गावों से होकर निकलता है आर्थिक विकास का रास्ता

भारत जैसे कृषि प्रधान देश के आर्थिक विकास में गांवों की अभूतपूर्व हिस्सेदारी होती है। भारत में 70 से 80 प्रतिशत की आबादी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से गांवों में निवास करती है। अत: इतनी बड़ी आबादी का देश की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान हो जाता है। ग्रामीण विकास से ही देश की आर्थिक प्रगति व आत्मनिर्भरता का रास्ता निकलता है।
देश का औद्योगिक उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्पाद की मांग होना लाज़िमी होता है। देश की बड़ी आबादी गांवों में रहती है और यदि गांव वाले गरीब है तो औद्योगिक उत्पादन की भारी मांग कौन करेगा? अत: यदि गांव में रहने वालों की खरीद शक्ति बढ़ा दी जाय तो आवश्यक वस्तुओं की अधिक मांग करेंगे और उससे उद्योगों के उत्पादों की मांग बढ़ सकेगी। मांग बढ़ने से उद्योगों की स्थापना भी बड़ी मात्रा में हो सकेगी जिससे उद्योगों में रोज़गार भी बढ़ सकेगा। 
ग्रामीण क्षेत्रों में यदि खपत बढ़ती है तो उसका सीधा प्रभाव अन्य उद्योगों पर भी पड़ेगा। सरकार ने किसानों को 12000 रुपये वार्षिक दिये तो इससे बीज, खाद, कीटनाशक जैसे उद्योगों की मांग बढ़ी जिससे उद्योगों का विकास हुआ। वहीं वस्त्र, दवाऐं, चमड़ा, बैंकिंग व बीमा आदि सहित कई अन्य उद्योगों में वृद्धि व प्रगति हुई क्योंकि किसानों ने सरकार से प्राप्त इस रुपये को व्यय किया। उद्योगों पर सरकार जीएसटी व आयकर वसूल करती है तो सरकार की आय भी बढ़ती व उद्योगों में बेरोज़गारी की समस्या भी थोड़ी बहुत हल हो जाती है।
सरकार ने इस बात को समझा तथा विकास की गति को तेज़ करने के लिए किसानों व ग्रामीणों के लिए विभिन्न योजनाएं शुरु की जिसमें किसान सम्मान निधी, विधवाओं, बृद्धों व विकलांगों को पैंशन, आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड पर पांच किलो खाद्यान्न, गैस, आवास आदि अनेक प्रकार की आर्थिक सहायता प्रदान की गई। 
गांवों में 60 प्रतिशत से अधिक लोग स्थायी निवास करते हैं परन्तु अर्थव्यवस्था में ग्रामीण खपत की हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत ही है। इसलिए मनरेगा, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना जैसी बुनियादी योजनाओं के लिए अधिक राशि आंबटित की गई। इसी प्रकार कृषि उत्पादों के निर्यात पर भी अधिक ध्यान दिया जा सकता है। वैसे भी चुनौतियों के रहते हुए भी कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ता जा रहा है, जिसको और बढ़ाने की आवश्यकता है।
वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में ग्रामीण विकास के लिए कुल मिला कर 1,35,944 करोड़ रुपये का आंबटन किया गया था जिसको आगामी बजट में और बढ़ाया जा सकता है। सरकार की इच्छा ग्रामीण खपत को बढ़ावा देने की बन चुकी है। इससे ग्रामीण आय तथा खपत (व्यय) दोनों ही बढ़ सकते हैं। भारत में अभी भी कृषि मानसून पर ही आधारित है जिससे किसानों की आय अस्थिर हो जाती है, जिसका प्रभाव ग्रामीण मांग पर भी पड़ता है। खेतों में काम करने वाले मज़दूर भी रियल स्टेट व इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे रोज़गार देने वाले उद्योगों में पलायन कर जाते हैं जिससे किसानों को परेशानी होती है। सरकार भी खाद्य सुरक्षा से जुड़े चावल, गेहूं, दाल व अन्य अनाज की सीमित मात्रा को ही निर्यात की अनुमति दे सकती है। अत: सरकार व्यावसायिक  फसलों व मोटे अनाज पर विशेष कार्यक्रम चला सकती है। फलों, सब्ज़ी, डेयरी आदि उत्पादों पर अधिक ध्यान देकर विश्व के खाद्य संकट में भी अवसर देख सकती है।
कृषि निर्यात में वर्ष 2022 के नौ महीनों में विभिन्न फसलों के निर्यात में बृद्धि इस प्रकार हुई थी। प्रोसेस्ड आइटम का 20.03 प्रतिशत, कॉफी का 16.80 प्रतिशत, चावल का 16.09 प्रतिशत, अन्य प्रकार के मोटे अनाज का 13.65 प्रतिशत, तिलहन का 12.69 प्रतिशत, चाय का 12.43 प्रतिशत, फल व सब्ज़ी का 9.07 प्रतिशत, समुन्द्री उत्पाद का 2.74 प्रतिशत निर्यात रहा। इसलिए कृषि उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए कार्यक्रम चलाये जा सकते हैं। किसानों की आय निर्यात से बढ़ेगी तो ग्रामीण खपत पर भी प्रभाव अवश्य पड़ेगा। उससे गांवों के साथ-साथ निकटवर्ती शहरों के आर्थिक विकास में योगदान मिल सकेगा। 
अब तो बैंकों के माध्यम से धन दिया जा रहा है जो सीधे किसान के पास आसानी से पंहुच जाता है और पैसे को किसान व्यय करेगा तो उद्योग-धन्धों का विकास होगा जिससे सम्पूर्ण देश की अर्थ व्यवस्था पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।