अनेक घाटों की पावन नगरी वाराणसी 

केवल भारत ही नहीं, संसार के प्राचीनतम नगरों में से एक है काशी, वाराणसी या प्रचलित नाम बनारस। उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित यह नगर गंगा तट पर बसा है। यहां अनेक घाट हैं, इसलिए इसको घाटों का नगर भी कहा जाता है। अनेक परम्पराओं को अपने में समेटे हुए पावन नगरी वाराणसी भारतीय संस्कृति का एक पावन प्रतीक बन गया है। तभी तो यहां धर्मप्राण यात्रियों के अलावा देश-विदेश से आये पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।
नये और पुराने अनेक प्रकार के मंदिरों वाली इस तीर्थनगरी में सबसे प्रसिद्ध मंदिर है काशी विश्वनाथ मंदिर। इसी के आधार पर इसका प्राचीन नामकरण काशी हुआ था। यहां स्थापित महादेव शिवशंकर के ज्योतिर्लिंग की बहुत महिमा है। वर्तमान मंदिर के परिवेश को महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा पुन: निर्मित किया गया माना जाता जिसका स्वर्ण शिखर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा 18वीं सदी में चढ़ाया गया था। तीर्थ नगरी वाराणसी की यात्रा करने वाले तीर्थ यात्री की पहली इच्छा काशी विश्वनाथ के दर्शन की ही होती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा वाराणसी में कई और भी दर्शनीय मंदिर हैं। इनमें महावीर हनुमान का संकट मोचन मंदिर, लोक तीर्थ, भारतमाता मंदिर तथा तुलसी मानस मंदिर मुख्य हैं। उल्लेखनीय है कि गोस्वामी तुलसी दास ने सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरित मानस की रचना यहीं पर की थी। इस मंदिर में संबंधित काव्य के साथ संगमरमर पर सुंदर चित्र बनाये गये हैं जिनकी सुंदरता देखकर कोई भी दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाता है।
तीर्थनगरी काशी को घाटों का शहर कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार यहां गंगा तट पर कुल मिलाकर करीब सवा तीन सौ घाट हैं जिनमें सत्तर घाट पक्के तथा सुव्यवस्थित हैं। इनमें अधिकांश घाट तथा उन पर स्थापित मंदिर भी भारत के पूर्व राजा महाराजाओं के द्वारा निर्मित हैं। इन घाटों में मुख्य तथा दर्शनीय घाट ये हैं—
अस्सी घाट, शिवाला घाट, हनुमान घाट, अहिल्या घाट, मर्णिकर्णिका घाट, मन मंदिर घाट, मुंशी घाट, दरभंगा घाट, शीतला माता घाट, राणा महल घाट, चौसठ घाट, केदार घाट, सिंधिया घाट इत्यादि।
इनमें दशाश्वमेध, मणिकर्णिका, पंचगंगा, केदार तथा अस्सी घाट का विशेष महत्त्व है जहां पर पिंडदान तथा श्राद्ध कर्म की विशेष व्यवस्था है। हिन्दुओं में यह मान्यता सदियों से प्रचलित है कि काशी में मृत्यु तथा गंगा तर्पण से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारणवश वाराणसी के कई घाटों पर सदैव चिता जलती रहती है।
काशी की महिमा गंगा तट पर बने अनेक घाटों तथा मंदिरों से है। प्रात: काल में सूर्योदय के पहले से ही यहां के घाटों पर चहल-पहल आरंभ हो जाती है और स्नान करने वालों की भीड़ आने लगती है। इसके साथ, हर हर महादेव तथा जय-जय गंगे का घोष वातावरण में गूंजने लगता है। संध्या समय में भी गंगा तट गुलजार रहता है। मंदिरों में आरती तथा भजन-कीर्तन और गंगा की धारा में तैरती नावों पर बैठे सैलानी मनोरम दृश्य को देखकर मुदित होते रहते हैं।
अपनी अनेक उपलब्धियों के साथ ही, वाराणसी को भारत का प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र होने का गौरव प्राप्त है। यहां अनेक आश्रम, मठ, सिद्धपीठ तथा अध्ययन और अध्यापन के केन्द्र विकसित हुए हैं। ऐसे प्रतिष्ठानों में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय यानि बीएचयू विश्व प्रसिद्ध है। यहां पर सौ से अधिक विषयों की शिक्षा दी जाती है, इसकी स्थापना महामना मदन मोहन मालवीय ने की थी। इसके अलावा संस्कृत विद्यापीठ, संगीत महाविद्यालय, नागरी प्रचारिणी सभा जैसे कई सुप्रसिद्ध संस्थान वाराणसी की शोभा बढ़ाते हैं।
भारतीय संस्कृति का पावन प्रतीक बना वाराणसी नगर परिवहन की दृष्टि से भी उत्तम केन्द्र है। यह रेल पथ तथा राजपथ का केन्द्र है, जहां भारत के किसी भी कोने से रेलमार्ग अथवा राजमार्ग द्वारा सुविधानुसार पहुंचा जा सकता है। वायुयानों से पहुंचने के लिए यहां एक सुविधापूर्ण हवाई अड्डा भी है। इस प्रकार वाराणसी सांस्कृतिक केन्द्र के साथ पर्यटन-केन्द्र के रूप में भी विकसित हो गया है।
यहां ठहरने के लिए अनेक छोटे-बड़े होटलों के अलावा कई धर्मशालाएं और मुसाफिरखाने हैं गंगा तट पर स्थित अनेक दर्शनीय सांस्कृतिक केन्द्र हैं वाराणसी में। (उर्वशी)