मेहनत का फल

एक गरीब विधवा थी। वह बड़ी नेक, मेहनती, ईमानदार और सच बोलने वाली महिला थी। उसका एक बारह वर्षीय पुत्र था। उसका नाम कपिल था। कपिल अपनी मां को बहुत प्यार करता था। मां हमेशा उसे अच्छे काम करने की शिक्षा देती थी। कुछ बातें तो ऐसी थी जिन्हें कपिल ने मां की शिक्षा मानकर बचपन से ही अपने जीवन में उतार लिखा था। जैसे काम से कभी जी न चुराना, कड़ी मेहनत करना, किसी को हानि न पहुंचाना, अपने बड़ों का आदर सम्मान करना और समय का मूल्य समझना आदि।
एक दिन कपिल गली में अपने साथियों के साथ क्रिकेट खेल रहा था। बाल उसके हाथ में थी। उसने बाल तेजी से उछाल कर फेंकी तो हाथ बहक जाने के कारण बाल सामने वाली दुकान के शोकेस पर जा लगी। शीशा टूट कर टुकड़े टुकड़े हो गया। यह देखकर सारे साथी पिटाई के डर से भाग गये। कपिल अकेला रह गया, वह नहीं भागा।
दुकान का मालिक गुस्से में भरा हुआ कपिल के पास आया और बाला-शीशा किसने तोड़ा है?
अंकल, गेंद गलती से मेरे हाथ से छूटकर उस ओर चली गई जिस कारण शीशा टूट गया। इसके लिए मैं ही दोषी हूं। कपिल ने कहा।
अब इसका मूल्य क्या तेरा बाप चुकायेगा?
मेरा बाप जीवित नहीं है। गरीब मां है। मैं शीशे का मूल्य चुकाने के लिए आप के यहां मजदूरी करने के लिए तैयार हूं। कपिल ने बड़ी नम्रता से कहा।
दुकानदार का क्रोध शांत हुआ। उसने नुकसान के बदले में कपिल को एक सप्ताह तक दुकान पर मजदूरी करने के लिए कहा।
कपिल ने दुकान पर एक सप्ताह तक सहर्ष मजदूरी करना स्वीकार कर लिया।
कपिल एक सप्ताह तक पूरी मेहनत, लगन और मुस्तैदी से दुकान पर काम किया। उसके हंसमुख स्वभाव और मीठी बोली से ग्राहक भी प्रभावित हुए।
कपिल के एक सप्ताह के काम से दुकानदार भी बड़ा प्रभावित हुआ। उसने उसे स्थायी रूप से अपने यही नौकर रख लिया। दुकानदार ने जब देखा कि कपिल को पढ़ने लिखने का बड़ा चाव है तो उसने उसके लिए यह व्यवस्था भी कर दी।
कपिल पढ़ता भी रहा और दुकान के कामों को भी बिना किसी रूकावट के बखूबी निपटाता रहा। कपिल के सश्वुणों, मेहनत और काम करने के ढंग से व्यापार इतना बढ़ गया कि हजारों का व्यापार लाखों में होने लगा था। दुकानदार बढ़ती आयु के कारण अधिक काम काज नहीं कर पाता था। सब कुछ कपिल ने ही संभाल रखा था। अपने अथक परिश्रम और ईमानदारी के कारण उसने मालिक का इतना मन मोह लिया था कि उसने उसे दुकान में अपना साझीदार ही बना लिया था। कुछ ही समय में कपिल एक सम्पन्न व्यक्ति बन गया। अपने जीवन की सफलता का सारा श्रेय वह अपनी मां को ही देता था। वह अपनी मां को प्यार करता था। मां को भी अपने पुत्र पर बड़ा नाज था। सच है, सच्चाई, ईमानदारी, कड़ी मेहनत और वाणी की मधुरता मनुष्य को सफलता की सीढ़ी चढ़ाते हैं। (उर्वशी)