया तो समझ नहीं आ रहा था कि हम किसी शहर में हैं या किसी रंग-बिरंगे घरों के सैट पर जिसे किसी शूट के लिए तैयार किया गया हो। सचमुच ऐसे प्रतीत होता था कि हम किसी काल्पनिक रंगीन दुनिया में पहुंच गये हों। 
गोवा की बरसातों में फॉनटेनहास क्षेत्र अपनी सुंदरता को वर्षा से भीगी गलियों से दोगुना कर रहा था। पुर्तगाली प्रभाव और उसके भवन निर्माण को गोवा के इस भाग में सम्भाल कर रखा गया है।
फॉनटेनहास क्षेत्र की तंग गलियों में घूमते हुए सबसे मनमोहक बात यह थी कि विश्व का हर रंग यहां मौजूद था। कोई भी रंग ऐसा नहीं था, जो घरों का न हो। लाल, नीले, पीले आदि सभी रंगों की बहार थी।
घरों की लाल रंग की ढलान वाली छतों, रंग-बिरंगी दीवारों, बालकोनियों, बहुत ही सुन्दर छोटे-छोटे बरामदों को देख-देख कर आगे बढ़ने का दिल नहीं करता था। दिल करता था एक-एक घर, उसकी सजावट की वस्तुओं को बस देखते जाएं, साथ ही घरों के साथ ही दुकानें, छोटे-छोटे गैस्ट हाऊस, कैफे, इस पूरे क्षेत्र की नक्काशी को चार चांद लगाते हैं। सड़कों के नाम में भी पुर्तगाली प्रभाव की झलक पड़ती है, जैसे कि रूया 31 डी. जनेरियो कोर्टे का उइतेरा (Rua 31 de janeiro road, Corte da oitera) आदि जिनके संबंध में ऊपर दी गई पंक्तियों में पहले भी ज़िक्र किया गया है।
चलते-चलते, रंग-बिरंगे घरों को निहारते हुए मन और मिज़ाज एकदम तरो-ताज़ा हो रहा था।
अधिकतर पुर्तगाली घरों पर एक मुर्गा बनाया हुआ था। मुर्गा पुर्तगाल का राष्ट्रीय चिन्ह है जिसका अर्थ विश्वास, इमानदारी तथा सम्मान होता है। घरों की बड़ी-बड़ी सजावटी खिड़कियां हैं जो गली में ही खुलती हैं, कई घरों की खिड़कियां शीशे के स्थान पर ओइसटर (oyster) धातु की बनी हुई थीं। 
प्राचीन पुर्तगाली प्रथा के अनुसार प्रत्येक वर्ष घर का रंग-रोगन करवाना ज़रूरी होता था। यह प्रथा अब भी अपनाई जाती है इसलिए यहां की इमारतें बेहद चमकती हैं। 

बालकोनी 

 अधिकतर घरों की बालकोनियां, खिड़कियां तथा बरामदे सड़क  की ओर बने हुए हैं। पहले पुर्तगाली घरों में बालकोनी बनाना ज़रूरी होता था। कई घरों पर सैनिकों की प्रतिमा लगी है, जिसका अर्थ है कि यह घर स्वतंत्रता सेनानियों के थे। 

घरों की नेम प्लेटें 

 प्रत्येक घर की नेम प्लेट समान आकार की थी, नीले तथा सफेद रंग की, जिससे चाहे घरों का निर्माण अलग हो परन्तु एकसमानता मिलती है। कई ज़िमींदारों के घरों की बहुत बड़ी सीढ़ियां हैं जो मुख्य द्वार तक ले जाती हैं। कई घरों की दीवारों को अज़ूलेज़ो (Azulezo) सैरेमिक टाइलों से आकर्षक बनाया गया है।

सेंट सैबेस्टीयन (छोटा गिरिजा) 

 यह फॉनटेनहास क्षेत्र में दाखिल होते ही सामने दर्शन देता है। 1818 में यह छोटा गिरिजा (chapel) बना था जोकि सेंट सैबेस्टीयन को समर्पित किया गया था। दशकों पूर्व लोगों को प्लेग जैसी बीमारियां लग जाती थीं, सेंट सैबेस्टीयन मरीज़ों को अपनी दवाई तथा ध्यान से ठीक करते थे, इसलिए उनकी याद में यह चैपल बनाया गया था।

विशिंग कुआं 

 यहां के एक विरासती घर में बहुत पुराना विशिंग कुआं है, जिस पर लाल रंग का मुर्गा बना हुआ है। इस कुएं का पुरातन समय की भांति ही रख-रखाव किया गया है। पुरातन समय में पुर्तगालियों में इस कुएं के आगे इच्छा मांगने की कोई प्रथा थी।
घरों के बीचो-बीच ही कैफे, बेकरी आदि की दुकानें बनाई गई हैं, एक ही रूप में बने घर, दुकानें तथा कैफे इस स्थान की सुन्दरता को और भी बढ़ाते हैं। छोटे-छोटे खाने-पीने के कैफे हैं, जिनमें स्नैक्स केक का स्वाद, साथ  कॉफी का कप हाथों में हो तो हल्की-हल्की बारिश में, दिल उस समय यह करता है कि बस यह कॉफी का कप खत्म ही न हो। 

गीतांजलि गैलरी 

यह एक पुरातन घर में खोली गई है, जिसमें जो सकैंडिनेम आर्ट, लीथोग्राफ्स, सैरीग्राफ्स (Scandinaman art, lithographs, Serigraphs) सभी प्राचीन कलाओं संबंधी जानकारी है। यहां स्थानीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय कारीगरों का काम दिखाया गया है। यहां हर वर्ष वर्कशापों पर प्रदर्शनियां तथा कला की कक्षाएं लगती हैं।
नीले तथा सफेद सैरेमिक  (Ceramics) से टाइलों की नक्काशी जिसे अज़ूलजोस (Azueljos) कहते हैं, की खूबसूरत प्रस्तुति वाली छोटी-छोटी दुकानें इस कला को और भी अच्छा प्रदर्शित करती हैं।

गैस्ट हाऊस 

 जिसने फॉनटेनहास क्षेत्र की हवा को दिन रात महसूस करना है, उनके लिए छोटे-छोटे घरों को गैस्ट हाऊस में परिवर्तित किया गया है तथा इस प्रकार के कमरे बनाये गये हैं कि पूरा पुर्तगाली एहसास हो। जहां फॉनटेनहास क्षेत्र खत्म होता है, वहां से अलतिनहो (Altinho) नामक पहाड़ी शुरू होती है।
फॉनटेनहास क्षेत्र के भवन निर्माण को देखते व निहारते समय कैसे व्यतीत होता है, पता ही नहीं चलता। इस क्षेत्र को अलविदा कहते हुए बार-बार मुड़ कर देखने को मन करता है तथा इसके रंगों की कहानी जैसे रंग-बिरंगे चित्रों को हमेशा के लिए आंखों तथा मन में समा कर फॉनटेनहास क्षेत्र को अलविदा कहते हैं।
बात यहीं खत्म नहीं होती। गोवा की सरकार यह चाहती है कि लोगों के दिलों पर गोवा से वापिस लौटते समय, आखिरी दिन तक पुर्तगाल का प्रभाव बना रहे, इस कारण नये बने मोपा एयरपोर्ट पर भी छत, दीवारों को उसी तरह टाइल लगाकर पुरातनशैली वाला रंगीन बनावट दी गई है। खिड़कियां तथा बालकोनियां भी फॉनटेनहास का प्रभाव देती बनाई गई हैं। इंतज़ार करने वाले स्थान में काऊंटर पर उसी प्रकार की बालकोनी तथा खिड़कियों का प्रभाव दिया गया है।
इससे यह एहसास होता है कि यह छोटा-सा प्रदेश अपनी सभ्यता, संस्कृति तथा अपनी ऐतिहासिक पृष्ठ-भूमि को हमेशा-हमेशा के लिए सम्भालने का हर प्रयास करके उसे लोगों के समक्ष खूबसूरती से पेश करना चाहता है।

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