एशियाई चैम्पियन्स ट्रॉफी  हॉकी में खूब चमके कई सितारे...!

निश्चित रूप से सामूहिक टीम प्रयास के कारण भारत ने चेन्नई में 12 अगस्त 2023 को खेले गये एशियन चौंपियंस ट्राफी (एसीटी) हॉकी के फाइनल में मलेशिया को 4-3 से हराकर अपनी चौथी खिताबी जीत दर्ज की। जबकि भारत फाइनल में मध्यांतर तक 1-3 से पीछे चल रहा था। लेकिन खेल के दूसरे हाफ में हमने शानदार वापसी की और मैच जीत लिया। इसके पहले भारत ने सेमीफाइनल में जापान 5-0 से करारी शिकस्त देकर फाइनल में जगह बनाई थी। लेकिन फाइनल के पहले हाफ में हम मलेशिया से काफी पिछड़ गये थे। लेकिन इस पूरे टूर्नामैंट ही हमारे कुछ खिलाड़ी दूसरों के मुकाबले ज्यादा चमके और अंतत: हमने खिताब अपने नाम किया। इस पूरे टूर्नामैंट में विशेष रूप से कप्तान हरमनप्रीत सिंह, हार्दिक सिंह, मनप्रीत सिंह और करथि सेल्वम ने जादुई खेल दिखाया। चेन्नै के मेयर राधाकृष्णन स्टेडियम में मलेशिया के विरुद्ध सनसनीखेज़ वापसी करके ट्राफी अपने नाम करने से पहले भारत ने यह चौंपियनशिप 2011 व 2016 में अकेले जीती थी, जबकि 2018 में वह पाकिस्तान के साथ संयुक्त विजेता था। इस विजय के साथ भारत के मनोबल में एशियन गेम्स से पहले ज़बरदस्त इज़ाफा हुआ है क्योंकि वह एफआईएच रैंकिंग में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है।
इस टूर्नामैंट के बाद 2771.35 अंक के साथ भारत इंग्लैंड (2763.50 अंक) से आगे निकल गया है और अब सिर्फ टॉप रैंक नीदरलैंड्स (3095.90 अंक) व बेल्जियम (2917.87 अंक) से ही हम पीछे हैं। यह दूसरा अवसर है जब भारत एफआईएच रैंकिंग में तीसरे स्थान पर पहुंचा है। इससे पहले हमने यह रैंकिंग 2021 में पायी थी, जब टोक्यो में 41 सालों बाद हमने ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था।  हरमनप्रीत सिंह बिना किसी शक के एसीटी 2023 के एमवीपी (मोस्ट वैल्यूएब्ल प्लेयर) रहे। उन्होंने 9 गोल किये जबकि दूसरे स्थान पर 5 गोलों के साथ मुहम्मद खान उनसे 4 गोल पीछे रहे। हरमनप्रीत ने भारत को संकट से निकालने के लिए अपनी ड्रैगफ्लिक्स में गति व प्लेसमेंट एकदम उचित समय पर हासिल किया। उन्होंने अपने गोल की ठोस रक्षा की और अनेक अवसरों पर इंच-परफेक्ट एरियल बॉल्स को डेंजर ज़ोन में भेजा।
हार्दिक सिंह रक्षा व आक्रमण के बीच प्रभावी लिंकमैन रहे। बीच मैदान में उन्होंने अनेक बार गेंद को प्रतिद्वंदी खिलाड़ी से छीना, फ्लेंक हमले आरंभ कराये और गोल की ओर बढ़ते फॉरवर्ड खिलाड़ियों को स्टीक पास दिए। उन्होंने उप-कप्तान की आदर्श भूमिका अदा की और संकट के पलों में वह ही सबसे भरोसेमंद खिलाड़ी साबित हुए। उन्होंने परफेक्ट पेनल्टी कार्नर भी लिए जिनसे हरमनप्रीत को गोल दाग कर चमकने का अवसर मिला। मनप्रीत सिंह ने हार्दिक व विवेक सागर प्रसाद के साथ शानदार तालमेल बिठाया और फॉरवर्ड लाइन के लिए इंजन का काम किया। वह अपनी रक्षात्मक भूमिका से अधिक आज़ादी के साथ आगे निकले और हमले की लहरों के स्रोत बने। उन्होंने निस्वार्थ होकर मंदीप सिंह व आकाशदीप सिंह जैसे खिलाड़ियों को मैच जीतने वाले गोल स्कोर करने में मदद की। करथि सेल्वम ने अपने शानदार खेल से साबित किया कि वह उन युवा फॉरवर्ड्स में हैं जो भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जबरदस्त तहलका मचाने वाले हैं। उन्होंने सुखजीत सिंह, गुरजंत सिंह और शमशेर सिंह के साथ अच्छा तालमेल बिठाया और भारत के लिए फील्ड गोल व पेनल्टी कार्नर के अवसर उत्पन्न किये। वह टीम में तमिलनाडु से एकमात्र खिलाड़ी थे, चेन्नै के दर्शकों ने उनका अच्छा हौसला बढ़ाया और उन्होंने एशियाड के लिए टीम में अपनी जगह पक्की कर ली।
हालांकि मेज़बान भारत ने एसीटी के फाइनल तक पहुंचने के दौरान पाकिस्तान (क्वार्टरफाइनल) व जापान (सेमीफाइनल) पर शानदार जीत दर्ज की थीं, लेकिन फाइनल में मलेशिया के विरुद्ध जो गज़ब की वापसी की वह किसी परीकथा से कम न थी। मलेशिया 3-1 से आगे चल रहा था और मैच में मात्र 16 मिनट शेष रह गये थे। ऐसे में भारत ने सनसनी मचा दी और लगातार 3 गोल करके 4-3 से ट्राफी अपने नाम कर ली। आसान जीत महान होती हैं, लेकिन जब चीज़ें आपके अनुरूप न जा रही हों तब वास्तव में आपके चरित्र की परीक्षा होती है। अब जब एशियन गेम्स में मात्र पांच सप्ताह रह गये हैं तो भारत के लिए ऐसे कठिन मैच से गुज़रना आवश्यक था ताकि वह अपनी मानसिक क्षमता की गहराई को खोज सके। यह परीक्षा फाइनल में होना अधिक लाभकारी साबित हुई। एशियाड से पहले इस किस्म की जीत का महत्व कोच क्रैग फुल्टन अच्छी तरह से जानते हैं। उनके अनुसार, ‘आपको यह मालूम होना चाहिए कि आप पिछड़ने के बाद भी आगे निकल सकते हैं। जब आप 3-0 से आगे होते हैं तो खेलना आसान होता है, लेकिन पीछे रहते हुए चेज़ करना कठिन होता है। साथ ही जब आप 3-0 से आगे होते हैं और विपक्ष एक या दो गोल कर देता है, तो आप फिर भी कैसे जीतते हैं, यह भी बड़ी चुनौती होती है। एशियन गेम्स से पहले हमने ऐसे कई गेम कवर कर लिए हैं, लेकिन अभी कुछ काम करना शेष है।’
इस चुनौती को कप्तान हरमनप्रीत भी अच्छी तरह समझते हैं जबकि वह बिना किसी शिकायत के दोहरी भूमिका निभा रहे थे- नेतृत्व की और प्रमुख गोल-स्कोरर की। फाइनल जैसी कठिन स्थिति से बाहर निकलने के लिए महत्वपूर्ण यह है कि अपना संयम न खोया जाये। हरमनप्रीत के अनुसार, ‘हमने मैच से पहले ही तय कर लिया था कि हम चाहे आगे हों या पीछे अपना गेमप्लान नहीं बदलेंगे। हमें मानसिक रूप से मज़बूत रहना है। हम टीमवर्क, विश्वास व अनुशासन के कारण ही वापसी कर सके।’ बहरहाल, असल परीक्षा से पहले इस प्रतियोगिता को ड्रेस रिहर्सल ही कहा जा सकता है। असल खेल तो एशियन गेम्स हैं, जहां सीधे ओलंपिक बर्थ दांव पर है। लेकिन जिस प्रकार से भारतीय लड़के खेल रहे हैं, उससे यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि चेन्नै के बाद चीन में भी सफलता मिलेगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर