जीवन की ढलती सांझ में उपेक्षा झेलते बुजुर्ग

दुनियाभर में प्रतिवर्ष 1 अक्तूबर को बुजुर्गों के प्रति सम्मान व्यक्त करने, उनकी समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा उनकी उपेक्षा और उनके साथ होते दुर्व्यवहार को रोकने के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस’ मनाया जाता है। दरअसल बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और उनकी उपेक्षा के मामले निरन्तर बढ़ रहे हैं। इसीलिए 1982 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘वृद्धावस्था को सुखी बनाइए’ जैसा नारा देते हुए ‘सबके लिए स्वास्थ्य’ अभियान का श्रीगणेश किया था। वृद्धों के साथ होने वाले अन्याय, उपेक्षा और दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने और वृद्धजनों के प्रति उदारता व उनकी देखभाल की जिम्मेदारी के अलावा उनकी समस्याओं के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने 14 दिसम्बर 1990 को निर्णय लिया कि प्रतिवर्ष एक अक्तूबर का दिन दुनियाभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र की उस पहल के बाद एक अक्तूबर 1991 को पहली बार यह दिवस मनाया गया, जिसे ‘अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस’ के नाम से भी जाना जाता है।
भारत में संयुक्त परिवारों के बजाय आज के समय में एकल परिवारों के बढ़ते चलन के कारण बुजुर्गों की उपेक्षा के मामलों में वृद्धि हो रही है। परिवार के लोगों तथा समाज की उपेक्षा, दुर्व्यवहार सहित पहले से ही अनेक तरह की समस्याएं झेलने को विवश बुजुर्गों में अब आत्महत्या के मामले भी बढ़ रहे हैं। 
एक रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया था कि 2020 में केवल मुम्बई में ही 121 बुजुर्गों की मौत आत्महत्या के कारण हुई थी, जो 2019 में बुजुर्गों की आत्महत्या के आंकड़ों से करीब 31 प्रतिशत ज्यादा था। बुजुर्ग महिलाओं में आत्महत्या के मामलों में 60 प्रतिशत जबकि पुरूषों में 21 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। 2019 में मुम्बई में 92 बुजुर्गों ने आत्महत्या की थी। वर्ष 2011 में भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या 10.4 करोड़ तथा 2016 में करीब 11.6 करोड़ थी और अनुमान है कि यह 2026 में बढ़कर 17.9 करोड़ तक पहुंच जाएगी। एक अन्य अनुमान के मुताबिक 2050 तक दुनियाभर में 65 वर्ष के आसपास की आयु के लोगों की संख्या एक अरब होगी, जिनमें से अधिकांश वृद्ध भारत जैसे विकासशील देशों में ही होंगे क्योंकि यहां जनसंख्या बहुत ज्यादा है। वृद्धों में भी महिलाओं की संख्या ज्यादा होगी क्योंकि वे प्राय: पुरुषों से ज्यादा लम्बा जीवन जीती हैं। ‘वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स 2019’ में बताया गया था कि दुनियाभर में जहां वर्ष 2019 में प्रत्येक 11 में से एक व्यक्ति की उम्र 65 वर्ष से ज्यादा है, वहीं वर्ष 2050 तक विश्व में हर 6 व्यक्तियों में से एक की आयु 65 वर्ष से अधिक होगी अर्थात् बुजुर्गों की जनसंख्या काफी ज्यादा होगी।
बुजुर्गों में अब अकेलेपन या सामाजिक अलगाव के कारण भय और निराशा के लक्षण भी बढ़ रहे हैं। ‘हैल्प एज इंटरनेशनल नेटवर्क ऑफ चैरिटीज’ नामक संस्था द्वारा 2020 में एक सर्वे कराने के बाद कुल 96 देशों का ‘ग्लोबल एज वॉच इंडेक्स’ जारी किया गया था। उस इंडेक्स के मुताबिक करीब 44 प्रतिशत बुजुर्गों का मानना था कि उनके साथ सार्वजनिक स्थानों पर दुर्व्यवहार किया जाता है जबकि करीब 53 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना था कि समाज उनके साथ भेदभाव करता है। उस रिपोर्ट के अनुसार बुजुर्गों के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन जगहों की विश्व रैंकिंग में स्विटजरलैंड का नाम सबसे अच्छी जगह के रूप में जबकि भारत का नाम खराब जगह की श्रेणी में आता है। 96 देशों के ग्लोबल एज वॉच इंडेक्स में भारत को 71वें पायदान पर रखा गया था, जो भारत में बुजुर्गों के प्रति होने वाली उपेक्षा को दर्शाता है। एक गैर सरकारी संगठन ‘एजवेल फाउंडेशन’ द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार बुजुर्गों में स्वास्थ्य चिंताएं, अनिद्रा, डर, हताशा, चिड़चिड़ापन, तनाव, बुरे सपने आना, खालीपन की भावना, वायरस से पीड़ित होने की आशंका, भूख की कमी और अनिश्चित भविष्य से जुड़ी चिंता जैसी समस्याएं आ रही हैं।
आईआईटी मद्रास द्वारा बुजुर्गों के हैल्थ केयर पर किए गए एक सर्वेक्षण की ‘ग्लोबलाइजेशन और स्वास्थ्य’ पत्रिका में प्रकाशित हुई रिपोर्ट के मुताबिक बुजुर्गों में मधुमेह, रक्तचाप तथा हृदय संबंधी बीमारियां ज्यादा आम मौजूद मिली। चौंकाने वाला यह तथ्य भी सामने आया था कि केवल 18.9 प्रतिशत बुजुर्गों के पास ही स्वास्थ्य बीमा की सुविधा थी और स्वास्थ्य पर उनके ज्यादा खर्च करने की क्षमता नहीं थी। बुजुर्गों के बीच अकेलापन भी बढ़ रहा है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक साबित हो रहा है। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि बुजुर्ग व्यक्ति उच्च स्तर के अकेलेपन के शिकार होते हैं। समाज से ज्यादा समय तक अलग-थलग रहने के कारण उनमें डिप्रैशन और चिंता, अत्यधिक शराब पीना या मस्तिष्क क्रिया बिगड़ना, डिमेंशिया इत्यादि स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याएं हो सकती हैं, जो उनके इम्यून सिस्टम के अलावा उनकी हृदय प्रणाली को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। विशेषज्ञों को चिंता इस बात को लेकर है कि अकेलेपन के कारण लोगों की मौत जल्दी हो जाती है।
बुजुर्गों की स्थिति पर आईआईटी मद्रास की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 80 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की 27.5 प्रतिशत जनसंख्या गतिहीन है और बुजुर्गों की करीब 70 प्रतिशत संख्या आंशिक या पूरी तरह से दूसरों पर आर्थिक रूप से निर्भर है। हालांकि देश में बुजुर्गों की आर्थिक परेशानियों को कुछ हद तक दूर करने के लिए 19 नवम्बर 2007 को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना की शुरूआत की गई थी और केन्द्र सरकार द्वारा 60 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक बुजुर्ग को 200 रुपये तथा 79 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों को 500 रुपये प्रतिमाह पेंशन का प्रावधान किया गया था। आश्चर्य की बात है कि निरन्तर आसमान छूती महंगाई के बावजूद पेंशन राशि में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि इस केन्द्रीय योजना में कुछ राज्यों ने अपनी ओर से कुछ धनराशि जोड़कर इसे 2000 रुपये तक किया है लेकिन पेंशन परिषद की एक रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि आज भी कई करोड़ लोगों को पेंशन नहीं मिल पा रही है।

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