मध्य प्रदेश भाजपा में गुटबाजी के खिलाफ उतरे मोदी-शाह

 

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव-2023 ज्यों-ज्यों नज़दीक आ रहे हैं, भाजपा के अंदर मौजूद गुटबाजी, विशेषकर कांग्रेस से भाजपा में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके समर्थकों की गोलबंदी का शिकंजा ढीला पड़ रहा है, जिसका श्रेय नि:संदेह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अमित शाह को है, जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में प्रदेश का ताबड़तोड़ दौरा किया है। 
यह इसलिए भी भाजपा के लिए ज़रूरी है, क्योंकि विधानसभा चुनाव 2018 में ग्वालियर-चंबल संभाग की 36 सीटों पर तब कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन अब चूंकि सिंधिया भाजपा के साथ है तो इस संभाग में उनकी राजनीतिक छवि दांव पर लगी है। कांग्रेस भी यहां बहुत हमलावर है। साथ ही भाजपा के अंदर भी ज्योतिरादित्य सिंधिया का विरोध है इसलिए पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि भाजपा कई भागों में बंटी हुई है- शिवराज भाजपा, नाराज भाजपा और महाराज भाजपा। 
हालांकि दिग्विजय सिंह को जवाब देते हुए सिंधिया ने भी कांगेस को तीन भागों में बांट दिया था- फूट की कांग्रेस, लूट की कांग्रेस और झूठ की कांग्रेस।
लेकिन सिंधिया भले कांग्रेस को करारा जवाब दे रहे थे; लेकिन वह इस सच्चाई से भी भली भांति जानते थे कि पिछले विधानसभा चुनाव में समूचे मध्यप्रदेश में एक नारे ने बेहद लोकप्रियता प्राप्त की थी-माफ करो महाराज..। इसे भाजपा ने उछाला था और जनता ने हाथोहाथ लिया था। मगर दिन फिरे और वे ही महाराज तारणहार बनकर फरवरी 2019 में कंग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गये और उनके इस हृदय परिवर्तन की वजह से म.प्र. में कांग्रेस की लुटिया डूब गई और भाजपा सत्ता की नाव पर सवार हो गई। इसलिए अब यह नारा पलट चुका है। नया नारा हो गया है-साथ रहो महाराज। यह नारा, यह गुरु मंत्र दिया है देश के गृहमंत्री और भाजपा के शीर्ष नेता अमित शाह ने। वे 20 अगस्त को ग्वालियर में प्रदेश कार्य समिति की बैठक लेने आये थे, जहां शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह गुरु मंत्र दे गये थे कि म.प्र. में भाजपा की सरकार बनानी है तो दोनों को कंधे और कदम मिलाकर चलना ही होगा। इसका आगाज़ पिछोर के दौरे से हो भी चुका है, जहां मुख्यमंत्री ने संयुक्त दौरे में घोषणा की है कि यदि क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी को विजयी बनाया तो पिछोर को ज़िला बना दिया जायेगा।
यह अनायास नहीं हुआ, बल्कि जब से अमित शाह ने म.प्र. की कमान हाथ में ली है, वे पूरे समय प्रत्यंचा पर तीर चढ़ाये हुए हैं। म.प्र. में भारतीय जनता पार्टी की कमजोर स्थिति की निरंतर मिल रही सूचनाओं के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने प्रत्यक्ष दखल प्रारंभ कर दिया है। मोदीजी जहां करीब दो माह में तीन बार म.प्र. आ गये, वहीं अमित शाह 22 जून से 20 अगस्त तक पांच बार (22 जून, 10 जुलाई, 20 जुलाई, 26 जुलाई व 20 अगस्त) म.प्र. का फेरा लगा चुके हैं। वे जब भी आते हैं, संगठन के नट-बोल्ट कसकर जाते हैं। ज़रूरत पड़ने पर इनमें ऑइल भी डाल जाते हैं, ताकि चर्र-चर्र की आवाज़ न आये। नतीजा सामने आने लगा है।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हाथ से सत्ता छीनकर भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही सिंधिया को लेकर ऊहापोह बनी रही है। उन पर व उनके साथ आये कांग्रेसी समर्थकों पर भाजपाई संस्कृति न अपनाने के मसले उठते रहे हैं। उनके 18 समर्थकों को विधानसभा के उप चुनाव के टिकट देने के बाद असंतोष भी बढ़ता रहा, किन्तु सत्ता आने के संतोष ने उनके मुंह बंद रखे। अब, जबकि नवम्बर, 2023 में विधानसभा के चुनाव हैं तो यह मुद्दा भी बार-बार उछलता रहता है। इस चिंगारी को आग बनने से रोकने के लिये ही मोदी-शाह ने मोर्चा संभाला और राख में दबी और ऊपर भी दिख रही चिंगारी पर पानी डाल दिया गया लगता है।
हाल ही के ग्वालियर प्रवास में शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एकजुट होकर चुनाव मैदान नहीं संभाला तो भाजपा मुश्किल में आ सकती है। यह एक तरह से दोनों दिग्गजों के लिये चेतावनी भी थी और अवसर भी। दोनों इस बात से सहमत हुए और क्रियान्वयन भी प्रारंभ कर दिया है। दोनों का पिछोर दौरा इसकी शुरुआत है। इन दोनों को साथ लाने के पीछे अमित शाह की भाजपा संगठन की बेहतरी की दृष्टि से दूरंदेशी तो है ही, वे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की जोड़ी के प्रभाव को भी कम करना चाहते हैं।
दरअसल, लम्बे समय से दिग्विजय सिंह प्रदेश भर में घूमकर कांग्रेस को मज़बूती देने में लगे हैं। वे कमलनाथ को गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री पद का देवेदार भी बता देते हैं। उनकी मंशा भी यही है कि पिछली सरकार गिरने के लिये उन्हें जिम्मेदार ठहराने की जो चर्चायें होती हैं, उसका खामियाजा कांग्रेस की सरकार बनावाकर पूरा कर दिया जाये। इसलिये प्रदेश कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं की असहमति के बावजूद दिग्विजय सिंह कमलनाथ के पीछे खड़े नज़र आते हैं। ऐसे में यदि इस बार दिग्गी-नाथ मिलकर चुनाव परिक्रमा करते दिखें तो हैरत नहीं होगी। याद होगा, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ही चेहरा थे। अमित शाह ने कांग्रेस की दिग्गी-नाथ की जोड़ी के जवाब में ही शिव-सिंधिया की जोड़ी को आगे किया है। यदि ये दोनों पूरे मन से साथ में लगे रहे तो नतीजों को भाजपा के पक्ष मे करने में सफलता मिलना आसान हो जायेगा।
वैसे भी गौर करें तो सिंधिया ने हाल ही में कहा है कि उनका कोई अलग से समर्थक नहीं है, बल्कि भाजपा का कार्यकर्ता ही उनका समर्थक हैं और वे भाजपा के समर्थक हैं। टिकट वितरण में भी यदि सिंधिया ने यही दृष्टिकोण रखा और बगावत को रोके रखा तो भाजपा को इसका फायदा ही होगा। देखना होगा कि भाजपा की यह नई जोड़ी किस तरह से प्रदेश के दौरे कर माहौल को अपने पक्ष में करने के लिये जुटेगी।


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