प्रांतीय चुनावों का महत्व

देश के 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों की तिथि की घोषणा हो चुकी है, जिसके अनुसार छत्तीसगढ़ में दो चरणों में 7 और 17 नवम्बर को, राजस्थान में 23 नवम्बर को और तेलंगाना में 30 नवम्बर को चुनाव होंगे, जिनके परिणाम एक साथ 3 दिसम्बर को घोषित होंगे। इस घोषणा से पूर्व राजनीतिक स्तर पर हुए घटनाक्रम को देखते हुए यह अंदाज़ा लगाया जा रहा था कि शायद इन राज्यों के चुनाव भी आगामी वर्ष लोकसभा के चुनावों के साथ ही करवाए जाएंगे, क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा विगत समय में इस बात पर लगातार ज़ोर दिया जाता रहा था कि देश में सभी स्तर पर एक ही समय पर चुनाव करवाए जाने चाहिएं। इसी के मद्देनज़र केन्द्र सरकार द्वारा एक कमेटी की स्थापना का भी ऐलान कर दिया गया था, जिसने अपना काम भी शुरू कर दिया है। यह कमेटी संविधान को सामने रखते हुए इस बात पर विस्तृत विचार-विमर्श करेगी कि किस ढंग-तरीके के साथ ये चुनाव इकट्ठे हो सकेंगे? इसके पक्ष में केन्द्र सरकार और कुछ अन्य वर्गों द्वारा ये दलीलें दी जा रही हैं कि इकट्ठे चुनाव होने से बहुत बड़ी धन राशि जो चुनाव पर खर्च होती है, बचाई जा सकेगी। यह भी कि देश में हर स्तर पर कहीं न कहीं लगातार चुनावों के ऐलान होते रहते हैं, जिनमें बड़े स्तर पर सरकारी मशीनरी लगी रहती है और इस सब कुछ के साथ महत्वपूर्ण काम भी रुके रहते हैं परन्तु देश के संविधान के संघीय ढांचे को लेकर इसके विरोधियों द्वारा यह भी कहा जाता है कि इससे संघीय ढांचे पर असर पड़ेगा। यह भी कि इकट्ठे चुनाव के उद्देश्य से जिन राज्यों में चुनी हुई सरकारों को संविधान के अनुसार, अपना निश्चित पूरा समय नहीं मिलेगा। उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का भी यह उल्लंघन होगा। 
इसलिए आगामी लम्बे समय तक एक साथ चुनाव करवाने की प्रक्रिया को बूर पड़ते नज़र नहीं आ रहा, क्योंकि इसके लिए कई संवैधानिक संशोधन भी करने पड़ेंगे। देश के स्वतंत्र होने के बाद पहले दशकों में ऐसी कोई गम्भीर समस्या इसलिए नहीं आई थी, क्योंकि केन्द्र में तथा अधिकतर राज्यों में कांग्रेस की सरकारें ही कायम रही थीं, परन्तु बाद में बदलते हालात के कारण कांग्रेस का प्रभाव कम होता गया। इसके साथ-साथ बहुत-से राज्यों में प्रांतीय पार्टियों का भी काफी उभार देखा गया, जिससे राजनीतिक स्थिति लगातार बदलती रही। अब जिन राज्यों में चुनावों की घोषणा की गई है, उनमें मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का शासन है। तेलंगाना में के. चन्द्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति प्रशासन चला रही है और मिज़ोरम में मिज़ो नैशनल फ्रंट की सरकार बनी हुई है। इस प्रकार किसी भी राष्ट्रीय या प्रादेशिक पार्टी का इन राज्यों में बड़ा प्रभाव नहीं देखा जा सकता, परन्तु क्योंकि ये चुनाव आगामी वर्ष लोकसभा चुनाव से पहले होने जा रहे हैं, इसलिए इनसे लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत, पार्टियों के प्रभाव का कुछ सीमा तक पता अवश्य लगाया जा सकेगा। केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगभग विगत 9 वर्ष से भाजपा सरकार चला रही है। इन चुनावों में केन्द्र सरकार के प्रभाव का भी असर देखा जा सकेगा। 
कुछ मास पहले लगभग दो दर्जन विपक्षी पार्टियों का जो ‘इंडिया’ गठबंधन बना है, वह इन चुनावों में किस प्रकार सीटों का लेन-देन करेगा तथा कितने प्रभावी ढंग से ये चुनाव लड़ेगा, इस अहम बात को भी दिलचस्पी से देखा जाएगा। अभी तक इस ‘इंडिया’ गठबंधन का प्रभाव यही बना हुआ है कि राज्यों के स्तर तक यह शायद मिल कर चुनाव लड़ने में अधिक सफल न हो सके, परन्तु फिर भी इस गठबंधन में शामिल पार्टियों की कारगुज़ारी का लोकसभा चुनाव में अवश्य प्रभाव देखा जा सकेगा। आम तौर पर यह माना जाता है कि प्रांतीय चुनावों का महत्व लोकसभा चुनाव से काफी सीमा तक अलग होता है, परन्तु इन पर राष्ट्रीय राजनीति का प्रभाव भी अपना असर दिखाता है। ये चुनाव देश के भिन्न-भिन्न भागों में हो रहे हैं। इसलिए इनसे देश के आम राजनीतिक रुझान का पता भी लगाया जा सकेगा। इसी लिए इन चुनावों को समूचे रूप में बड़ी दिलचस्पी से अवश्य देखा जाएगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द