लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सीमाएं

 

2024 लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। भाजपा के समक्ष ‘इंडिया’ एक सूत्र में बंधने का फैसला कर चुका है। अब नज़र इस पर रहेगी कि विपक्षी गठबंधन भाजपा को किस तरह चुनौतियां पेश कर सकता है? क्या उनके विरोध की भाषा वोट खींच पाने में सफल हो सकती है?
लोकसभा चुनाव से पूर्व इसी वर्ष के अंत में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। वे राज्य हैं राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना तथा मिज़ोरम। इनमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पहले से कांग्रेस की सरकारें हैं। मध्य प्रदेश में भी पहले कांग्रेस की ही सत्ता थी लेकिन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के असंतोष प्रगट करने पर और फिर अलग होकर भाजपा के खेमे में चले जाने से वहां भाजपा सरकार आ गई।
विपक्ष के गठन और ‘इंडिया’ का स्वरूप पाने पर भी कांग्रेस का बड़ा हाथ है और कांग्रेस प्रभावित करने वाली पार्टी है। फिलहाल 26 दल विपक्षी गठबंधन में शामिल हैं। इन दलों में से सभी की भूमिका राष्ट्रीय स्तर पर उतनी नहीं है, बेशक अपने-अपने क्षेत्र में उनकी खास भूमिका हो। इसलिए कांग्रेस बड़ी और केन्द्रीय दल की भूमिका निभा रही है।
 इसकी कोई भी सीमा कल को पूरे विपक्ष की सीमा हो सकती है। कांग्रेस पार्टी दशकों तक केन्द्रीय पार्टी रही है और पूरे भारत में उसका नाम रहा है। कांग्रेस के कार्यकर्ता भी सर्वाधिक होने चाहिएं। इन विपक्षी दलों में ‘आप’ सरकार दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकार चला रही है, जदयू तथा राजग बिहार में सरकार चला रहे हैं। समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से ज्यादा प्रभाव उत्तर प्रदेश में नज़र आता है। सो, क्या कांग्रेस का टकराव इन क्षेत्रों में इन क्षेत्रीय पार्टियों से नहीं होगा? आगे देखिए तृणमूल कांग्रेस की सरकार बंगाल में है। ममता बनर्जी पहले कांग्रेस में रही हैं परन्तु अब बंगाल में वह इनको क्यों मज़बूती पकड़ते हुए देखना चाहेंगी? पूर्व में वामदल की भूमिका रही है। वे भी वापसी का यत्न कर सकते हैं। झारखंड में झामुमो की सत्ता है। इन विपक्षी दलों में केवल वाम दलों का संबंध कांग्रेस के साथ रहा है और वामदल अब पहले वाली हालत में नहीं हैं। सपा, राजद, जद यू पहले ही कांग्रेस के विरोधी रहे हैं और ‘आप’ पार्टी दिल्ली में तथा पंजाब में खुद को कांग्रेस का विकल्प साबित करना चाहती है। इन तमाम दलों ( ‘आप’-सपा-राजद, जद यू, झामुओ) के पास जो वोट बैंक है, वह कांग्रेस से छीना हुआ और अपना बनाया हुआ वोट बैंक ही है। यह वोट बैंक कभी कांग्रेस का हुआ करता था। क्या कांग्रेस अपना खोया हुआ वोट बैंक दोबारा हासिल करना चाहेगी? बसपा का वोट बैंक भी तो कांग्रेस का वोट बैंक रहा है और लम्बे समय तक सम्भला रहा है। पंजाब की सत्ता भी कांग्रेस के पास रही है, परन्तु सही नीति नहीं अपनाने पर अवाम में विश्वास डगमगा गया और सत्ता शिफ्ट हो गई। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को बेवजह हटाना भी एक कारण बना। कांग्रेस ने दिल्ली में सात लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। क्या यह बात किसी भी तरह ‘आप’ को स्वीकार होगी? इसी घोषणा से ‘आप’ और कांग्रेस के बीच दूरी बढ़ती नज़र आ रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। वहां भी ‘आप’ और बसपा का वोट बैंक उनको परेशान कर सकता है। यही स्थिति लोकसभा चुनाव में दोहराई जा सकती है।
विपक्षी एकता का लोकसभा में क्या स्वरूप होगा यह तो कहा नहीं जा सकता। परन्तु कांग्रेस के सामने बहुत-सी चुनौतियां हैं। उसे अपने कुछ बेहतर प्रभावशाली नेताओं को सामने लाना होगा और परिपक्वता के साथ जूझना होगा। यह डगर आसान नहीं है।