मणिपुर में शांति हेतु बहुत संकरा है आगे का रास्ता 

देश की संसद में चर्चा तो मणिपुर को लेकर थी लेकिन वह विमर्श मणिपुर को और घायल तथा निराश कर चला गया। एक राज्य का हर इन्सान आज संविधान के बनिस्पत हथियार पर भरोसा कर रहा है। एक राज्य जहां के लोग गत सौ दिनों से सोये नहीं हैं। हजारों लोग भय, अनिद्रा, भोजन और दवा के अभाव में मानसिक रोगी बन गए हैं। लगभग 12,600 लोग करीबी राज्य मिज़ोरम में पलायन कर गये। दिल्ली और अन्य स्थानों पर भाग गए। अब वहां के लोग संसद से नाउम्मीद हो गए हैं और हथियारों पर एतबार बढ़ गया है। हो भी क्यों नहीं, हर एक के पास अत्याधुनिक हथियार है और सुरक्षा बलों के शास्त्रों का ज़खीरा लुट चुका है। राज्य के उखरूल जिले के कुकी थोवाई गांव में फिर गोलीबारी होने की सूचना है। इस दौरान तीन क्षत-विक्षत शव मिले।
इधर पुलिस थानों में इतने अधिक अपराध पंजीबद्ध हो चुके हैं कि मणिपुर पुलिस के पास न तो इतना स्टाफ  है और न ही न्यायिक तंत्र की इतनी क्षमता कि सभी को न्याय मिल पायेगा। ज़ाहिर है कि यह असंतोष को बढ़ाएगा और वहां समाज के पास जिस दर्जे के हथियार हैं, उन पर लोगों का भरोसा बढ़ेगा।  6 मई से 30 जुलाई तक ही राज्य में  6523 मुकद्दमे दर्ज किये गये। इसके अलावा अभी ज़ीरो एफ.आई.आर. की संख्या 11,414 तक पहुंच गई है। अभी तक दर्ज मामलों में हत्या के महज 72 मुकद्दमे हैं जबकि वहां मौत का आंकड़ा 178 से पार है। सामूहिक दुष्कर्म के तीन, महिलाओं से अश्लील  हरकत के 6 केस हैं। 4454 मामलों में आगज़नी और 4148 केसों में लूट की धारा लगी है। 46 केस पूजा स्थलों को नुकसान  पहुंचाने के हैं जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि इस तरह के अपराध सौ से अधिक है। ये अधिकांश अपराध सेशन ट्रायल के हैं अर्थात जिनमें सात साल से अधिक की सज़ा है। अब मणिपुर में न इतनी पुलिस है जो इनकी विवेचना कर सके, न इतनी अदालतें हैं कि मुकद्दमों की सुनवाई कर सकें, न ही सरकारी वकील। 
 विष्णुपुर हिंसाग्रस्त मणिपुर का कस्बा, आबादी बामुश्किल 23 हज़ार,  लेकिन मणिपुर की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता है, या कहलाता था। यहां कई सुंदर और कई प्रचीन विष्णु मंदिर हैं। दुनिया की अनूठी लोकटक झील यहीं है और नेताजी सुभाष चद्र बोस की आईएनए ने सबसे पहला ध्वज इसी जिले के मोइरंग  में फहराया था। यहां से सड़क मार्ग से चलें तो 17 किलोमीटर दूर ही म्यांमार की इरम मेज्रव  सीमा है। ् सीमा पार म्यांमार का यह इलाका उग्रवादियों के कैम्प के लिए कुख्यात है।  इतने  संवेदनशील स्थान पर अभी तीन अगस्त को जो हुआ, वह  इससे पहले शायद नहीं हुआ। 45 गाड़ियों में सवार कोई 500 लोगों ने दिन में साढ़े नौ बजे नरसेना स्थित इंडिया रिज़र्व बटालियन (आईआरबी)-2 के मुख्यालय पर धावा बोल दिया। आधे घंटे तक वहां इन लोगों का कब्जा रहा।
यदि मोइरांग पुलिस स्टेशन में आईआरबी के क्वार्टर मास्टर ओ. प्रेमानंद सिंह द्वारा दर्ज शिकायत पर भरोसा करें तो हमलावरों ने सुबह 9:45 बजे के आसपास मुख्य द्वार पर संतरी और क्वार्टर गार्ड को अपने कब्जे में ले लिया। फिर उन लोगों ने शस्त्रागार के दो दरवाज़े तोड़ कर भारी संख्या में हथियार, गोला-बारूद, युद्ध सामग्री और अन्य सामान लूट लिया। इसमें एक ए.के. सीरीज असॉल्ट राइफल, 25 इंसास राइफल, 4 घातक राइफल, 5 इंसास एलएमजी, 5 एमपी-5 राइफल, 124 हैंड ग्रेनेड, 21 एसएमसी कार्बाइन, 195 एसएलआर, 9 एमएम के 16 पिस्तौल, 134 डेटोनेटर, 23 जीएफ  राइफल, 51 एमएम एचई के 81 बम के साथ 19 हज़ार कारतूस थे। दावा तो यह भी है कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए 320 राउंड गोला बारूद और 20 आंसू गैस के गोले दागे गए थे। आश्चर्य है कि न तो इससे कोई घायल हुआ और न पकड़ा गया।
मणिपुर में जब से उपद्रव शुरू हुआ है, तब से  सुरक्षा बलों के हथियार तो लूटे ही गए, इम्फाल शहर की कई  हथियार की दुकानों को भी लूट लिया गया। कोई चालीस लाख आबादी वाले राज्य में पहले से ही एक लाख बन्दूक लायसेंस हैं। कोई प्रतिबंधित संगठन अपने हथियार अपने पास रख सकता है। इसका विधिवत समझौता केंद्र सरकार के साथ है। ऐसे हथियारों की संख्या कितनी है? किसी को नहीं पता। 
यह सरकारी आंकड़ा है कि तीन अगस्त से पहले पूरे मणिपुर में 37 जगह पर हथियारों की लूट हुई थी। एक राज्य जो कि बीते लगभग 100 दिनों से हिंसा, विद्वेष और अराजकता की आग में झुलस रहा है, वहां एक तरफ सुरक्षा बलों के हथियार लुट गए हैं, वहीं दूसरी तरफ  उपद्रवी सेना से मुकाबला करने लायक हथियार लेकर घूम रहे हैं। सबसे बड़ी बात, लगता है सारेआम लोग किसी न किसी के पीछे खड़े हैं और प्रशासन एवं पुलिस पर किसी को भरोसा नहीं है। कुकी नहीं चाहते कि उनके इलाके में राज्य पुलिस आये, मैतेई असम राइफल्स का विरोध कर रहे हैं। इसी विष्णुपुर में अभी चार अगस्त को ही दोनों आमने -सामने भिड़ गए। पहले भी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं यहां होती रहीं है। निरंकुशता, अराजकता और हिंसा जैसे राज्य की सांसों में  समा गई है। 
यह किसी से छुपा नहीं हैं कि बीते दो सालों में कोई एक लाख म्यांमार शरणार्थी जो कि कुकी-चिन जनजाति से हैं, मिज़ोरम में डेरा डाले हुए हैं। इनमें से कई वहां के सुरक्षा बलों और दमकल सेवा से थे और कई सशस्त्र सरकार विरोधी संगठनों के। मणिपुर की लपटें केवल इस राज्य की सीमा तक ही नहीं हैं, पूर्वोत्तर राज्य सभी एक-दुसरे से जुड़े हुए हैं। अब वहां दोनों समुदाय के लोग यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, कांगलेई यावोल कन्ना लुप और पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ  कांगलेईपाक जैसे प्रतिबंधित संगठनों को समर्थन और बढ़ावा दे रहे हैं। हथियारों की कोई कमी नहीं है।
खतरा यह भी है कि कई आतंकवादी और संगठित अपराधियों के गिरोह अब मणिपुर और मिज़ोरम के ऐसे लोगों के सम्पर्क में हैं जिनसे वे हथियार खरीद सकें।
सरकार को अब यहां शांति प्रयासों पर प्राथमिकता से काम करना  होगा और इसका रास्ता तभी सहज होगा जब  सुरक्षा बलों से लूटे गए और सीमा पार से अवैध रूप से आये हथियारों को ज़ब्त करने की समयबद्ध मुहिम चलाई जाएगी। लोगों का भरोसा जीतने के लिए निर्वाचित प्रतिनिधि, धार्मिक नेता और प्रशासन एक साथ सक्रिय हों। भारत के किसी भी हिस्से में इतनी बड़ी संख्या में घातक हथियार गैर-सुरक्षा बलों के पास नहीं हैं जितने मणिपुर में। इसलिए लापरवाही महंगी पड़ सकती है।