चालीस साल की प्रतीक्षा के बाद नीरज चोपड़ा बने वर्ल्ड चैम्पियन

नीरज चोपड़ा यहां पहले भी पहुंच चुके थे। मुख्य फाइनल में एक राष्ट्र की उम्मीदें उनके कंधों पर थीं और विश्वस्तरीय प्रतिद्वंदी उनकी परीक्षा लेने की प्रतीक्षा में थे। एक भारतीय एथलीट के लिए यह दुर्लभ स्थिति, लेकिन नीरज की निरंतरता इतनी गज़ब की है कि जब भी वह मैदान में उतरते हैं, भारत बेसब्री से उनसे पदक की आशा करता है। अंजू बॉबी जॉर्ज ने 20-वर्ष पहले पेरिस 2003 में लम्बी कूद का कांस्य पदक जीतकर एक सुखद नींव रखी थी, फिर नीरज ने पिछले साल यूजीन में इस पदक का रंग बदलते हुए रजत कर दिया। अब वह एक कदम आगे निकल गये हैं और बुडापेस्ट 2023 की वर्ल्ड एथलेटिक्स चौंपियनशिप्स में जेवलिन का स्वर्ण पदक जीतकर वह भारत के पहले वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियन बन गये हैं। देश को पिछले 40-वर्ष से इसी पल का इंतज़ार था कि एथलेटिक्स में उसका भी कोई विश्व चैंपियन बने। इस ख्वाब को नीरज ने साकार कर दिया है। इसी के साथ ही नीरज पहले भारतीय हैं जिनके पास वर्ल्ड चैंपियनशिप के दो पदक हैं। एक अन्य ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि चेक गणराज्य के जान ज़ेलेज़नी और नॉर्वे के एंड्रियाज़ थोरकिल्डसेन के बाद नीरज तीसरे जेवलिन थ्रोअर हैं, जिन्होंने समान चक्र में ओलंपिक व वर्ल्ड का गोल्डन डबल किया है। नीरज ने टोक्यो 2020 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था। जान ज़ेलेज़नी ने ओलंपिक गोल्ड 1992, 1996 व 2000 में जीते थे और वह वर्ल्ड चैंपियन 1993, 1995 व 2001 में रहे, जबकि एंड्रियाज़ थोरकिल्डसेन ने 2008 ओलिंपिक व 2009 वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती थी। बुडापेस्ट में 27 अगस्त 2023 भारत के लिए बहुत विशेष था कि उसके तीन खिलाड़ी- नीरज, डीपी मनु व किशोर जेना- फाइनल में थे। वैसे इस दिन को भारतीय उपमहाद्वीप के लिए भी खास कहा जा सकता है क्योंकि पाकिस्तान के अरशद नदीम, जो नीरज के परम मित्रों में शामिल हैं, भी फाइनल में थे। दूसरे शब्दों में आठ में से चार यानी आधे फाइनलिस्ट भारतीय उपमहाद्वीप के थे।
बहरहाल, फाइनल में नीरज को अपनी इच्छा अनुसार शुरुआत न मिल सकी थी। उनकी पहली थ्रो मात्र 79 मी. की थी, जिससे वह प्रसन्न नहीं थे और इस स्कोर को वह रजिस्टर भी नहीं कराना चाहते थे और इसलिए फाउल फोर्स करने के लिए लाइन स्टेप कर गये। लेकिन दूसरे प्रयास में उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, अपनी चिर परिचित शैली में दौड़े और इससे पहले जेवलिन लैंड करता वह जीत का जश्न मनाने लगे थे। नीरज की थ्रो 88.17 मी की थी, जो उन्हें स्वर्ण पदक दिलाने के लिए पर्याप्त थी। नीरज के पाकिस्तानी मित्र अरशद नदीम ने 87.82मी की थ्रो के साथ रजत पदक अपने नाम किया, जबकि चेक गणराज्य के जाकूब वडलेजच अपना इस वर्ष का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (89.51 मी) दोहराने में असफल रहे और 86.67मी की थ्रो के साथ कांस्य पदक ही हासिल कर सके। भारत के दो अन्य फाइनलिस्ट ने भी प्रभावी प्रदर्शन किया, लेकिन किशोर जेना (84.77मी) व डीपी मनु (84.14मी) क्रमश: पांचवें व छठे स्थान पर रहे। यहां यह बताना भी आवश्यक है कि वर्ल्ड चौंपियनशिप में ऐसा पहली बार हुआ है कि तीन भारतीय और एक पाकिस्तानी टॉप आठ में पहुंचे।
हालांकि हमारा फोकस जेवलिन पर ही था, लेकिन बुडापेस्ट में अन्य भारतीय भी इतिहास रच रहे थे। चार भारतीयों की टीम दृ मुहम्मद अनस याहिया, अमोज जैकब, मुहम्मद अजमल वरियाधोती व राजेश रमेश- पुरुषों की 4.400 मी रिले रेस में पांचवें स्थान पर रही। इस भारतीय टीम ने 2:59:05 का अविश्वसनीय समय निकाला और एशियन रिकॉर्ड भी तोड़ा जोकि यूजीन विश्व चैंपियनशिप्स से जापान के पास था। महिला 3000मी स्टीप्लचेज़ के फाइनल में पारुल चौधरी 12वें स्थान पर रहीं, लेकिन उनका प्रयास इतना अच्छा था कि उन्होंने 9 मिनट व 15.32 सेकंड का नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड स्थापित किया। नीरज की उपलब्धि यकीनन प्रशंसनीय है, लेकिन क्या वह ग्रेटेस्ट एथलीट हैं? वह स्वयं ऐसा नहीं मानते हैं। उनके अनुसार, ‘मैं यह नहीं कहूंगा कि मैं गोट (ग्रेटेस्ट ऑफ आल टाइम) हूं। मुझे अभी बहुत सुधार करना है। अगर जेवलिन की बात की जाये तो जान ज़ेलेज़नी गोट हैं।’ 
अगर रिकार्ड्स की दृष्टि से देखा जाये तो यह बात सही भी है। एक अन्य पहलू यह भी है कि नीरज अभी तक 90मी की सीमा को पार या स्पर्श नहीं कर पाए हैं, जिसकी लम्बे समय से उनसे उम्मीद की जा रही है। बुडापेस्ट में स्थितियां बहुत अच्छी थीं, मुकाबला भी शाम को था, कुछ गर्मी अवश्य थी, लेकिन हवा नहीं थी, इसलिए उम्मीद थी कि नीरज 90 मी को पार कर जायेंगे। लेकिन ऐसा हो न सका। वैसे खेल में अनिश्चितता तो बनी ही रहती है और कुछ भी हो सकता है। फिर भी नीरज की सबसे बड़ी ताकत उनकी निरंतरता है। साथ ही वह बहुत चतुर खिलाड़ी हैं। वह मैदान मारने की कला जानते हैं। हालांकि नीरज की शुरुआती थ्रो अक्सर उनकी सबसे अच्छी होती हैं और उन्हीं से ही वह अक्सर बाज़ी मार लेते हैं, लेकिन वह अपनी अंतिम थ्रो से भी जीतने का दम खम रखते हैं। इसी गुण ने उन्हें वर्ल्ड चैंपियन बनाया है।


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