आज़ादी की लड़ाई में गांधी जी की भरोसेमंद महिला योद्धा

गांधी जी ने अपने नियमित डायरी लेखन में इस बात की कई बार पुष्टि की है कि उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी से बहुत कुछ सीखा है। वैसे गांधी जी महिलाओं के प्रति बचपन से ही भक्ति और विश्वास की भावना रखते थे। जब वह दक्षिण अफ्रीका में एक कामयाब कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ने के बाद भारत आए, तब तक हिंदुस्तान में आज़ादी की लड़ाई काफी मजबूत हो चुकी थी और इसमें कई महत्वपूर्ण महिलाएं हिस्सेदारी भी कर रही थीं, लेकिन उनकी तब तक वैसी अग्रिम और हरावल भागीदारी नहीं थी, जैसी बाद में महात्मा गांधी ने प्रयत्न और प्रोत्साहन से हुई। अरुणा आसफ अली को महात्मा गांधी ने ही अग्रिम मोर्चा संभालने के लिए प्रेरित किया था। 8 अगस्त, 1942 की रात गांधी जी जब भारत छोड़ो आन्दोलन का अपना तूफानी संबोधन कर रहे थे, तो उन्हें अनुमान था कि रातो रात ही सारे बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए जायेंगे। इसलिए उन्होंने पहले से ही अगले दिन सुबह की मुख्य भूमिका के लिए अरुणा आसफ  अली को तैयार कर लिया था। बाद में वही हुआ और अरुणा आसफ  अली ने ही तिरंगा लहरा कर आन्दोलन की कमान संभाली।
दरअसल जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़े तो उन्होंने खुद लिखा कि वह आज़ादी की लड़ाई में हिस्सेदारी कर रहीं कई महिलाओं का बहुत सम्मान करते हैं। इन महिलाओं में शामिल थीं श्रीमती एनी बेसेंट, सरोजनी नायडू, कमला देवी चट्टोपाध्याय, राजकुमारी अमृत कौर और पुष्पाबेन मेहता। गांधीजी का मानना था कि महिलाएं सभी स्तरों पर भारत को बदलने में सक्षम हैं।
 साथ ही उनका इस बात को लेकर भी दृढ़ मत था कि बिना महिलाओं की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी, हम आज़ादी की यह लड़ाई जीत नहीं सकते। इसलिए उनका जोर आज़ादी की लड़ाई के हर स्तर पर महिलाओं को बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी देने का था। कई इतिहासकारों ने लिखा है कि आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी द्वारा महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा महत्व देने का ही यह नतीजा था कि जंग-ए-आज़ादी का पूरा नक्शा ही बदल गया। वास्तव में गांधी जी राजनीतिक लड़ाई में महिलाओं की ताकत को दक्षिण अफ्रीका में ही सही से समझ चुके थे। गौरतलब है कि दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी ने पहले वहां रह रहे भारतीयों और दूसरे अश्वेतों की बराबरी की कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती। बाद में उन्होंने उपनिवेशवादी अंग्रेजों के विरुद्ध राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई भी लड़ी और वह भी  जीती। इन दोनों लड़ाइयों में उन्होंने महिलाओं को बड़ी भागीदारी दी थी। वही प्रयोग उन्होंने भारत में भी आ कर किया।
भारत लौटने के बाद गांधी जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध जो पहला बड़ा मोर्चा खोला, वह चम्पारण का आंदोलन था। गांधी जी का हिंदुस्तान में यह पहला सबसे बड़ा एक्सपोजर था और आज़ादी की लड़ाई में उनके इस पहले कदम में कस्तूरबा भी उनके साथ थीं। गांधी जी ने सोच-विचार करके बा को इस पहली बड़ी लड़ाई में अपने साथ रखा था ताकि महिलाओं की इस जंग में बड़ी भूमिका के लिए पृष्ठभूमि तैयार की जा सके। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में महिलाओं की व्यापक भूमिका तय करने के लिए एक फॉॅर्मूला तैयार किया था।  उनके इस फार्मूले के तीन हिस्से थे जिनमें पहला हिस्सा यह था कि गांधी जी उन महिलाओं को बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल में रहना ज़रूरी मानते थे, जिन पर घर के बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल का जिम्मा था। गांधी जी का स्पष्ट विचार था कि ऐसी महिलाओं को आंदोलन में भाग नहीं लेना चाहिए बल्कि अपनी इस सामाजिक और भावनात्मक जिम्मेदारी को पूरा करना चाहिए। गांधी जी के फार्मूले का दूसरा हिस्सा यह था कि जिन महिलाओं पर घर और बच्चों की जिम्मेदारी नहीं है, उन्हें आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
हालांकि वह यह भी मानते थे कि जो महिलाएं अविवाहित हैं और वो देश की आज़ादी के लिए अविवाहित रह सकती हैं, वह उनका स्वागत करेंगे। लेकिन वह इस बात से कतई सहमत नहीं थे कि उनकी इस जिम्मेदारी के लिए निर्णय कोई और ले। गांधी जी बहुत लोकतांत्रिक थे और महिलाओं के प्रति दिल में बहुत सम्मान रखते थे। इसलिए वह उन्हें आज़ादी की लड़ाई के हर नये आयाम से जोड़ना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने अपने फार्मूले के तीसरे और आखिरी हिस्से में उन महिलाओं को पूर्ण कार्यकर्ता बनने का आह्वान किया, जो अविवाहित थीं और जंग-ए-आज़ादी के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी कुर्बान करने के लिए तैयार थीं।
हालांकि यह बात भी सच है कि आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी महिलाओं को लेकर नहीं आये। महिलाओं की यह भागीदारी पहले दिन से रही है। 1857 में शुरू हुई आज़ादी की इस लड़ाई में न सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई और बेगम हजरत महल जैसी संभ्रांत महिलाएं कूद पड़ीं बल्कि उसके बहुत पहले ही मौजूदा झारखंड के इलाके में सम्पन्न हुए विरसा मुंडा आन्दोलन में भी वे शामिल रही थीं। साथ ही ऐतिहासिक कलकत्ता कूच का भी वे हिस्सा रही थीं। रानी चेन्नम्मा भी ऐसी ही एक उदाहरण थीं तथापि, इसके बाद भी कहा यही जाएगा कि आज़ादी की  जंग में महिलाओं के योगदान को नये मुकाम तक गांधी जी ने ही पहुंचाया। उन्होंने महिलाओं को जंग के हर मोर्चे पर बराबरी की भागीदारी का अवसर दिया। इसके पहले के तमाम विद्रोहों और लड़ाई के मोर्चों पर अपना सर्वस्व कुर्बान कर देने के बाद भी महिलाओं को इस पूरे संघर्ष का वैचारिक हिस्सेदार नहीं बनाया गया था।
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