ब्रिक्स में अब भारत की रणनीति क्या होनी चाहिए ?

हाल ही में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में 22 से 24 अगस्त तक आयोजित 15वें अंतर्राष्ट्रीय ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया।  इस सम्मेलन में पांच सदस्य देशों ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के प्रमुखों ने भाग लिया। ब्रिक्स की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी और इसका पहला शिखर सम्मेलन 2009 में रूस में हुआ था। शुरुआत में इसमें कुल चार देश ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन शामिल थे। बाद में ब्रिक्स समूह देशों की सहमति से दक्षिण अफ्रीका को भी वर्ष 2010 में इसमें शामिल किया गया था। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स आपसी आर्थिक विकास की गतिविधियों को गतिशीलता प्रदान करने एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए कार्य करता है। फिलहाल प्रश्न यह उठता है कि आखिर ब्रिक्स है क्या और इस समूह के उद्देश्य क्या हैं?
ब्रिक्स का मुख्य उद्देश्य शांति, सुरक्षा, विकास और सहयोग को बढ़ावा देना है। उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स का मुख्यालय चीन के शंघाई में है। ब्रिक्स का सम्मेलन हर साल आयोजित होता है। यह जानना रूचिकर होगा कि ब्रिक शब्द का पहली बार इस्तेमाल वर्ष 2001 में गोल्डमैन के जिम ओ नील द्वारा किया गया था। वर्तमान समय की बात करें तो ब्रिक्स देशों के पास दुनिया का 25.9 प्रतिशत भू-भाग एवं लगभग 43 प्रतिशत आबादी है। विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान करीब 30 प्रतिशत है और ये देश सकल वैश्विक पूंजी का 53 प्रतिशत आकर्षित करते हैं। भारत के लिए ब्रिक्स का महत्व यह है कि भारत आर्थिक मुद्दों पर परामर्श और सहयोग के साथ-साथ सामयिक वैश्विक मुद्दों जैसे—अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, खाद्य और ऊर्जा, सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधार आदि के माध्यम से ब्रिक्स की सामूहिक ताकत से लाभान्वित हो सकता है। जानकारी के अनुसार दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने 67 देशों के नेताओं को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया था, जिनमें 53 अन्य अफ्रीकी देश, बांग्लादेश, बोलीविया, इंडोनेशिया आदि शामिल थे।  वर्ष 2019 के बाद ये पहली बार है जब यह सम्मेलन ऑफ लाइन आयोजित किया गया है। वास्तव में दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में आयोजित यह ब्रिक्स अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी। 
इस शिखर सम्मेलन के परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण बातें हमारे सामने आईं, जिनमें ब्रिक्स के विस्तार में अर्जेंटीना, मिस्र, ईरान, सऊदी अरब, इथोपिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का शामिल होन विश्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह भी उल्लेखनीय है कि ब्रिक्स के नये देशों की पूर्ण सदस्यता 1 जनवरी, 2024 यानि की नये साल से प्रभावी होगी। वर्ष 2010 के बाद यह ब्रिक्स का पहला विस्तार है। दरअसल ब्रिक्स इसलिए अपना विस्तार कर रहा है ताकि वह विश्व पर अपने प्रभाव को बढ़ा सके, जैसा कि ब्रिक्स देशों के पास अब तक दुनिया का 25.9 प्रतिशत भू-भाग एवं 43 प्रतिशत आबादी है और नये देशों के ब्रिक्स में शामिल होने से उसका विश्व पर प्रभाव और बढ़ेगा। ब्रिक्स में अर्जेंटीना, मिस्र, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को शामिल करने से भारत-चीन संबंधों के प्रभावित होने की प्रबल संभावना है। ब्रिक्स के विस्तार से कहीं न कहीं भारत के विदेशी संबंधों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। भारत के विदेशी संबंधों और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसकी स्थिति को मज़बूत करने में ब्रिक्स की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रहेगी। मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका से नए सदस्यों के शामिल होने से भारत को समूह में एक मज़बूत आवाज़ मिलेगी और इससे भारत के आर्थिक और राजनीतिक रिश्तों में विविधता लाने में भी मदद मिलेगी। इससे चीन पर भारत की निर्भरता कम करने में को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन यहां यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जैसा कि ब्रिक्स के सभी नए सदस्य अपेक्षाकृत चीन के करीब हैं, इससे भारत के लिए लद्दाख में सीमा विवाद परिवर्तन को संबोधित करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए ब्रिक्स जैसे मुद्दों पर चीन के सामने खड़ा होना और भी मुश्किल हो सकता है। सच तो यह है कि ब्रिक्स के विस्तार से चीन को विश्व मंच पर कहीं न कहीं अधिक वैधता मिलेगी। यह एक कड़वा सच है कि ब्रिक्स पश्चिम का प्रतिकार रहा है और चीन ब्रिक्स का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र है। चिंतनीय यह है कि चीन ब्रिक्स को जी-7 विरोधी समूह में बदलना चाहता है और एक आम मुद्रा के बजाय अपने देश की मुद्रा युआन को आगे बढ़ाना चाहता है। यहां यह जानना ज़रूरी है कि भारत ने अब तक ब्रिक्स के विस्तार का अब से पहले कभी भी खुल कर समर्थन नहीं किया था। उल्लेखनीय है कि भारत और ब्राज़ील ब्रिक्स में सदस्य देशों की संख्या बढ़ाने के लिए सहमत नहीं थे, लेकिन हाल ही में भारत ने कहा कि ब्रिक्स के विस्तार के लेकर उसका रुख सकारात्मक है और वह खुले दिमाग से इसका समर्थन करता है। अब देखना यह है कि ब्रिक्स में भारत कैसी रणनीति अपनाता है? (युवराज)