दुल्हन तैयार हो रही है 

एक खास मित्र की बेटी की शादी में जाना हुआ। इस बहाने पत्नी ने खाना नहीं बनाना था, हम दोनों ने बाहर अच्छे होटल में खाना था। रास्ते में अनेक जगह ट्रैफिक रेंगता रहा। जाम की हद हो गई, एक चौराहे पर तो एक घंटा लग गया, घिसटते घिसटते पता चल गया कि गाड़ी के पेट में पैट्रोल कैसे जलता है। शादी में पहुंचते पहुंचते धैर्य का तेल निकल गया, पहने हुए कपड़े तक परेशान हो गए। पुराने दोस्त हमारे मेज़बान रहे, इतने प्यार से बुलाया है, लेट हो रहे हैं तो हमें और उन्हें दोनों को अच्छा तो नहीं लगेगा। पहुंचकर देखा बाहर कोई न था, जल्दी-जल्दी अंदर पहुंचे तो देखा सब तैयारी हो चुकी है लेकिन फिलहाल सभी इंतज़ार कर रहे हैं । स्वादिष्ट वस्तुएं खूबसूरती से मेज़ पर सजी हैं, वेटर उनके पास खड़े हैं, लाइटें जली हुई हैं, हल्का क्लासिक संगीत कानों को सुख दे रहा है। 
काफी मेहमान आ चुके हैं, पंडित जी ने चौकी सजा रखी है। दुल्हन के पिजता कुर्सी पर ठोडी के नीचे अंगुलियां फंसाए बैठे हैं। हमने मुबारकबाद देकर पूछा बिटिया कहां है तो बोले तैयार हो रही है, मैं अभी उसके कमरे के बाहर खड़ा था, फोन साइलेंट पर है। जैसे बचपन में करती थी अभी भी वैसे ही तैयार हो रही है। मुझे लगा दुल्हन का तैयार होना अब सरकारी योजना के कार्यान्वन जैसा हो गया है। मेहमानों की उंगलियां मोबाइल फोन पर फिसल रही हैं। बच्चे फुटबाल की तरह इधर-उधर उछल रहे हैं। ब्रैड पकौडे ठंडे हो गए हैं, वेटर सोच रहा है कि दोबारा गर्म अभी कर दूं या बाद में कर लेंगे।   
दुल्हन डेढ़ घंटा देर से प्रवेश करती है। स्वाभाविक है उसने इस विरले अवसर के लिए खास ड्रेस पहनी है। पार्टी ड्रेस में सजी सखियां उसके साथ हैं। पंडितजी अपना काम पंद्रह मिनट में निपटा देते हैं। नाच गाना शुरू हो जाता है। दुल्हन ने अभ्यास की हुई शैली में नाचना शुरू कर दिया है। नाच गाना खाना पीना रात 12 बजे तक चलता है लेकिन नाच के शौकीन रुकते नहीं क्यूंकि काकटेल उन्हें शाबासी देती रहती है। डीजे वाला जाना चाहता है फिर भी जाते-जाते एक दो गाने बजा देता है। इतना तैयार होकर आई दुल्हन अभी जाने को तैयार नहीं। अपनी शादी के लिए वह इतने दिनों से तैयारी कर रही थी इसलिए उसे नाचना भी खूब है। अपनी सखियों और सखाओं के साथ चियर्स करती हुई एक पैग और खींचती है। नाच जारी रहता है।  
अगले दिन सुबह 11 बजे नाना के परिवार के आने पर पूजा है। साढ़े ग्यारह बजे पत्नी कहती है जाओ नीचे देखकर आओ कुछ होना शुरू हुआ है या नहीं। पौने बारह बजे नीचे पहुंचता हूं। पंडित जी नहा धोकर बैठे हैं, उनके रंगे हुए बाल आज ज्यादा चमक रहे हैं। दुल्हन के पिता भारतीय संस्कृति में डूबी नई ड्रेस पहन कर आए हैं। कुछ लोग उनके पास बैठे हैं। पंडित जी पूछते हैं दुल्हन, ...जी वो तैयार हो रही है, पिताजी वाक्य पूरा करते हैं। दुल्हन एक घंटे बाद सचमुच तैयार होकर आती है। उसके साथ रात वाली सखियां हैं। उन सबकी आंखों में नींद अभी लेटी हुई है। सलीके से तैयार होने में वक्त तो लगता है। अपनी पत्नी को नीचे आने के लिए फोन करता हूं।
दुल्हन की तैयारी से प्रेरित होकर, बच्चों के जन्मदिन आयोजन के लिए भी तैयार होने की सांस्कृतिक परम्परा विकसित हो चुकी है। छोटी बात तो है नहीं, सज धजकर तैयार होने का मामला है। 
 
-गुलिस्तान, साथी, पक्का तालाब, 
नाहन 173001 (हिप्र)
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