विश्व साक्षरता दिवस पर विशेष महिलाओं में भी साक्षरता व शिक्षा का विस्तार हो

साक्षरता और अंतत: शिक्षा आज हमारी एक महती आवश्यकता और व्यक्तित्व निर्माण सर्वांगीण विकास के लिए एक अत्यंत आवश्यक ज़रूरत है। सर्वप्रथम तो सवाल उठता है कि शिक्षा हम मनुष्यों के जीवन में क्यों आवश्यक है और साक्षरता एवं शिक्षा को क्यों महत्व दें? इसके उत्तर में हम कह सकते हैं कि शिक्षा (साक्षरता) हमें राष्ट्र समाज, समुदाय और अंतत: परिवार मे प्रेम, सहृदयता, सहयाग, साहनुभूति, ईमानदारी, व्यक्तित्व निर्माण, कर्तव्यपालन आदि सदगुणों से परिचय कराती है। अब सवाल उठता है। कि साक्षरता क्या सिर्फ पुरुषों की बपौती है क्या महिलाओं को साक्षर होने का अधिकार नहीं है? मानवता का संदेश देने वाले ‘आचार्य विनोबा भावे’ का इस संबंध में कथन है। शिक्षा जीवन के बीच से आनी चाहिए और साक्षरता का अधिकार स्त्री पुरुषों को समान रूप से प्राप्त होना चाहिए।
पिछले कुछ वर्षों से महिला साक्षरता शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। यह एक बेहद सुखदकारी स्थिति है। अंतर्राष्ट्रीय बालिका वर्ष में भी बालिकाओं को शिक्षा की दिशा में प्रशंसनीय कार्य हुआ था किंतु इन सबसे भी ऊपर बालिका शिक्षा के लिए वर्ष 1660 को ही सुखद स्मृति के रूप में याद किया जायेगा जिसके तहत ‘दत्तक पुत्री शिक्षा योजना’ बालिका साक्षरता अभियान ‘महिला आक्षरता’ में अत्यधिक ध्यान देकर इन्हें कार्यरूप प्रदान किया गया। जिसे इस योजना का लाभ उठाकर आज ऐसी अनेक महिलाएं निरक्षरता के गहन अंधकार से बाहर निकल सकीं हैं जो आर्थिक अभाव के कारण या तो कभी स्कूल जा ही नहीं पाती या जाती भी हों तो उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती थी। कमोवेश छत्तीसगढ़ सहित दूसरे राज्यों में भी बालिकाओं की यही स्थिति है।
एक अनुमान के अनुसार देश मे सैंतीस प्रतिशत से भी अधिक ऐसी महिलाएं हैं जो परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से अपनी स्कूली शिक्षा तक पूरी नहीं कर पाती। अनेकों महिलाऐं तो कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देख पाती। छोटे ज़िलों या कस्बों में हालांकि इस दिशा में जन जागृति आनी अभी बाकी है किंतु इस दिशा में सरकार.. संस्थाओं के प्रयास निरंतर चल रहे हैं देखें वे अपने उद्देश्य में कहां तक सफलीभूत होती है।
इतना तो हम जानते ही हैं कि साक्षरता समाज की संस्कार व्यवस्था है। आज का समाज एक प्रतियोगी श्रेष्ठता की स्थापना इसके लिए ये परम आवश्यक है कि एक प्रतियोगी को जन्म देने वाली माता जो उसे पालती पोसती है बड़ा करती है। उसमें भी श्रेष्ठता का गुण अनिवार्य होना ज़रुरी है जैसे टेढ़े-मेढ़े पौधे की लकड़ी कोई काम की नहीं होती, अर्थात जब एक महिला ही सुसंस्कत नहीं हो पायेगी तो वह श्रेष्ठ प्रतियोगी और संस्कारवान भविष्य कैसे दे सकती है। ‘मुझे सुशिक्षित माताएं मिले तो मैं एक सुदृढ राष्ट्र का निर्माण कर सकता हूं।’ नेपोलियन की यह उक्ति आज भी प्रासंगिक है जितनी की कल किसी राष्ट्र के सुदृढ़ निर्माण मे सुशिक्षित और सुसंस्कति महिलाओं की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
ज्ञान की पहली सीढ़ी साक्षरता है। मानवता में मानवीय गुणों का आविर्भाव भी साक्षरता से संभव है। इस दृष्टि से इसे जीवन का मार्ग दर्शी प्रकाश भी निरुपित किया गया है। आशा है महिलाओं में पूर्ण साक्षरता के माध्यम से निरक्षरों के उत्थान में समुचित राष्ट्र उत्थान के लिए नई ज्योति का जो ज्योतिपुंज प्रज्जवलित किया गया है। वह अब निरंतर गतिशील और प्रकाशवान रहेगा। इस दिशा में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के निर्देशानुसार महिला कार्यशाला का भी आयोजन जगह-जगह किया जा रहा है पूरे देश में। इसमें देश की प्रतिष्ठित अनेक महिलाओं ने अपनी भागीदारी के साथ समाज में उनकी स्थिति सुदृढ़ करने की दिशा में विशेष काम किया है इनके अथक प्रयासों का ही सुखद परिणाम है कि 68122 निरक्षर महिलाओं में से 60204 महिलाओं को साक्षर बना दिया गया है। (नोट उपरोक्त आंकड़े-मध्यप्रदेश से संबंधित है।)