फसली विभिन्नता ही है कृषि संकट का हल

गेहूं की फसल की कटाई से पहले मार्च-अप्रैल में बेमौसमी बारिशें होने और तेज़ हवाएं चलने के बावजूद पिछले वर्ष के मुकाबले (मध्य मार्च में अधिक गर्मी होने के कारण) गेहूं की उत्पादकता बहुत कम हो गई थी। अब किसानों ने अनुपाततया धान की अच्छी फसल लेने के लिए 27.50 लाख हैकटेयर क्षेत्र पर बिजाई कर दी है। इस समय बारिश के कारण बिजाई पूरे ज़ोरों पर है। एक अनुमान अनुसार इस वर्ष 31.67 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पर धान की काशत किए जाने की संभावना है, जिसमें से तकरीबन 6 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पर पंजाब सरकार द्वारा निश्चित लक्ष्य बासमती की काशत की जाएगी। अगले 10 दिनों में धान की बिजाई मुकम्मल हो जाएगी। केवल कुछ क्षेत्र पर बासमती किस्मों की काशत हो रही होगी।
पंजाब भारत के कुल चावल उत्पादन का दसवां हिस्सा पैदा करता है। 2021-22 में इसके द्वारा 21 प्रतिशत तक चावल केन्द्रीय अन्न भंडार में दिए गए थे। सिंचाई अधीन क्षेत्र 98.9 प्रतिशत है। राज्य के कुल भूगोलिक क्षेत्र में का 82 प्रतिशत (लगभग 41.58 लाख हैक्टेयर) क्षेत्र काशत की जाती है। पिछले दो दशकों से अधिक समय से पंजाब सरकार धान की काशत अधीन क्षेत्र घटाकर फसली विभिन्नता लाने के प्रयत्न कर रही है, लेकिन सफलता नहीं मिली। बल्कि हर वर्ष धान की काशत अधीन क्षेत्र बढ़ा है। विशेषज्ञों और सैंटर ग्राऊंड वाटर बोर्ड द्वारा राज्य सरकार को धान की काशत अधीन  क्षेत्र घटाकर 20 लाख हैक्टेयर पर लाने के लिए कहा गया था, परन्तु इसमें कोई कमी नहीं हुई बल्कि गेहूं-धान फसली-चक्कर अधीन प्रत्येक वर्ष क्षेत्र बढ़ता रहा। फसली-विभिन्नता का कामयाब न होना किसानी संकट का मुख्य कारण है और इस कारण 141 ब्लाकों में से बहुत से ब्लाक डार्क ज़ोन में चले गये, यहां और ट्यूब्वैल की संभावना नहीं। इन ब्लाकों में पानी ज़मीन के 200 से 300 फुट नीचे ही उपलब्ध होता है और ट्यूब्वैल सबमर्सिबल पंपों के साथ ही चलता है।
कृषि और किसान भलाई विभाग का अधिक ज़ोर धान अधीन कुछ क्षेत्र निकाल कर मक्की की काशत अधीन लाने जा रहा है। निशाना 5.5 लाख हैक्टेयर क्षेत्र 2022-23 दौरान मक्की की काशत अधीन लाया जा सका। धान छोड़कर किसान मक्की भी क्यों बीजें? बहार ऋतु में मक्की की पानी की ज़रूरत भी धान से कम नहीं। धान की उत्पादकता भी मक्की से कहीं ज्यादा है। जब मक्की की औसत पैदावार 15.90 क्विंटल प्रति एकड़ है, धान की 26-27 क्विंटल के बीच है। फिर मक्की का समर्थन मूल्य भी धान के मुकाबले कम है। धान का समर्थन मूल्य 2203 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि मक्की का समर्थन मूल्य 2090 रुपये प्रति क्विंटल है। कम समर्थन मूल्य पर भी मक्की की सरकारी खरीद नहीं होती। निजी व्यापारियों के हाथों मक्की उत्पादकतों की लूट होती रही है। मक्की की काशत धान के मुकाबले किसानों के लिए ज्यादा लाभदायक नहीं, क्योंकि उत्पादकता, मूल्य और सरकारी खरीद धान का मुकाबला नहीं करते।
धान की काशत घटाने और फसली विभिन्नता लाने के लिए बासमती किसमों की काशत बढ़ाने की ज़रूरत है। गत वर्ष बासमती किसमों का भाव भी किसानों को लाभदायक मिला था। इस वर्ष मिली रिपोर्टों के अनुसार उत्तर प्रदेश में बासमती का रकबा काफी बढ़ गया है और वहां नये क्षेत्र बासमती की काश्त अधीन आए हैं, परन्तु पंजाब में यह गत वर्ष के 5 लाख हैक्टेयर के मुकाबले इस वर्ष कृषि तथा किसान कल्याण विभाग की योजनाबंदी के अनुसार 6 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती की काश्त की जाएगी।
फलों की काश्त के अधीन लगभग 96 हज़ार हैक्टेयर रकबा है, जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है। पंजाब की जलवायु फलों की काश्त के लिए अनुकूल है। किन्नू यहां की मुख्य फसल है, परन्तु इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। आम की काश्त के अधीन रकबा काफी बढ़ाया जा सकता है। आम की कम ऊंचाई वाली हाइब्रिड किस्में जो पूसा द्वारा विकसित की गई हैं, उत्पादन के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं। सब्ज़ियों में आलू की फसल मुख्य है। आलू का बीज भी पंजाब में पैदा करके दूसरे राज्यों को भेजा जाता है, परन्तु जिस समय आलू की फसल आती है, उस समय मंडी में बहुत मंदी होती है और किसानों को बहुत कम दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है। व्यापारी इसका भण्डारण करके बाद में ऊंचे दाम पर फसल को बेच कर लाभ कमाते हैं। सरकार को किसानों के लिए ठंडी चेन की सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिएं ताकि किसानों के लिए सब्ज़ियों की काश्त भी लाभदायक रहे। इस वर्ष जिन किसानों ने कम्पनियों के साथ अनुबंध किया था, उन्हें तो लाभकारी दाम मिल गया, परन्तु शेष किसानों को 400 रुपये प्रति क्ंिवटल तक अपनी फसल बेचनी पड़ी, जबकि उपभोक्ताओं को आजकल 2000 रुपये प्रति क्ंिवटल के दाम पर मंडी में आलू मिल रहा है। 
पंजाब सरकार को खरीफ की फसल के लिए योजनाबंदी करते हुए मुख्य फसलों के अतिरिक्त दूसरी वैकल्पिक फसलों की काश्त के लिए किसानों को प्रशिक्षण, ज्ञान और मंडीकरण की सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिएं। कृषि क्षेत्र में ठहराव नहीं आने देना चाहिए। इसके विकास से ही व्यापार, उद्योग एवं रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है और युवा पीढ़ी का विदेशों को पलायन रोका जा सकता है। किसानों के लिए कृषि को लाभदायक बनाने के लिए स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसलों पर आई लागत (भूमि तथा परिवार द्वारा की गई मज़दूरी मिलाकर) पर 50 प्रतिशत लाभ देकर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना चाहिए।