चंद्रयान-3: चांद की तरफ बढ़ते भारत के कदम

इक दिन ज़माना आप भरेगा
गवाही मेरी परवाज़ दी, 
कि नाकामियां मेरे स़फर दा, 
पड़ाव हो सकदीयां ने, मंज़िल नहीं।
सितम्बर, 2019 में जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था (इसरो) द्वारा चंद्र मिशन की दूसरी कोशिश भाव चंद्रयान-2 नाकाम हो गई थी, तो इसरो के प्रमुख डा. के. सिवन सहित सभी वैज्ञानिकों के चेहरे पर मायूसी थी, लेकिन ऊपर की पंक्तियों की तरह वह सब इस मायूसी को अपनी हार मानने के लिए तैयार नहीं थे। यही जज़्बा था, जिसने इन वैज्ञानिकों को मिशन को आगे बढ़ाने के लिए हौंसला दिया और लगभग 4 सालों बाद इसरो द्वारा चंद्र मिशन की तीसरी कोशिश भाव चंद्रयान-3 लांच किया गया। चंद्रयान-3 को चंद्रयान-2 का फालोअप कहा जा रहा है। चंद्रयान-3  का आधार चंद्रयान-2 की नाकामी से लिया सबक है। इसरो द्वारा चंद्रयान-3 में क्या कुछ नहीं किया जाना चाहिए जो चंद्रयान-2 में गलत हुआ था, इन कारणों की अच्छी तरह से जांच-पड़ताल की गई, जिसके कारण 7 सितम्बर, 2019 को चंद्रयान-2 की साफ्ट लैंडिंग के समय विक्रम लैंडर क्रैश हो गया था।
हम चंद्रयान-3 के लांच होने के सफर के साथ-साथ भारतीय चंद्र मिशन की अब तक की यात्रा पर भी एक नज़र डालते हैं।
चंद्रयान-3 
चंद्रयान-3, 14 जुलाई, 2023 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र की लांचिंग रेंज से लांच किया गया। चंद्रयान-3, 5 अगस्त को धरती से चांद की लगभग 3 लाख, 84 हजार, 400 किलोमीटर की दूरी तय करता हुआ, चंद्रमा की आर्बिट में दाखिल होगा। चंद्रयान-3 में एक लैंडर, एक रोवर और एक प्रप्लशन मॉडल लगा हुआ है।
यदि साधारण भाषा में समझने की कोशिश करें तो इस मिशन की कुल अवधि सिर्फ 14 दिन है। चांद के अनछुए और अनदेखे धरातल पर विक्रम लैंडर, जिसका वज़न 1726 किलोग्राम है, जब लैंड करेगा तो चंद्रयान-2 के आर्बिटर और चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर से सम्पर्क करेगा। वर्णनीय है कि चंद्रयान-2 के तीन भाग थे, आर्बिटर, लैंडर और रोवर। मिशन में लैंडर चाहे तबाह हो गया था, परन्तु आर्बिटर कामयाब रहा और वह आज भी चांद की आर्बिट में घुम रहा है। इसलिए चंद्रयान-3 के समय आर्बिटर नहीं भेजा गया।
प्रज्ञान रोवर, जिसका वज़न 26 किलोग्राम है, विक्रम लैंडर के लैंड होने के बाद बाहर आएगा। प्रज्ञान में लगे सोलर पैनल द्वारा बिजली पैदा करेगा और लैंडर से सम्पर्क करके उसके डाटा को आगे भेजेगा। यहां यह भी वर्णनीय है कि मिशन की अवधि 14 दिन की इसलिए है क्योंकि चांद पर 14 दिन रात और 14 दिन की ही चांदनी होती है। 
चंद्रयान के लैंडर और रोवर बिजली का उत्पादन करेंगे। यह क्रम 14 दिनों तक चलेगा, परन्तु रात होने पर यह रूक जाएगा। रात के समय वहां का तापमान-100 डिग्री सैल्सियस से भी कम होता है और बिजली उपकरण इस ठंड को न झेल पाने के कारण खराब हो जाएंगे।
चंद्रयान-3 को देश का सबसे वज़नदार राकेट एल.वी.एम. 3 लेकर गया है, जिसका वज़न 640 टन और कुल लम्बाई 43.5 मीटर है। इसमें लगे प्रज्ञान मॉडल का वज़न 2148 किलोग्राम और उसकी अवधि 3 से 6 माह है। इसका मुख्य काम लैंडर को लांच व्हीकल इंजैक्शन आर्बिटर द्वारा लैंडर सैपरेशन तक लेकर जाना है। वर्णनीय है कि चंद्र मिशन में उपयोग होने वाले 50 हजार से अधिक महत्वपूर्ण घटकों के निर्माण के लिए 150 से अधिक टैकनीशनों ने गत दो वर्षों में दिन-रात मेहनत की है।
चंद्रयान-2 से लिए गए कई सबक
हर पिछला कदम आगे उठाए जाने वाले कदम का आधार होता है। जो यह सिखाकर जाता है कि आगे हमें क्या सावधानी बरतनी है। चंद्रयान-2 के लैंडर के लिए जिस तकनीक का उपयोग किया गया था, उसमें अब बहुत परिवर्तन किए गये हैं।
पहला, विक्रम लैंडर के लैंडिंग लैग्गज़ को मज़बूत किया गया है। लैंडिंग के दौरान 3 मीटर प्रति सैकेंड की रफ्तार पर भी यह टूटेंगे नहीं। 
दूसरा, लैंडिंग वाला धरातल ठीक न होने पर भी यह मंडराता हुआ दूसरे स्थान पर लैंड करेगा।
तीसरा, इसमें नया सैंसर लगाया गया है। लेज़र डाप्लर वैलोसिटी मीटर सैंसर लैंडिंग में मदद करेगा।
चौथा, इसके साफ्टवेयर में भी सुधार किया गया है क्योंकि लैंडिंग के समय लिए जाने वाले फैसले साफ्टवेयर ही तय करता है।
पांचवां, इसमें पांच के स्थान पर चार इंजन लगाए गये हैं। लैंडर का वज़न 200 किलोग्राम बढ़ाने के कारण एक इंजन को हटाया गया है। पांचवां इंजन इसलिए हटाया गया है ताकि अंतरिक्ष में अधिक ईंधन लेकर जाया जा सके। लैंडर की फाइनल लैंडिंग के समय दो इंजनों का इस्तेमाल किया जाएगा, जबकि शेष इंजनों का इस्तेमाल हंगामी परिस्थिति में किया जाएगा।
छठा, चंद्रयान-2 के समय लैंडर के उतरने के दूसरे चरण में वैलोसिटी निश्चित सीमा से कम हो गई थी। निश्चित टालरैंस से अधिक फर्क पड़ने के कारण आनबोर्ड साफ्टवेयर में गड़बढ़ हो गई। इसलिए साफ्टवेयर की टालरैंस लिमिट इस बार बढ़ाई गई है।
इसरो ने कहा है कि इस बार उसने नाकामी आधारित डिज़ाइन का विकल्प चुना है, ताकि यह यकीनी बनाया जा सके कि कुछ चीज़ें गलत होने पर भी लैंडर चांद पर सफलतापूर्वक उतारा जा सके।
कहां उतरेगा लैंडर
चंद्रयान-3 का लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव (द्यद्बठ्ठड्डह्म् ह्यशह्वह्लद्ध श्चशद्यद्ग) के हिस्से में उतरेगा, जिस पर धरती से सीधे नज़र रखनी मुश्किल है। यहां पानी और खनिज होने की काफी सम्भावना है, जिसकी पुष्टि चंद्र मिशन के पहले दो अभियानों से हो चुकी है।
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार आर्बिटरों के परीक्षणों के आधार पर कहा जा सकता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और अन्य प्राकृतिक स्त्रोत भी हो सकते हैं। पानी के अरबों वर्ष पुराने होने के भी अनुमान लगाए जाते हैं।
हालांकि अभी यह एक अंजान और अनछुहा हिस्सा है लेकिन इस पर पानी या बर्फ मिलने के साथ इसका उपयोग पीने के लिए, उपकरणों को ठंडा करने, राकेट ईंधन बनाने और अनुसंधान कार्यों के लिए किया जा सकता है।
इस अनुसंधान की एक विशेष बात यह भी है कि यदि भविष्य में हमने चांद पर कालोनियां बसानी हों तो इसमें काफी मदद मिलेगी। दक्षिणी ध्रुव की महत्ता इससे भी समझी जा सकती है कि अमरीका 2025 में 4 अंतरिक्ष यात्री चांद की आर्बिट में भेजने की योजना बना रहा है। जिनमें से दो को ह्यूमन लैंडिंग सिस्टम द्वारा वहां उतारा जाएगा। इन दोनों में से एक महिला होगी। दोनों अंतरिक्ष यात्री एक सप्ताह वहां रहेंगे और कुछ तस्वीरें आदि इकट्ठी करके वापिस धरती पर आएंगे।
चंद्रयान-3 के उद्देश्य
चंद्रयान-3, जिसका कुल बजट लगभग 615 करोड़ रुपये है, के लिए इसरो द्वारा तीन लक्ष्य निश्चित किए गये हैं। पहला चंद्रयान-3 के लैंडर की चांद के धरातल पर सुरक्षित और आसान लैंडिंग। वर्णनीय है कि साफ्ट लैंडिंग वह होती है जिसमें राकेट की गति कम होती जाती है और वह धीरे-धीरे चांद के धरातल पर उतरता है जबकि हार्ड लैंडिंग में लैंडर चांद के धरातल पर टकराकर क्रैश हो जाता है।
दूसरा इसके रोवर को चांद के धरातल पर चलते दिखाना और तीसरा वैज्ञानिक परीक्षण करना। वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए राकेट अपने साथ कई उपकरण लेकर गया है, जिसमें चांद पर भुकम्प को नापने के लिए सिस्मोमीटर भी शामिल हैं। इसके अलावा इसमें चांद की आर्बिट के छोटे ग्रहों और हमारे सूर्य मंडल के बाहर स्थापित अन्य ऐसे ग्रह, जिन पर जीवन संभव है, की जानकारी भी ली जा सकती है।
यदि मिशन सफल होता है तो अमरीका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। अमरीका और रूस दोनों के चांद पर सफल उतरने से पहले कई अंतरिक्ष यान क्रैश हुए हैं, हालांकि चीन 2013 में चांग-3 मिशन के साथ अपनी पहली कोशिश में ही सफल होने वाला एकमात्र देश है।
चंद्रयान-3 द्वारा भारत अपने पड़ौसी देश चीन को अंतरिक्ष के क्षेत्र में एकतरफा वृद्धि दर्ज करने से रोक सकता है। चीन पहले ही अपने 3 अभियानों चांग ए-6, चांग ए-7 और चांग ए-8 को मंजूरी दे चुका है और रूस के साथ इसकी एक ग्रह स्टेशन बनाने की भी योजना है।
वर्णनीय है कि नासा का आर्वेमिस समझौता एक बहुपक्षीय निर्बाध्य व्यवस्था है, जो चांद, मंगल और अन्य खगोली शास्त्रों के गैर-अनुसंधानों और शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग के लिए एक प्रारूप प्रदान करता है। इस समझौते में मुख्य तौर पर अलग-अलग देशों के चंद्र मिशनों के बीच तालमेल बिठाने के लिए नासा और अमरीकी विदेश मंत्रालय ने यह समझौता स्थापित किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मौजूदा अमरीका दौरे के समय भारत अधिकारिक तौर पर इस समझौते में शामिल हो गया।
चंद्र मिशन का अब तक का सफर
चंद्रयान-3 के साथ-साथ भारतीय चंद्र मिशन के अब तक के सफर पर एक नज़र दौड़ाते हैं। चंद्रयान-3 चांद पर जाने की भारत की तीसरी कोशिश है। इस प्रोग्राम को भारतीय चंद्र मिशन प्रोग्राम के तौर पर जाना जाता है। पहले दो मिशन पूरी तरह से सफल नहीं हुए तब भी इनको असफल करार नहीं दिया जा सकता। दोनों मिशनों में ही भारत ने कुछ न कुछ हासिल ज़रूर किया है।
भारत ने अपना पहला चंद्र मिशन : चंद्रयान-1 वर्ष 2008 में शुरू किया था। उसमें एक आर्बिटर और इंपैक्ट प्रोब भी था। परन्तु यह सैकलटन करेटर के पास क्रैश हो गया। बाद में इस स्थान को जवाहर प्वाइंट का नाम दिया गया। इस मिशन द्वारा भारत चांद पर अपना झंड़ा लहराने वाला चौथा देश बन गया। उससे पहले अमरीका, रूस और जापान यह कामयाबी हासिल कर चुके थे। उस समय 312 दिनों बाद आर्बिटर का धरती से सम्पर्क टूट गया था। हालांकि जानकारी के मुताबिक सम्पर्क टुटने से पहले मिशन का 95 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया था। 
चंद्रयान-1 से लगभग एक दशक बाद भारत द्वारा चंद्रयान-2 लांच किया गया था। इसरो ने सितम्बर 2019 में चंद्रयान-2 को चांद पर उतारने की कोशिश की थी परन्तु उसका विक्रम लैंडर नष्ट हो गया था। तीन माह बाद नासा ने इसके मलबे को ढूंढ कर इसकी तस्वीरें जारी की थीं।
विक्रम लैंडर का नष्ट होना भारतीय वैज्ञानिकों के लिए बड़ा झटका था। इसरो के उस समय के प्रमुख के. सिवन लैंडर के नष्ट होने के साथ इतने मायूस हुए थे कि अपने आंसू रोक नहीं पाए थे। 
चंद्रयान-2 ने चांद पर पानी के कण ढूंढने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि विक्रम लैंडर चाहे असफल रहा परन्तु आर्बिटर उसके वातावरण के बारे में अहम जानकारियां एकत्रित करता रहा। इन तीनों चंद्र मिशनों में इसरो के 16 हजार वैज्ञानिक और इंजीनियर शामिल रहे।
चंद्रयान-3 को दरपेश चुनौतियां
चंद्रयान-3 को लेकर हर भारतीय जोश और जज़्बे के साथ भरा हुआ है हालांकि इसमें चुनौतियां भी जारी हैं।
पहली चुनौती है कि चांद पर भेजे यान का कंट्रोल मनुष्य के पास न होकर आर्टीफिशयल इंटैलीजैंस भाव कम्प्यूटर के पास होता है।
दूसरा यह कि चांद के जिस हिस्से पर चंद्रयान-3 के जाने की योजना है, उस हिस्से का रहस्य अभी बरकरार है। हम चांद के कौन से हिस्से में हैं तथा अन्य ऐसे सवालों का अंदाज़ा आनबोर्ड सैंसर से ही लगाया जा सकता है।
लेकिन सच्चाई यह भी है कि ये चुनौतियां ही हैं जो ज़िंदगी के रास्ते को बनाए रखती हैं और नामुमकिन समझे जाने वाले कामों की तरफ आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं।
हिन्दी के मकबूल शायर दुश्यंत कुमार ने जैसे लिखा है : 
‘कौन कहता है कि 
आसमां में सुराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो
तबीयत से उछालो यारो!’
ईमेल upma.dagga@gmail.com