ज़ेबरा की पीठ पर धारियां

बहुत पहले की बात है, उस समय अफ्रीका के जंगलों में रहने वाले पशुपक्षी वहां रह रहे आज के पशु पक्षियों से बहुत भिन्न थे। जेबरा की पीठ बहुत मुलायम और चमकदार हुआ करती थी, उसकी चमड़ी का रंग पहाड़ों की बर्फ की तरह सफेद था।
जंगल के पशु जेबरा की सुंदरता की खूब प्रशंसा करते थे, इसीलिए जेबरा घमंडी हो गया था। जब कोई जानवर उसे सुंदर कहता तो उसका सीना गर्व से फूल जाता था। इसके विपरीत बैबून (अफ्रीका का विशालकाय बंदर) का शरीर सिर से पांव तक लम्बे, नरम और मुलायम बालों से ढंका हुआ था। बैबून को अपना रंगरूप अच्छा न लगता। जेबरा दिनभर अपनी सुंदरता के पीछे पागल रहता। वह नदी के पानी में बहुत देर तक खड़ा रह कर अपने रूप को निहारता रहता था।
एक दिन जब जेबरा नदी पर पानी पी रहा था, तभी एक बैबून वहां पानी पीने के लिए पहुंचा। बैबून को देखकर जेबरा की भवें तन गई। वह कुछ देर तक उसे घूरघूर कर देखता रहा लेकिन बैबून चुपचाप पानी पीता रहा। उसने जेबरा की ओर देखा तक नहीं। वह घमंडी जेबरा की आदतों से परिचित था। ‘अरे बैबून, तुम यहां पानी पीने कैसे आ गए?’ जेबरा ने गुस्से से कहा।
‘बैबून बोला, ‘क्या यह नदी तुम्हारे बाप की है?’ ’मेरे कहने का मतलब तुम नहीं समझे, जेबरा ने पूंछ हिलाते हुए कहा’
’तो समझा न,‘ बैबून बोला
’मेरे कहने का मतलब है, एक सुंदर पशु के सामने बदसूरत जानवर पानी पिये, यह शोभा नहीं देता। मेरे चले जाने के बाद तुम्हें पानी पीना था, जेबरा ने बैबून का मजाक उड़ाया।
’अरे अभिमानी, अपनी सुंदरता पर इतना इतरा मत, किसी दिन धोखा खा जाएगा,‘ बैबून ने समझाया
’मैं अपनी सुंदरता पर घमंड क्यों न करूं। अरे बैबून कितने बदसूरत प्राणी हो तुम? क्या तुम्हें मेरी सुंदरता देख कर कभी ईर्ष्या नहीं होती?’ जेबरा ने बैबून को फिर चिढ़ाया।
यह सुन कर बैबून आगबबूला हो उठा और गुस्से में जेबरा से बोला, ‘मैं तुम से ईर्ष्या भला क्यों करूंगा। हम तो एक ही जंगल के रहने वाले हैं। हम में मित्रता होनी चाहिए। रंग रूप से क्या लेना देना, वह तो कुदरत की देन है।’
जेबरा ने हंसते हुए कहा, ‘अरे, जा जा, बड़ा आया मुझ से दोस्ती करने वाला। मैं एक बदसूरत जानवर से दोस्ती कभी नहीं कर सकता।’
बैबून भी सीना तान कर बोला, ‘तुम्हारा शरीर सुंदर ज़रूर है किंतु ताकत में मैं तुम से श्रेष्ठ हूं, चाहो तो मुझ से मुकाबला कर के देख लो। मैं तुम्हें युद्ध की चुनौती देता हूं’
जेबरा को अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था। इसलिए उसने बैबून को नीचा दिखाने के लिए उसकी चुनौती स्वीकार कर ली।
मुकाबले के लिए अगला दिन भी निश्चित हो गया। मुकाबले वाले दिन जुलू जनजाति के लोग एवं वहां रहने वाले बहुत से पशु पक्षी एक जलते आग के गोलाकार अलाव के इर्द-गिर्द जमा हो गए। परंपरा के अनुसार जुलू जाति के लोगों ने ढोल नगाड़े बजाने शुरू कर दिये। जेबरा और बैबून के बीच मुकाबला शुरू हो गया।
बैबून शक्तिशाली होने के साथ-साथ चालाक भी था। वह जेबरा को लगातार उस अलाव की तरफ धकेलता जा रहा था जिस में आग धधक रही थी। मुकाबले से पहले उसने चालाकी से कुछ पत्थर अलाव के पास रख दिए थे। मूर्ख जेबरा उस की चालाकी को भांप न सका।
दोनों के बीच घमासान मुकाबला हो रहा था। पीछे हटते हुए जेबरा का एक पांव उन पत्थरों से उलझ गया और वह जलते अलाव में जा गिरा। आग से जेबरा का शरीर बुरी तरह झुलस गया। वह बुरी तरह कराह उठा, लेकिन फिर उस ने जैसे तैसे स्वयं को अलाव से निकाला और अपनी पूरी ताकत के साथ बैबून पर टूट गया।
उसने बैबून के कूल्हे पर इतने जोर से लात जमाई कि उसके कूल्हे के सारे बाल झड़ गए। बाल झड़ जाने से उसकी त्वचा की गुलाबी रंगत बाहर झांकने लगी।
बैबून बिना बाल वाला गुलाबी रंग का जीव महसूस होने लगा। जेबरा और बैबून के बीच मुकाबला बड़ी देर तक चलता रहा लेकिन कोई फैसला नहीं हो सका। अंत में थक हार कर दोनों अपने अपने घर चले गए। आग में गिरने के कारण जेबरा की पीठ बुरी तरह झुलस गई थीं। उस पर काली काली धारियां पड़ गई। तभी से जेबरा की पीठ पर काली धरियां होती हैं और बैबून के कूल्हे बिना बालों के गुलाबी रंग के हैं। (उर्वशी)