कहानी-लक्ष्मी

(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक दखें)

आखिर है तो मेरे पापा ही ना रोशनी ने ऑपरेशन करके अकल की जान आखिर बचा ही ली। लक्ष्मी ऑपरेशन के बाद घर की तरफ जाने लगी तभी अचानक उसका एक्सीडेंट हो गया उसके एक्सीडेंट की सूचना देने के लिए अकल के पास फोन आया पर अकल ने ये कहकर फोन काट दिया कि मैं किसी लक्ष्मी को नहीं जानता।
जैसे ही ज्योति को इस बात का पता चला ज्योति भागकर जाती है और लक्ष्मी को लेकर हॉस्पिटल में भागी-भागी आती है। डॉक्टर रोशनी बेटा ये बहन है तुम्हारी इसे बचा लो। रोशनी ने बोला आप जाइए, मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगी। लक्ष्मी की बचने की संम्भावना बहुत ही कम थी। अब उसकी अंतिम सांस चल रही थी।
रोशनी ने पूछा लक्ष्मी तुम्हारी कोई इच्छा हो तो मुझे बताओ। लक्ष्मी बोली एक तो मैं देह दान करना चाहती हूँ, जिससे मेरे शरीर के प्रत्येक अंग किसी की जिंदगी बचा पाए, जीते जी तो मैं किसी के काम नहीं आ पायी दीदी और दूसरा मैं पापा को एक बार गले से लगाना चाहती हूँ। आप करोगे ना मेरी विश पूरी?
रोशनी जैसे ही उसे अकल की पास ले जाने वाली थी तभी उसकी मृत्यु हो गयी। अकल अब पूरी तरफ से स्वस्थ थे। उन्होंने ज्योति से पूछा मेरा बेटा वंश कहा है उसने ही मुझे लीवर दिया है ना ज्योति। ज्योति ने अकल को सारी सच्चाई बता दी अब अकल की आंखों पर से बंधी हुई पट्टी खुल चुकी थी।
ज्योति कहां है मेरी लक्ष्मी मुझे उसे अपने गले लगाना है। इतने में डॉक्टर रोशनी ने आकर ये दुखद समाचार सुनाया लक्ष्मी अब हमारे बीच नहीं रही और सारी बातें बतायी। अकल को अब समझ आ गया था कि जिन बेटियों से उसने जीवन भर नफरत की आज उन दोनों ने ही उसकी जान बचाई है। रोशनी मुस्कुरायी और बोली अब शायद आपको समझ आ गया होगा ना पापा की जिस लड़की को आपने कूड़े के ढेर में फेंक दिया था व जिस लड़की से आप कभी नहीं बोले आज उन दोनों ने ही आपकी जान बचाई। पापा कहां है आपका बेटा? आपका वंश चलाने वाला? अब पछतावे के सिवा अकल के पास कुछ भी नहीं बचा था अब ज्योति अकल बिल्कुल अकेले हो चुके थे। वंश उनका साथ छोड़कर विदेश चला गया। रोशनी जो अब किसी और की संतान थी, वो अपने माता-पिता के पास चली गयी व लक्ष्मी ने ये दुनिया ही छोड़ दी अब कुछ समय बाद ज्योति व अकल के पास फोन आया की आपको सम्मानित करने के लिए बुलाया गया है। अकल व ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उन्होंने ऐसा क्या किया है पर जैसे ही वो उस सम्मान समारोह में गए लक्ष्मी के देहदान करने के लिए उनको सम्मानित किया गया व कार्यक्रम के मुख्यातिथि बोले-पता है आपको अकल जी, आपकी बेटी ने कितनों के जीवन में रोशनी भर दी। उसकी आंखों से आज मेरा बेटा देख सकता है। उसका दिल आज किसी दूसरे से सीने में धड़कता है, उसकी किडनी ने भी किसी का जीवन बचा लिया, आपकी बेटी सच में मरते-मरते भी कितनों का जीवन बचा गयी उसने मरने से पहले मुझे आपके लिए एक पत्र दिया था लीजिए अकल जी आपकी बेटी लक्ष्मी का अंतिम पत्र। 
अकल ने रोते-रोते उस पत्र को खोला व पढ़ना शुरू किया जिसमें लिखा था मेरे प्यारे पापा, मैं आपसे बहुत ही ज्यादा प्यार करती हूँ पर कभी आपसे ये कह नहीं पायी आपको गले लगाना चाहती थी पर कभी लगा नहीं पायी। देखिए, पापा आपको हमेशा लगता था ना मैं बोझ हूँ इसलिए मैं अपना शरीर भी अंतिम संस्कार के लिए नहीं छोडूंगी। मैं नहीं चाहती मेरी वजह से आप परेशान हो इसलिए मैं देहदान कर रही हूँ। आप हमेशा खुश रहिए और हाँ, अपना और माँ का ध्यान रखिएगा। इतना तो मांगने का हक है ना मेरा आपसे पापा।
ज्योति ने रोते-रोते अकल को अपने गले लगाते हुए समझाया देखिए बेटी से ही जीवन है। मैं भी तो किसी की बेटी ही हूँ ना अगर बेटी ही नहीं होगी तो कोई जन्म कैसे ले पाएगा माँ, बहन,पत्नी हर रूप में बेटी ही तो होती है ना। अकल को कुछ समझ नहीं आ रहा था। अकल और ज्योति ने रोते-रोते कहा बेटा लक्ष्मी मरने के बाद भी अपने माता-पिता को तुमने गर्व महसूस करवाया है, अब तो हम हमेशा कहेंगे हर घर में एक बेटी ज़रूर हो जो माता-पिता का सहारा बनें।   

(सुमन सागर) (समाप्त)