चीन का नया कानून : पूरे विश्व पर दूरगामी प्रभाव संभव  

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी नियंत्रित विधान-मंडल नेशनल पीपल्स कांग्रेस ने 28 जून, 2023 को विदेशी मामलों से संबंधित एक नया कानून (फॉरेन रिलेशन्स ऑफ द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) पारित किया, जो एक जुलाई, 2023 से लागू हो गया है। शी जिनपिंग के 2012 में राष्ट्रपति बनने के बाद से चीन की विदेश नीति निरन्तर केंद्रीकृत होती गई है और अब इस नये कानून के आने से इस पर राष्ट्रपति की पकड़ और अधिक मज़बूत हो जायेगी। सवाल यह है कि इस नये कानून का भारत के लिए क्या अर्थ है? जिनपिंग के अधीन चीनी विदेश नीति के केंद्रीकरण पर अब कानूनी मुहर लग चुकी है और इसको चुनौती देना चीनी नियमों का उल्लंघन माना जायेगा। इस कानून में विशेष रूप से जिनपिंग की अनेक महत्वपूर्ण पहलों का उल्लेख किया गया है, जैसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई), ग्लोबल डिवेल्पमेंट इनिशिएटिव (जीडीआई) और ग्लोबल सिक्यूरिटी इनिशिएटिव (जीएसआई)। इसलिए इसके भारत सहित पूरे विश्व पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं।
यह नया कानून क्यों लाया गया? आधिकारिक तौर पर चीन ने कहा है कि विदेशी मामलों से संबंधित कानूनी व्यवस्था में कुछ कमियां थीं, जिस कारण राष्ट्रीय सम्प्रभुता, सुरक्षा व विकास हितों को सुरक्षित रखने के लिए कानूनों में कुछ ‘गैप्स’ थे, जिन्हें दूर करने व भरने के लिए नये कानून की आवश्यकता थी। गौरतलब है कि नये कानून के पहले ही अनुच्छेद में ‘चीन की सम्प्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा व विकास हितों’ को सुरक्षित रखने का ज़िक्र है। चीन को लगता है कि विदेशी मामलों से संबंधित कानूनी व्यवस्था को तेज़ी से विकसित करने से चीन अधिक प्रभावी ढंग से खतरों व चुनौतियों का सामना कर सकेगा, लेकिन इस नये कानून का विस्तृत उद्देश्य प्रतीत होता है कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन जिनपिंग के इनिशिएटिव्स के विरुद्ध हरकत करता हुए लगे तो उसके खिलाफ  दंडात्मक कार्यवाही की जा सके। ध्यान रहे कि इसी तरह अक्तूबर 2021 में सीमा कानून गठित किया गया था, जिसके तहत चेतावनी दी गई थी कि ‘क्षेत्रीय अखंडता व भूमि सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए राज्य न सिर्फ  उचित कदम उठायेगा बल्कि इन्हें कमज़ोर करने के किसी भी प्रयास को रोकेगा। अगर युद्ध या पास के किसी अन्य सशस्त्र टकराव से सीमा सुरक्षा को खतरा होता है तो चीन अपनी सीमा बंद कर सकता है।’
नये विदेशी कानून में भी इस बात पर बल दिया गया है कि सम्प्रभुता व सुरक्षा चीनी विदेश नीति का केंद्रीय हिस्सा है। नये कानून में कहा गया है कि चीन को यह अधिकार होगा कि जिन चीज़ों से उसकी संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा व विकास हितों को खतरा उत्पन्न होता है, उनका जवाब देने या रोकने के लिए वह आवश्यकता अनुसार कदम उठा सकता है, भले ही वह कदम अंतर्राष्ट्रीय कानून या अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को संचालित करने वाले बुनयादी नियमों का उल्लंघन हो। 
नये कानून में यह भी कहा गया है कि विदेशों में चीनी नागरिकों व संगठनों के वैध अधिकारों व हितों की सुरक्षा के लिए राज्य कानून के अनुसार आवश्यक कदम उठायेगा और विदेशों में चीन के हितों को किसी भी प्रकार की धमकी या हस्तक्षेप से सुरक्षित रखेगा। नये कानून का एक अन्य उद्देश्य चीन को निशाना बनाने वाली पश्चिमी पाबंदियों के प्रति कानूनी प्रतिक्रिया भी है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि चीन के विरुद्ध अगर कोई पाबंदी लगती है, तो चीन में काम कर रही पश्चिमी कम्पनियों के लिए उन पाबंदियों का पालन करना अवैध होगा।  पाबंदियों के अतिरिक्त नया कानून एक अन्य बात के संदर्भ में भी प्रतीत होता है। चीन अपने सहयोगी देशों को जिस अंदाज़ या शर्तों पर ऋण देता है, उससे अनेक देश ऋण संकट में फंस चुके हैं। इस तथ्य को लेकर चीन की कड़ी आलोचना हो रही है। संभवत: इसी की प्रतिक्रिया में नये कानून के अनुच्छेद 19 में कहा गया है कि सहायता प्रदान करते समय बीजिंग ‘प्राप्तकर्ता देशों की संप्रभुता का सम्मान करेगा’ और ‘उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा या अपनी सहायता से कोई राजनीतिक शर्त नहीं जोड़ेगा।’
भारत और चीन के बीच 3,488 कि.मी. की वास्तविक नियन्त्रण रेखा (एलएसी) है। चीन ने अप्रैल 2020 में एलएसी का उल्लंघन किया था और तभी से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध खराब चल रहे हैं व साथ ही एलएसी प्रबंधन की जो दशकों से व्यवस्था चली आ रही थी, वह भी चरमरा गई है।  एलएसी विवाद को सुलझाने के लिए भारत व चीन के उच्चस्तरीय सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता के 18 चक्र हो चुके हैं, जिनमें से अंतिम अप्रैल 2023 में हुआ था, लेकिन बीजिंग द्वारा हर बार गोलपोस्ट बदलने के कारण अब तक कोई खास नतीजा नहीं निकल पाया है। साल 2021 के सीमा कानून से बीजिंग ने एलएसी पर अपनी हरकतों को ‘वैधता’ प्रदान करने का प्रयास किया है। अब उसका नया विदेश कानून भी सुरक्षा, संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता पर बल दे रहा है।  अत: इन दोनों कानूनों को अलग करके नहीं देखा जा सकता, विशेषकर इसलिए कि बीजिंग एलएसी विवाद को राष्ट्रीय संप्रभुता के तौरपर देख रहा है बजाय ऐसे मुद्दे के जिसे दो पक्षों को वार्ता के ज़रिये हल करना चाहिए। इससे एलएसी विवाद पर जल्द विराम लगने की संभावनाएं लगभग शून्य हो गई हैं। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर