पड़ोसियों से प्रेम

रामबाग नाम एक जंगल था। उसमें कई हरे-भरे वृक्ष थे। उन वृक्षों पर अनेक प्रकार के पक्षी रहते थे। उसी जंगल में एक पीपल का वृक्ष था। उसकी एक डाल पर बगुलों का बसेरा था। दूसरी डाल पर कौवे रहते थे। पास में एक काला सांप रहता था। सांप ने दो एक बार पक्षियों के बच्चे खा लिये। सभी पक्षी दुखी थे।
वृक्ष के कोटर में एक नेवला रहता था। वह दयालु और ईमानदार था। कभी-कभी जब वह अस्वस्थ होता तो वृक्ष पर रहने वाले पक्षी उसे कुछ दाने दे दिया करते। नेवला पक्षियों से बहुत खुश था।
पक्षियों की चिन्ता देखकर नेवले ने कहा-’भाइयो, आप लोग दुखी न हों। मैं जिस तरफ रहता हूं सांप उसकी दूसरी ओर से चढ़ता है। मैं देख नहीं पाता। यदि सांप पेड़ पर चढ़े तो पेड़ का कोई पक्षी चिल्ला देगा-‘नेवला दादा, काला आया’, मैं पेड़ पर चढ़ जाऊंगा और या तो सांप को मार दूंगा या भगा दूंगा।
उस दिन से जब सभी पक्षी दाना चुगने जाते तो कोई एक पक्षी बगुला या कौवा रखवाली के लिए रह जाता। एक दिन एक बगुला रह गया था। सांप कौवे की डाली पर चढ़ा। बगुले ने आवाज़ लगायी। नेवला ऊपर चढ़ा और सांप भाग गया।
एक दिन एक कौवे से सांप ने कहा-‘भाई तुम्हारा और हमारा रंग एक जैसा है। बगुले गोरे होते हैं। उनको अपनी जात का घमंड है। मैं उनकी सफाई करना चाहता हूं। तुम चुप रहना।’
मूर्ख कौवे को सांप की बात जंच गयी। दूसरे दिन सांप बगुले वाली डाल पर चढ़ गया। कौवा चुप रहा। सांप ने बगुलों के दो तीन बच्चे खा लिये। बगुलों के बहुत बच्चे नहीं थे इसलिए सांप का पेट नहीं भरा। वह कौवे वाली डाल पर गया। एक बच्चे को खाने लगा। यह देखकर कौवे ने कहा-‘आप तो हमारे मित्र हैं। ऐसा क्यों करते हैं?’
सांप ने कहा-मैं अपना पेट पालना चाहता हूं। जब तुम अपने साथ रहने वालों के मित्र नहीं हो सकते तो मेरे क्या होगे? सांप ने कौवे के दूसरे बच्चे को भी साफ किया। किसी प्रकार कौवा चिल्लाया। जब तक नेवला ऊपर आया सांप चला गया था। बाद में कौवे को अपनी भूल मालूम हुई और सभी बगुलों तथा कौवों ने उसका तिरस्कार किया।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि अपने पड़ोसियों से कभी विश्वासघात नहीं करना चाहिए। मिलकर रहने वाले पड़ोसी ही सुखी होते हैं। (उर्वशी)