़गरीबी-रेखा से उभरते आंकड़ों का सत्य

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश में ़गरीबी उन्मूलन में हुई प्रगति और ़गरीबी रेखा को पार कर आगे बढ़ते लोगों की संख्या में हुई वृद्धि की बात एक ओर जहां जन-साधारण को विश्वास और संतोष प्रदान करती है, वहीं इस संदर्भ में सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा जारी किये जाते आंकड़े भ्रम की स्थिति भी उत्पन्न करते हैं। प्रधानमंत्री ने इस संबंध में पिछले दिनों एक जनसभा में भाषण देते हुए कहा कि विगत पांच वर्ष में देश में ़गरीबी रेखा के नीचे से ऊपर बढ़ते लोगों की तादाद निरन्तर बढ़ी है। उन्होंने यह भी बताया कि कम से कम 13.50 करोड़ लोग इस काल में धनी हुए लोगों की जमात में शामिल हुए हैं।
 नि:संदेह इस भाषण के दृष्टिगत देश की सामूहिकता में उपजती तस्वीर दर्शाती है कि देश में विगत लगभग एक दशक से ़गरीबी-रेखा को पार करने वाले लोगों के बीच समृद्धि की रफ्तार बढ़ी है। इसके साथ ही देश के धनी होते करोड़पति लोगों की संख्या में भी वृद्धि हुई है हालांकि उनकी सम्पत्ति और पूंजी में जमा होने की दर उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ी है जितना कि अपेक्षित थी। प्रधानमंत्री द्वारा ़गरीबी रेखा संबंधी दिये गये आंकड़े देश की सर्वोच्च वित्तीय संस्था नीति आयोग की ओर से जारी किये गये हैं, लेकिन इसी नीति आयोग द्वारा ़गरीबी रेखा से जुड़े लोगों की प्रकट होती तस्वीर नि:संदेह विज्ञ लोगों को चौंकाती भी है।
नीति आयोग के आंकड़ों में यह भी दर्शाया गया है कि विगत नौ वर्ष के मोदी सरकार के दोनों कार्य-काल के दौरान देश के लोगों की शुद्ध अर्जित आय के आंकड़े विगत के चार वर्षों में बढ़े हैं। आयोग के अनुसार इसी आधार पर देश में आय कर और अन्य प्रत्यक्ष करों को अदा करने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है, और कर-अदायगी के बाद कुल राजस्व में भी बड़ा इज़ाफा हुआ है। तथापि, इसी चरण पर केन्द्र सरकार और नीति आयोग द्वारा देश के 81 करोड़ से अधिक ़गरीब कहलाते लोगों के लिए मुफ्त और सस्ते अनाज की योजना को आगामी वर्ष तक जारी रखने की घोषणा चौंकाती भी है। प्रधानमंत्री ने बेशक विगत पांच वर्ष में रोज़गार के अवसर बढ़ने और देश के प्रत्यक्ष निवेश में वृद्धि होने का भी दावा किया है। नीति आयोग इन दावों की पुष्टि भी करता है। यह एक तथ्य भी देश के आम आदमी की ज़िन्दगी व्यतीत करने  की क्षमता में सुधार को दर्शाता है कि देश में प्रति व्यक्ति आय अवश्य बढ़ी है। उल्लेखनीय है कि नीति आयोग ने देश में आम लोगों की औसत आय के 13 लाख रुपये वार्षिक हो जाने का दावा किया है।
हम समझते हैं कि बेशक प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये आंकड़े देश की सामूहिक समृद्धि की तस्वीर में प्रसन्नतादायी स्थितियों को दर्शाते हैं किन्तु इन आंकड़ों से उदित होता प्रभाव दिखाई भी तो देना चाहिए। प्रधानमंत्री ने पूर्व की संप्रग सरकार की दोनों पारियों में हुए भ्रष्टाचार और वित्तीय घोटालों का ज़िक्र करते हुए अपनी सरकार के दोनों कार्यकालों को भ्रष्टाचार से मुक्त होने का दावा भी किया है। इसी दावे के अनुसार देश में ़गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों की तादाद कम होने की बात भी कही जाती है, लेकिन मौजूदा सरकार की ओर से आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव और इसी वर्षांत में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से पूर्व की जाने वाली चुनावी घोषणाओं में देश के 81 करोड़ ़गरीब लोगों के होने की स्वीकारोक्ति की बात विरोधाभासी भी प्रतीत होती है। इसीलिए केन्द्र सरकार ने कोरोना काल में शुरू की गई 81 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त राशन योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। हम समझते हैं कि मौजूदा मोदी सरकार की उपलब्धियों में देश की सामूहिक समृद्धि का शुमार होना माना जा सकता है, तथापि देश के भीतर उपजी समृद्धि और ़गरीबी रेखा से ऊपर उठे करोड़ों लोगों की जीवनशैली से इस तथ्य को उजागर भी तो होना चाहिए। हम समझते हैं कि देश के ़गरीब-जन का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए  जन-साधारण की आर्थिकता को सबल बनाये जाने और देश की वित्तीय स्थिति को और मजबूत किये जाने की बड़ी आवश्यकता है। देश की वित्तीय स्थिति और जन-साधारण की आर्थिकता में सुधार के दावों के विपरीत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त अथवा दूसरों की कीमत पर सस्ता अन्न उपलब्ध कराये जाने की योजनाएं एक ओर जहां मुफ्तखोरी की वृत्ति को बढ़ाती हैं,वहीं जन-साधारण को अकर्मण्य भी बनाती हैं। इससे आम लोगों की आर्थिकता में सुधार होने की गति प्रभावित होती है, और कि विश्व में देश की वित्तीय छवि पर भी असर पड़ने की सम्भावना बनती है। नि:संदेह इस प्रकार की योजनाओं से सामयिक रूप से कुछ सीमा तक राजनीतिक हित-साधन तो होता है, किन्तु इससे देश और लोगों के आर्थिक उत्थान की गति अवश्य प्रभावित होती है। अत: जितनी शीघ्र हो सके।  देश के आम और ़गरीब आदमी की नियति को सुधारने के लिए नीति आयोग को ठोस और परिणाम-मूलक नीतियों का निर्धारण करना चाहिए। यह भी, कि यदि ़गरीबी रेखा के नीचे वाले करोड़ों लोगों का उत्थान होता है, तो यह बड़ी श्रेष्ठ बात है, किन्तु देश की तस्वीर के किसी कोने में यह रंग दिखना भी तो अवश्य चाहिए न! ऐसा न होने से पूरे देश में असमानता की स्थितियों के प्रगाढ़ होते जाने का अंदेशा है।