राजनेताओं में बढ़ती अनैतिकता लोकतंत्र के लिए घातक

 

देश में जब भी चुनाव आते हैं तो राजनेताओं का बड़बोलापन व भाषा की मर्यादा सीमा लांघ जाती है। इस माहौल में देश में जाति, धर्म, लिंग भेद के नाम पर तरह-तरह के जुमले चलते हैं। चुनावों में अनैतिकता बढ़ जाती है। चुनाव में बढ़ते अनैतिक आचरण से लोकतंत्र की मर्यादा तार-तार हो रही है। चुनाव लड़ने वाले नेताओं से जनता यह अपेक्षा करती है कि वे अपनी भाषायी मर्यादा के साथ-साथ चुनाव में किसी भी प्रकार का ऐसा आचरण नही करें, जिससे आम जनता पर विपरीत असर पड़े। देश के राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे देश में उन लोगों को टिकट दें जो नैतिक व ईमानदार छवि वाले हों।
चुनाव लड़ना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन चुनाव में लोकतांत्रिक व्यवस्था के विपरीत आचरण करना राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा है। चुनाव भले ही महाविद्यालय के हो, पंचायत स्तर के हो, विधानसभा या लोकसभा के हों, लेकिन जब नैतिकता एवं मर्यादा को ताक में रखकर चुनाव लड़े जाते हैं तो चुनाव दंगल का रूप ले लेता है। वहां एक दूसरे के प्रति सम्मान, सद्भाव एवं देश के विकास की बात गौण हो जाती है जबकि चुनाव में नैतिक आचरण बहुत ज़रूरी है। नैतिक मूल्यों की रक्षा एवं विकास के लिए उन उम्मीदवारों को संकल्प लेना होगा जो देश के विकास में सहभागी बनना चाहते हैं। तभी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश की जनता के साथ समुचित न्याय किया जा सकता है।
चुनाव शुद्धि देश की जनता के सामने बहुत बड़ा विकल्प है। अगर जनता चुनाव शुद्धि को सफल बनाती है तो देश को एक स्वस्थ सरकार मिलेगी जिसके परिणामस्वरूप देश का बहुमुखी विकास होगा। चुनाव शुद्धि के लिए उम्मीदवार यह संकल्प लेें कि वे चुनाव में विजयी हों या न हों, किसी भी हालत में भ्रष्ट व अनैतिक तरीकों को इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिए नहीं करेंगे। इसी प्रकार सत्ता पर आसीन दल की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है कि चुनाव में सरकारी सम्पत्ति एवं साधनों का इस्तेमाल किसी भी प्रकार नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी जनता की है कि वह भय से या लोभ में आकर मतदान न करे। तभी स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल रखा जा सकता है।
जब चुनाव में अनैतिक आचरण नहीं होगा तब योग्य उम्मीदवारों का सामने आना तय है। वर्तमान हालातों में चुनावों की दशा देखकर ईमानदार नेता स्वयं ही चुनावों से किनारा कर लेते हैं, जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था व विकास के लिए अच्छी बात नहीं है। देश की जनता को सजग व जागरूक होना होगा और योग्य उम्मीदवारों का चयन करना होगा। 
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जनता का प्रशिक्षित होना बहुत जरूरी है, जब जनता जागरूक होगी तभी सही मायने में लोकतंत्र की जीत होगी। लोकतंत्र की नींव अभय पर टिकी है। जब जनता में भय का भाव पैदा होगा तो देश का लोकतंत्र खतरे में होगा। 
आज आवश्वयकता है चुनाव शुद्धि अभियान की। जब तक चुनाव पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होंगे तक तक देश के विकास की बात सोची ही नहीं जा सकती। जब तक बुद्धिजीवी वर्ग, मीडिया आदि पूरी तरह सक्रिय नहीं होंगे, तब तक चुनाव शुद्धि की कामना नहीं की जा सकती। 
देश भर में नैतिकता के आधार पर चुनाव शुद्धि अभियान चलाना चाहिए। मतदान की प्रक्रिया जितनी सहज और शुद्ध होगी, लोकतंत्र उतना ही स्वस्थ होगा। जब मानव पर स्वार्थ हावी होता है तो अनैतिकता के बीज अंकुरित होने लगते हैं। (युवराज)