फ्रांस में हो रही हिंसक घटनाएं

फ्रांस में हो रही हिंसक घटनाएं विचलित करने वाली हैं। एक लम्बे समय से हम फ्रांस को उन्नत विचारधारा वाला मुल्क मानते रहे हैं। इसी आधार पर उस देश की राष्ट्रीय पहचान बनती है। समता समानता भातृत्व का संदेश वहां से खूब प्रचारित हुआ है। अब वहां जिस तरह की उथल-पुथल मची है, क्या हमें इसे वहां की राज्यसत्ता की कमज़ोरी के रूप में देखना चाहिए या फिर प्रेशर कुकरनुमा हालात की तरह? जब एक सीटी बजती है शोर के साथ तेज़ी से भाप निकलती है लेकिन वह फट नहीं जाता। फ्रांस का आधुनिक इतिहास जिस तरह की घटनाओं से लदा हुआ है उसके सामने ये घटनाएं इतनी बड़ी नहीं हैं, जितनी किसी चैनल पर समाचार देखते हुए हमें नज़र आती है और हम बेचैन हो उठते हैं। 
पुस्तकालय सहित सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया है। कुछ वाहन भी जलाये गये हैं। नहीं होना चाहिए परन्तु हुआ। एक अध्ययन बताता है कि फ्रांस के लोग जल्दी किसी भी बात पर उत्तेजित हो सकते हैं-पैंशन प्लान को लेकर, रिटायरमैंट की उम्र बढ़ाने को लेकर, अपर्याप्त कृषि सबसिडी पर, किसी भी ऐसे असन्तोष पर आपको फ्रांस का इतिहास थोड़ा टटोलने पर कुछ न कुछ मूवमैंट (जो दंगे जैसी होगी) मिल ही जायेगी। इतिहास ही गवाही देगा एक ऐसे देश की जिसमें पिछले लगभग अढ़ाई सौ के करीब पिछले सालों में तीन साम्राज्य, चार रिपब्लिक और चार अलग-अलग अवसरों पर विदेशी शक्तियों ने कब्ज़ा किया है। वहां के राजा-रानी और कबीलों का सार्वजनिक रूप से सिर काटा गया है। दो सम्राटों को कैद करके निर्वासन दिया गया है।
वर्तमान दौर को समझने की कोशिश की जाए तो वह यह है कि एक पुलिस पोस्ट पर अफ्रीकी मूल के एक युवा मुस्लिम लड़के को रोका गया जिसके पास ज़रूरी कागज़ात नहीं थे और इसलिए उसने गाड़ी रोकी नहीं। फ्रांस की पुलिस सैन्यवादी मानी जाती है। ऐसी स्थितियों में उसे गोली चलाने तक की आज़ादी हासिल है। अमरीका को कार प्रधान देश माना जाता है लेकिन यूरोप में पैदल चलने वाले या फिर साइकिल से आने-जाने वालों को महत्त्व दिया जाता है जहां कोई अंधाधुंध गाड़ी चलाने वाला शख्स पैदल चलने वालों के लिए ़खतरनाक महसूस हो सकता है, तो उस पर सख्त कार्रवाई की जाती है। फ्रांस में रहने वाला प्रत्येक नागरिक इस बात के मर्म को ठीक से समझता है इसके बावजूद उस लड़के ने गाड़ी नहीं रोकी जिसकी कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। अब जो दंगे फ्रांस में हो रहे हैं वे उस अभागे लड़के के लिए हैं? सामाजिक न्याय की पुकार के लिए हैं? नस्ली विभेद के लिए हैं? या फिर सामाजिक तनाव की अभिव्यक्ति के लिए हो रहे हैं? फ्रांस में ही नहीं, जिन महाद्वीपों में फ्रांसीसी उपनिवेश रहे हैं, वहां भी तनावपूर्ण स्थितियां रहती ही हैं। फ्रेंच गुयाना देश लें, रीयूनियन आइलैंड या फिर मार्रीनक में।
फ्रांस में व्याप्त सामाजिक तनाव को समझना ज़रूरी है। बताया जाता है कि फ्रांस में अवसरों की समानता में विश्वास किया जाता है बजाय कि परिणामों की समानता के। वहां कानून की नज़र में सभी समान हैं और इसे भरसक लागू भी किया जाता है। कोई विकटिम है, उसका हवाला देकर कोई कैसे असामाजिक व्यवहार कर सकता है? फ्रांस की शिक्षा प्रणाली ही नहीं स्वास्थ्य प्रणाली भी विश्व भर में श्रेष्ठ मानी जाती है। वहां के स्कूल उत्तम माने जाते हैं। क्योंकि होमवर्क और पेरेंट-टीचर मीटिंग सुव्यस्थित है। वहां के नागरिकों के लिए उच्च कोटि की हेल्थ केयर सुविधा उपलब्ध है क्योंकि हर पचास हज़ार लोगों पर तीन सौ बैड का अस्पताल उपलब्ध है और हर तरह की आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध हैं। हर सुविधा गरीब-अमीर के भेदभाव के बिना है। जहां फ्रांस में बसे भारतीयों, चीनियों, वियतनामियों की आय सबसे अधिक है वहीं अफ्रीकी और मध्यपूर्व एशियाई रिफ्यूजियों की सबसे कम। क्या यह सुलगन बड़ी सुलगन बन जाती है?
इस भेदभाव को इस तरह परिभाषित करना कठिन है कि भारतीयों-चीनियों और वियतनामियों को जो भेदभाव नहीं लगता वही अफ्रीकियों को क्यों लगता है। इसके पीछे वह इतिहास भी है जिसे उन्होंने एक लम्बे समय तक झेला है। वे ज़ख्म काफी गहरे हैं। तुम उनकी अवहेलना नहीं कर सकते। वे जब तब सुलग उठते हैं और चिंगारी बन जाते हैं।