क्या भारत 2025 तक हो पाएगा तपेदिक से मुक्त ?

 

पूरी दुनिया में अनेक बीमारियां चुनौती बनी हुई हैं। लगभग सभी देश इन बीमारियों के खात्मे के लिए प्रयासरत्त हैं लेकिन विभिन्न कारणों से इन पर काबू पाना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसी बीमारियों में मानव इतिहास की सबसे पुरानी बीमारी कही जाने वाली तपेदिक यानी टीबी भी है। हालांकि तपेदिक का इलाज उपलब्ध है, फिर भी दुनिया में अन्य सभी संक्रामक बीमारियों की तुलना में तपेदिक से सर्वाधिक मौतें होती हैं। महामारियों का समाधान ढूंढने पर केन्द्रित संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने हाल में जो चेतावनी जारी की है, उसने तपेदिक को लेकर सबकी चिंताओं को बढ़ा दिया है।
 एजेंसी ने चेताया है कि तपेदिक संक्रमितों के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों का पता लगाने और रोग की रोकथाम के लिए उपायों को लागू करने में विफलता वर्ष 2035 तक करीब दस लाख मौतों का कारण बन सकती है। यह चेतावनी इसलिए डर पैदा करती है क्योंकि विश्व की लगभग एक चौथाई आबादी तपेदिक से संक्रमित है और उनमें सक्रिय बीमारी विकसित होने का जोखिम है, जो गम्भीर रूप धारण कर सकती है। खासकर, भारत जैसे देशों के संदर्भ में, जहां तपेदिक की जड़ें बहुत पुरानी और गहरी हैं। हमारे देश में तपेदिक उन्मूलन लम्बे समय से चुनौती बना हुआ है। देश में सरकारों ने इसके लिए व्यापक कदम उठाए हैं, परन्तु इस जानलेवा बीमारी के बारे में आज भी ज़रूरी जागरूकता का अभाव, संक्रमण से बचने के तौर-तरीकों की जानकारी न होने और रोगियों के समुचित इलाज के प्रति समुदाय में व्याप्त भ्रांतियां, लापरवाही और अंधविशस तपेदिक उन्मूलन में बाधा बना हुआ है।
ट्यूबरक्लोसिस बैक्टीरिया के ड्रॉपलेट इन्फेक्शन के कारण फैलने वाली इस बीमारी से प्रति वर्ष लाखों लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। तपेदिक संक्रमितों और इससे मरने वालों की संख्या भारत में भी काफी ज्यादा है। सरकार ने तपेदिक मुक्त भारत अभियान के तहत देश में वर्ष 2025 तक तपेदिक को खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
सरकारी आंकड़ों पर नज़र डालें तो पिछले आठ वर्षों में तपेदिक रोगियों की संख्या में 13 फीसदी कमी आई है।  केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का दावा है कि भारत ने अन्य देशों के मुकाबले तपेदिक उन्मूलन की दिशा में अच्छा प्रदर्शन किया है। वर्ष 2015 में जहां एक लाख की आबादी पर 256 लोग तपेदिक के शिकार थे, वहीं 2021 में यह संख्या 210 रह गई है। आकड़ों को देखें तो वर्ष 2015 से 2021 के मध्य तपेदिक रोगियों की तादाद 18 फीसदी घटी है। देश में तपेदिक के नए मामलों में कमी हुई है पर इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2020 में प्रति एक लाख आबादी पर 15 तपेदिक रोगियों की मौत हुई तो वर्ष 2022 में मौतों का यह आंकड़ा 23 पर पहुंच गया है।
तपेदिक का खात्मा हो, इसके लिए हमारी सरकार निश्चय ही गम्भीर है। विश्व में तपेदिक के खात्मे का समय 2030 निर्धारित किया गया है, लेकिन मोदी सरकार ने 2025 तक तपेदिक उन्मूलन का लक्ष्य रखा है। इस पर सरकार हर साल 17 लाख करोड़ रुपये व्यय कर रही है, लेकिन हर साल साढ़े चार लाख लोगों की तपेदिक से मौत होना स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। तपेदिक का एक रोगी पन्द्रह लोगों को संक्रमित कर सकता है। ऐसे यहां यह सवाल उठता है कि क्या देश को 2025 तक तपेदिक मुक्त करने का लक्ष्य अर्जित किया जा सकेगा? यह सवाल इसलिए बड़ा है क्योंकि लक्ष्य को हासिल करने के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। पहले के मुकाबले भारत में तपेदिक के नए मामलों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन वैश्विक स्तर पर तपेदिक के कुल मामलों में भारत का हिस्सा ज्यादा है। चिंता का बड़ा कारण भी यही है। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की ताजा चेतावनी के कारण यह चिंता और बढ़ जाती है। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने ज़ोर दिया है कि इस चुनौती के मुकाबले के लिए व्यापक रणनीति को लागू करना ही होगा। 
संयुक्त राष्ट्र एजेंसी, अमरीका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय और ऑरम इंस्टीट्यूट के एक संयुक्त अध्ययन के मुताबिक इस रणनीति को अपनाकर वर्ष 2035 तक साढ़े आठ लाख ज़िंदगियों की रक्षा की जा सकती है और अगर इस उपाय को लागू करने में विफल रहते हैं तो 2035 तक लगभग दस लाख लोगों की मौत होने का अंदेशा है।
ये नतीजे विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों के अनुरूप हैं, जिसके मुताबिक तपेदिक की रोकथाम के लिए उन लोगों को उपचार उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिनमें संक्रमण का जोखिम सर्वाधिक है। तपेदिक के खात्मे के लिए व्यापक स्तर पर काम करने की ज़रूरत है। एक ओर जहां तपेदिक मुक्त भारत के लिए जन आंदोलन के रूप में काम करना होगा, वहीं संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की ताज़ा चिंताओं पर ध्यान देते हुए रणनीति भी बनानी होगी। तपेदिक संक्रमितों के सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों का पता लगाने और रोग की रोकथाम के लिए उपायों को लागू करने में सफलता को सुनिश्चित करने के लिए समन्वित प्रभावी प्रयास करने होंगे अन्यथा न केवल विश्व में तपेदिक उन्मूलन के प्रयासों को धक्का लगेगा बल्कि भारत को तपेदिक मुक्त करने के सपने के पूरा होने पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। (युवराज)