गांवों और कस्बों में लाइब्रेरियों की कमी

लाइब्रेरियों को आज के युग में ‘ज्ञान का घर’ कहा जाता है। यूनिवर्सिटियों, स्कूलों और कालेजों की तरह हमें यहां से जानकारी, ज्ञान और मनोरंजन के लिए किताबें प्राप्त होती हैं।
हमारे गांवों और कस्बों में जैसे-जैसे विद्या का पसार हो रहा है। लाइब्रेरियों की ज़रूरत उतनी ही महसूस की जाने लगी है। विद्या के प्रसार के साथ लोगों की ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त करने की भावना में वृद्धि हुई है, परन्तु उनके पास इशते पैसे नहीं होते कि वह विभिन्न प्रकार की किताबें, समाचार-पत्र और पत्रिका खरीद सकें। कई पुराने समाचार पत्र, पत्रिकाएं और किताबें ऐसी होती है जो केवल लाइब्रेरियों में ही मिल सकती है। यदि गांवों में लाईब्रेरी की सुविधा होगी तो लोग उसका अधिक से अधिक फायदा ले सकेंगे। जिसमें से वह किताबें, पत्रिकाएं, समाचार-पत्र आदि में से देश की स्थिति, समाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति से अच्छी तरह अवगत होंगे। वह बहुत सी समाजिक कुरीतियों को खत्म करने में योगदान देंगे और वर्तमान समाज की समस्याएं प्रदूषण, भयानक युद्ध को फैलने के विरुद्ध भी अवाज़ उठाकर समाज के प्रति अपना फर्ज निभाएंगे और अपने फज़र्ों और अधिकारों को अच्छी तरह समझेंगे। लाइब्रेरी एक ज्ञान का साधन ही नहीं है, बल्कि यह मनोरंजन का साधन भी है। बहुत से विद्वानों ने ऐसी पुस्तकें भी लिखी हैं, जिनको पढ़कर मनुष्यों को नए विचार मिले और उन्होंने जीवन को कल्याणकारी बनाया। 
लाइब्रेरी को ‘शांति का मंदिर’ भी कहा गया है। इस प्रकार लाईब्रेरी मनुष्य के जीवन का एक ज़रूरी अंग है। भारतीय गांवों और शहरों के लोगों को जितनी जानकारी प्राप्त होगी, वह उतनी ही तरक्की करेंगे। इस कारण गांवों और शहरों में लाईब्रेरियों का प्रबंध सरकार को ज़रूर करना चाहिए।
-11वीं श्रेणी, सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल, मानूंपुर लुधियाना।