दिल में देशप्रेम की उमंग भर देती है  सेलुलर जेल की यात्रा

लगभग दस वर्ष पहले मेरा एक दोस्त स्थायी रूप से पोर्ट ब्लेयर शिफ्ट हो गया था। उसका घर सिटी सेंटर के पास ही है, जहां मैं उसके निमंत्रण पर ठहरा हुआ था। जब वह सुबह अपने ऑफिस जाने लगा तो मैंने सेलुलर जेल जाने की योजना बनायी। इसे काला पानी या अंडेमान जेल भी कहते हैं, और यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन दिनों के सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय स्मारकों में से एक है। सिटी सेंटर से तकरीबन दो किमी की दूरी तय करने के बाद मेरे सामने विशाल सेलुलर जेल थी,जिसका ब्रिटिश सरकार ने 1906 में निर्माण कराया था। इस किलाबंद सेलुलर जेल से पहले अंडेमान में एक खुली जेल थी। अब इस जेल काम्प्लेक्स से जुड़ा एक म्यूजियम भी है।
सेलुलर जेल में 7 विशाल विंग्स हैं, जिनमें सैंकड़ों सेल्स या कोठरियां हैं। इन्हीं में ही कैदियों को रखा जाता था, जिनमें से अधिकतर राजनीतिक बंदी हुआ करते थे। जेल के गलियारे में कदम रखते ही मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोठरियों में स्वतंत्रता सेनानी अब भी बंद हैं और ब्रिटिश राज के सिपाही उन पर अकल्पनीय जुल्म ढा रहे हैं। यह भी मुमकिन है कि इस जेल में किये गये जुल्मों व ज्यादतियों की दास्तानें जो मैंने पढ़ी व सुनी थीं, वे सभी मेरे जेल के भीतर होने की वजह से याद आ गई हों। ब्रिटिश राज के दौरान सेलुलर जेल अपनी अलग थलग लोकेशन और अमानवीय स्थितियों के लिए कुख्यात थी। स्वतंत्रता सेनानियों को जब काला पानी की सज़ा सुनायी जाती थी तो उन्हें इसी जेल में भेजा जाता था। ‘काला’ का अर्थ है मौत जोकि यहां भेजे गये कैदियों का लाज़िमी अंत समझी जाती थी और चूंकि जेल पानी से घिरे द्वीप पर स्थित है, इसलिए काला पानी की सज़ा का अर्थ था एक ऐसे स्थान पर कैद किया जाना जहां केवल मौत से ही छुटकारा मिल सकता था।
सेलुलर जेल उपनिवेशवाद के इतिहास की सबसे भयावह और सबसे मज़बूत जेल थी, जो 10 वर्ष की लम्बी अवधि में बनकर तैयार हुई थी। जितनी क्रूर यातनाएं यहां दी गईं, उतनी शायद ही किसी अन्य जेल में दी गई हों। यातना देने के बाद अक्सर कैदी को फांसी पर भी लटका दिया जाता था। विरोधाभास यह है कि कैदियों को रखने के लिए इस जेल का निर्माण कैदियों द्वारा ही कराया गया था। पास के पहाड़ से लगभग 20,000 क्यूबिक फीट स्थानीय पत्थर कैदियों से खदान करके मंगवाया गया और फिर उन्हीं से ही 30,00,000 ईंटें बनवायी गईं, तब जाकर  सेलुलर जेल का निर्माण हुआ। इस जेल का आर्किटेक्चर पनोप्टिकोन मॉडल पर आधारित है। यूनानी पौराणिक कथाओं में पनोप्टस सौ आंखों वाला दैत्य था और वह बहुत ही उपयोगी चौकीदार था। सेलुलर जेल की बिल्डिंग में 7 विंग्स हैं और बीच में एक टावर है जिसका प्रयोग गार्ड्स कैदियों पर नज़र रखने के लिए करते थे। जेल के डिज़ाइन के पीछे की योजना यह थी कि सभी कैदियों पर केवल एक चौकीदार नज़र रख सके और कैदियों को यह मालूम न हो सके कि उनकी निगरानी की जा रही है या नहीं।
हालांकि सभी सेल्स पर एक चौकीदार तो एक साथ नज़र नहीं रख सकता, लेकिन कैदियों को सदैव यह लगता था कि वे हर समय निगरानी में हैं। टावर से रौशनी सीधे विंग्स पर पड़ती थी। अलार्म के लिए टावर में एक बड़ी सी घंटी थी। इस जेल की 693 कोठरियां सभी बराबर की हैं, 3-3 मीटर चौड़ी व ऊंची। सेलुलर जेल अपने अर्थ के अनुसार वास्तव में ‘एकांत जेल’ थी, जिसमें किसी भी प्रकार का कम्यूनिकेशन असंभव था और प्रतिबंधित भी। इस जेल से ऐतिहासिक ब्रिटिश मुख्यालय (रोस आइलैंड) को देखा जा सकता है।
बहरहाल, इस जेल में घूमते हुए मैं सोचने लगा कि यहां विख्यात स्वतंत्रता सेनानियों जैसे दीवान सिंह कालापानी, फजले-हक खैराबादी, योगेन्द्र शुक्ला, बटुकेश्वर दत्त, मौलाना अहमदुल्ला, मौलवी अब्दुल रहीम सादिकपुरी, मौलवी लियाकत अली, बाबूराव सावरकर, विनायक दामोदर सावरकर, भाई परमानंद, शादान चन्द्र चटर्जी, सोहन सिंह, वामन राव जोशी और नन्द गोपाल ने अपने दिन कैसे और किन मुसीबतों में गुज़ारे होंगे। अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने तो इसी जेल में दम तोड़ दिया था। भगत सिंह के भक्त महावीर सिंह, मोहित मोइत्रा व मोहन किशोर नामदास आज़ादी उनके परवानों में से हैं जिन्होंने सेलुलर जेल में अपने जीवन की अंतिम सांस ली। कुछ ने यहां से भागने का प्रयास भी किया और पकड़े गये। वीडी सावरकर ने सेलुलर जेल तोड़ कर भागने की योजना बनायी थी, लेकिन शिप में बैठते समय हिरासत में ले लिए गये। 1942 में जापानियों ने अंडेमान पर कब्जा कर लिया था, लेकिन दूसरे विश्व-युद्ध के बाद यह फिर ब्रिटिश शासन के पास आ गया।
भारत के स्वाधीनता आंदोलन को समझने के लिए सेलुलर जेल की यात्रा ज़रूरी है। यहां पर्यटकों के लिए दि में दो बार विशिष्ट लाइट एंड शो आयोजित की जाती है, सुबह हिंदी में व शाम अंग्रेज़ी में, जिसके ज़रिये आप स्वतंत्रता आंदोलन पर दृष्टिपात कर सकते हैं और साथ ही महसूस कर सकते हैं कि कैदियों को किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। सेलुलर जेल को जब राष्ट्रीय स्मारक बनाया गया तो उसके साथ एक म्यूजियम भी तैयार किया गया, जिसे देखने के बाद देशप्रेम स्वत: हिलेरें लेने लगता है।
 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर