प्रदेश के लिए बुरा सन्देश

पंजाब में राजनीतिक स्तर पर भगवंत मान सरकार द्वारा लगातार हर पक्ष से जिस तरह टकराव बढ़ाया जा रहा है, हम उसे प्रदेश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण समझते हैं। डेढ़ वर्ष में मुख्यमंत्री  द्वारा जिस तरह की बयानबाज़ी की गई, जिस तरह विज्ञापनबाज़ी करके बड़े-बड़े दावे किये गये, जिस तरह लोगों को स्वप्न दिखाये गये, वे सभी अब निराशा में बदलते जा रहे हैं। पंजाब बाढ़ की मार तले आया  हुआ है। मरी हुई मुर्गी तक के नुकसान की भरपाई करने की बजाय प्रतिदिन लोगों के मनों को भरमाने वाली बातें करके कुछ समय तो निकाला जा सकता है परन्तु लम्बी अवधि तक इससे सरकार चलाना कठिन है। चुनावों से पहले लोगों को मुफ़्त बिजली का वायदा किया गया था तथा इसके साथ ही बेरोज़गार युवाओं को नौकरियां देने के बयान दिये गये थे परन्तु बाद में बिजली बिल मुफ्त करके तथा इसकी मीडिया में विज्ञापनबाज़ी पर अरबों रुपये खर्च करके इस प्रभाव को कायम रखना इसलिए आसान नहीं है क्योंकि पॉवरकॉम आर्थिक  पक्ष से बुरी तरह खोखला हो चुका है। इसलिए कि उसने कई सरकारी संस्थाओं से भी हज़ारों करोड़ रुपया बकाया लेना है। उद्योगपति तथा व्यापारी बिजली महंगी होने पर कड़ा रोष प्रकट कर रहे हैं। पहले ही ऋणी हुआ पंजाब बिजली मुफ्त करने से और भी ऋणी हो गया है।
हज़ारों ही नौकरियां देने के बयान इसलिए सार्थक प्रतीत नहीं होते क्योंकि आज भी लाखों युवा बेरोज़गारी की चक्की में पिस रहे हैं। नशे के प्रचलन ने अब शहरों तथा गांवों को बुरी तरह अपनी गिरफ्त में ले लिया है। एक सर्वेक्षण के अनुसार आज पंजाब का हर पांचवां व्यक्ति नशेड़ी है। नशों की आई इस बाढ़ को रोक पाने में सरकार बुरी तरह विफल हो चुकी है। राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित ने अक्सर सरकार का ध्यान इन बातों की ओर दिलाया है। उन्होंने स्वयं भी कई बार पंजाब के सीमांत ज़िलों के दौरे किये हैं ताकि वास्तविकता को धरातल के स्तर पर जाना जा सके। नि:संदेह राज्यपाल का पद संवैधानिक होता है परन्तु संविधान में उनका यह अधिकार भी निहित है कि वह समय-समय पर सरकार से ज्वलंत मुद्दों की जानकारी भी लें क्योंकि विपक्षी पार्टियों द्वारा भी अक्सर राज्यपाल से मिल कर ऐसे ज्ञापन दिये जाते रहे हैं।
परन्तु आश्चर्य इस बात का है कि इन गम्भीर मामलों संबंधी मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से मिल कर विचार-विमर्श तो क्या करना था, या उनके द्वारा लिखे गये ज्यादातर पत्रों का जवाब तो क्या देना था, अपितु इसकी बजाय मुख्यमंत्री द्वारा अक्सर राज्यपाल के संबंध में अपनाई गई शब्दावली निचले स्तर की ही कही जा सकती है। राज्यपाल के पत्रों को विधानसभा में ‘लव लैटर’ कहना, उन्हें ‘वेहलड़’ शब्द से सम्बोधित करना, उन पर सरकारी हैलीकाप्टर का उपयोग करने का आरोप लगाना तथा यह कहना कि राज्यपाल का काम सिर्फ शपथ ग्रहण करवाना ही होता है, नि:संदेह एक बड़े कार्यकारी पद पर बैठे किसी व्यक्ति की ओर से राज्यपाल के प्रति अक्सर इस्तेमाल की जाती ऐसी शब्दावली की उम्मीद नहीं की जा सकती। राज्यपाल के अधिकार संविधान में स्पष्ट रूप से दर्ज किये गये हैं जिनकी मौजूदा सरकार द्वारा पालना किये जाने की अपेक्षा की जाती है परन्तु मुख्यमंत्री राज्यपाल के इन अधिकारों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं तथा न ही वह राज्यपाल के साथ किसी तरह का तालमेल रखने के पक्ष में हैं। अब जब राज्यपाल ने कड़े शब्दों में मुख्यमंत्री को यह चेतावनी दी है कि यदि वह उनके पत्रों का जवाब नहीं देंगे तो वह संविधान की संबंधित धारा को मुख्य रखते हुए अपनी कार्रवाई करने के लिए विवश होंगे, तथा यह भी कि वह राज्यपाल के उच्च पद के प्रति मुख्यमंत्री द्वारा अक्सर इस्तेमाल की जाती भद्दी तथा आपत्तिजनक शब्दावली के लिए अदालत का सहारा भी ले सकते हैं। 
हम समझते हैं कि आज़ादी के बाद पंजाब के आज तक के इतिहास में किसी भी मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया गया तथा न ही संविधान की भावना की इस प्रकार धज्जियां उड़ाई गई हैं। राज्यपाल के इस पत्र के बाद मुख्यमंत्री द्वारा यह प्रभाव देना कि वह इन धमकियों की चिन्ता नहीं करते तथा यह भी कि राज्यपाल शक्ति के भूखे हैं तथा यह भी कि वह राजनीतिक तौर पर अप्रासंगिक हो चुके हैं तथा उन्हें भारतीय जनता पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए राजस्थान में चुनाव लड़ना चाहिए, को भी इस उच्च पद का अपमान कहा जा सकता है, जिसे किसी भी तरह जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। विगत विधानसभा अधिवेशन को लेकर जो विवाद उठे थे, उसके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया था कि अधिवेशन बड़े अन्तराल के बाद बुलाया जाना चाहिए तथा मुख्यमंत्री को राज्यपाल के पत्रों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। आगामी समय में उठे इस विवाद का क्या परिणाम निकलेगा, इस संबंध में अभी कुछ कहना कठिन है परन्तु इससे पहले ही डूब चुके पंजाब को एक और बड़ा गोता लग सकता है, जो प्रदेश के लिए बुरा सन्देश है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द