केशोपुर छम्ब जहां प्रत्येक वर्ष हज़ारों विदेशी पक्षी शुभकामनाएं देने आते हैं

पक्षियों का प्राकृतिक वातावरण में जीना, प्राकृतिक भोजन के साधानों में रहना, मनोरंजन मूल्य को ढूंढना, रैन-बसेरे के लिए अपनी जीवनशैली के अनुकूल स्थान ढूंढना, पक्षियों के स्वभाव में शामिल होता है। पुश्तैनी जीवन से अपनी जिजीविषा का अस्तित्व संभालते हैं।
प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह से लेकर मार्च माह तक केशोपुर छम्भ (बेहरामपुर क्षेत्र) गुरदासपुर, पंजाब में हजारों ही प्रवासी तथा देसी पक्षी मिल कर भारी, मीलों तक लम्बा प्राकृतिक मेला अस्तित्व में लाते हैं। इस छम्भ का क्षेत्र लगभग 850 एक? में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में लगभग 434 तरह के पक्षी आते हैं। यह पक्षी 245 श्रेणियों में बांटे जाते हैं।
गांव केशोपुर छम्भ के क्षेत्र की ओर सर्दी की सुन्दर ऋतु का मंगलाचरण होने पर पक्षियों की पंक्तियों पर पंक्तियां आती हैं। इस वर्ष लगभग 15 हज़ार के करीब पक्षी आए हैं। छम्भ का क्षेत्र कम होने की वजह से पक्षियों की संख्या भी कम हो गई है। पिछले एक दशक के दौरान पक्षियों के आने की संख्या लगभग 40 हजार के करीब थी।
केशोपुर छम्भ का क्षेत्र दीर्घ प्राकृतिक तालाबों बाला, ऊंची, दरम्यानी तथा लघु जड़ी-बूटियों सहित तरह-तरह के घास वाला भव्य, मर्मस्पर्शी, मनोरंजनपूर्वक प्राकृति की गोद में बसा क्षेत्र है। प्राकृतिक तालाबों नुमा झीलों की भरमार, प्राकृतिक लघु वन्य (जंगलाती) क्षेत्र, कीट-पतंगो का रैन-बसेरा तथा कई प्रकार के जानवर भी यहां पनाह लेते हैं। कुछ पक्षी अक्तूबर माह से लेकर मार्च माह तक पानी में ही तैरते रहते हैं। दीर्घ तालाबों के छोरों पर जाकर आपस में कलोल करते, अठखेलियां करते, मस्तियां करते, अलग-अलग मनमोहक आवाज़ें निकाल कर मौसम की मांग में खूबसूरती का सिंदूर बिखेरते। तरह-तरह के पक्षियों की ध्वनियों का मिश्रण एक जन्नत जैसा नज़ारा देता।
गुरदासपुर में लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर, बेहरामपुर रोड़ के पास स्थित अनेक मीलों में फैला छम्भ का क्षेत्र विलक्षण स्थान रखता हुआ प्रकृति की मेहरबानी तथा शुभ इच्छाओं सहित अपना अस्तित्व बनाई बैठा है। इस क्षेत्र के साथ की कुछ मीलों की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा लगती है।
 इस क्षेत्र की ओर 40 किस्म के वृक्ष, 32 किस्म की जड़ी-बूटियां तथा अनेक प्रकार की फसलें होती हैं। बेहरामपुर क्षेत्र की बासमति आज भी मशहूर है। इस प्राकृतिक साधनों वाली ज़मीन में कमल-ककड़ी तथा मच्छली पालन का धंधा होता है। कमल-ककड़ी छम्भ के क्षेत्र के तालाबों में होती है जो कई-कई वर्ष प्राकृतिक तौर पर होती है।
इस क्षेत्र की भूमि कई भागों में विभाजित होती हे जैसे बंजर (कलराठी), चीकनी, बरेतली तथा पन्नाह, दरिया की लाल माटी। इस क्षेत्र के प्राकृतिक तालाबों में विशेष तौर पर मघ (मुर्गाबी की श्रेणी) नीलसर, तीन किस्म की मुर्गाबी, कूट, ब्लैक कूट, सारस करेन, सैरों-कूंझ, शिकरा, जलमुर्गी, तरह-तरह की चिड़ियां, बगले, बत्तख, बलू क्राऊड, राम चिरइया इत्यादि काफी मात्रा में पाए जाते हैं।
विदेशी पक्षी चीन, बुल्गारिया, रूस, कजाकिस्तान, अफगानिस्तान इत्यादि के अतिरिक्त देसी पक्षी चम्बा, डलहौजी (हिमाचल) के क्षेत्र से आते हैं। सबसे मर्मस्पर्शी तथा सुन्दर पक्षी कूंज (सारस) तथा मुर्गाबियां पाई जाती हैं। कूंजे मुर्गाबी से बहुत बड़ी होती हैं तथा बहुत ऊंचाई पर पंक्तियां बना कर उड़ती हैं। यह अंग्रेजी के शब्द (ट) की शक्ल में उड़ती हुई बहुत अच्छी लगती है। कूंजों में नर कम तथा मादा ज्यादा होती हैं। इनका नेतृत्व नर करता है। यह कई-कई घण्टे आसमान में उड़ने की क्षमता रखती है। यह अंदाजन 80 किलोमीटर से लेकर 150 किलोमीटर तक उड़ने की समर्था रखती हैं। कूंजे अपने अण्डे देकर ईधर आ जाती है और लगभग छह माह ईधर रह कर फिर उधर जाकर बच्चे निकालती हैं। लगभग छह माह के पश्चात् ही अण्डों से बच्चे निकलते हैं। अब अण्डे छोड़ कर आती हैं तो पीछे उनका रखवाला भगवान ही होता है। इन पक्षियों का जिक्र अनेक लेखकों-कवियों ने भी किया है।
केशोपुर छम्भ का क्षेत्र रावि दरिया के साथ पड़ता है तथा दूसरी तरफ विपरीत पण्डोरी बैंसा से लेकर पुराना शाला, काहनूवान छम्भ क्षेत्र, कपूरथला तथा हरि के पत्तन ब्यास दरिया के साथ जुड़ते हैं। दरिया ब्यास तथा सतलुज हरि के पत्तन पर इक्ट्ठे होते हें। इस समस्त क्षेत्र की ओर लाखों की संख्या में पक्षी आते हैं। केशोपुर छम्भ में छोटी मुर्गाबी की संख्या अधिक पाई जाती है। बड़े-बड़े तालाब नुमां झीलों में मुर्गाबियां के झुण्ड जब तैरते हैं तो अच्छा लगता है। बच्चों के लिए देखने वाला दृश्य होता है। बच्चों के मनोरंजन के लिए यह एक बढ़िया स्थान है। मुर्गाबी की सफैद चोंच, काली गर्दन, काला भूरा आकर्षक बदन अच्छा लगता है। एक मुर्गाबी 12 सैकिंड तक पानी में गर्दन डुबा कर डूबकी लगाने की क्षमता रखती है। इनके बच्चे भी डुबकी लगाने में माहिर होते हैं।
इस केशोपुर छम्भ की भव्यता तथा देश-विदेश के पर्यटकों के मनोरंजन के लिए ए.डी.बी. बैंक की सहायता के लगभग 9 करोड़ 35 लाख रूपए मंजूर हुए। यह पैसा किश्तों में लगाया जा रहा है। बाहरी कार्य के लिए 350 ऐकड़ भूमि मटवां पंचायत ने दी है। यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए सर्वोत्तम दर्जे के आधुनिक भू-मंडलीकरण सुविधाएं दी जाएगी। विशेष तौर पर इस में खूबसूरत चार दीवारी, रैस्टोरैंट, गाड़ियां, जनरेटर, हाल, कार-पार्किंग, रिहायशी कमरे, पूछताछ केन्द्र, गाईड, डिस्पलेय स्क्रीन आदि सुविधाएं हैं। इसमें पांच बड़े टॉवर बनाए जा रहे हैं, जो 33 फूट ऊंचे होंगे, छम्भ के इस क्षेत्र में दो पुल भी बनाए जाएंगे।
इस इलाके के ग्रामीण क्षेत्र में कई सैल्फ हैल्प ग्रुप तैयार किए गए हैं, जो जड़ी-बुटियों तथा पौधे से अनेक वस्तुएं तैयार करेंगे। इस छम्भ में सुंदर रास्ते बनाए जा रहे हैं। लगभग 8 किलोमीटर की कच्ची सुंदर सड़कों का निर्माण। इस सारे प्रयोजन में पिछड़े इलाके के अनेक नवयुवकों को रोज़गार मिला। इस पिछड़े हुए छम्भ क्षेत्र को एशिया का सुंदर, दिलकश तथा यादगारी स्थान बनाया गया।
इस सारे प्रोजैक्ट के लिए स्कॉटलैंड से आई एक महिला विज्ञानी ने विभिन्न तरह की ट्रेनिंग भी दी है। इस इलाके को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते रहते हैं। एक तजुर्बेकार किसान मनमोहन सिंह धकालवी ने बताया कि कुछ शरारती लोग आज भी लुक-छिप कर इन पक्षियों का शिकार करते हैं, चाहे शिकार पर सख्त पाबंदी है। उसने बताया कि छम्भ के क्षेत्र की ओर लोग सुबह सवेरे या रात को टू-फोर डी नाम की दवाई खेतों में या तालाबों के नज़दीक डाल देते हैं, जिसे पक्षी दाना-भोजन समझ खा लेते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है। लोग इनको मांस के तौर पर खाते हैं या बेच देते हैं। खास तौर पर पण्डोरी-काहनूवान छम्भ के क्षेत्र की ओर इनका शिकार होता है। उसने बताया कि छम्भ क्षेत्र की ओर पक्षियों की आमद इसलिए कम हुई है कि खेतों या मछली के तालाबों में नदीन नाशक दवाईयों से भी पक्षियों की मृत्यु हो जाती है और वे ईधर नहीं आते। इस छम्भ के ग्रामीण क्षेत्र में कई पेइंग गैस्ट हाऊस भी मिल जाते हैं, क्योंकि विदेशी लोग पेइंग गैस्ट हाऊसों में रहना ज्यादा पसंद करते हैं।

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)
मो: 9815625409