भारत में हमास समर्थक बयान और प्रदर्शन कितने सार्थक

आतंकी संगठन हमास के इज़रायल पर हमले और फिर इज़रायल के पलटवार से मध्य-पूर्व में भारी अस्थिरता फैल गई है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कहा है कि इज़रायल पर आतंकवादी हमला हुआ है और इस मुश्किल घड़ी में भारत इज़रायल के साथ खड़ा है।
हमास के हमलों को लेकर भारत में इज़रायली राजदूत नाओर गिलोन ने कहा है कि उनके देश को भारत से मज़बूत समर्थन की ज़रूरत होगी। भारत एक प्रभावशाली देश है। वो आतंकवाद की चुनौती को समझता है और इस संकट को भी भली-भांति जानता है।
भारत स्वयं आतंकवाद का दंश वर्षों से झेलता आया है। अत: भारत किसी भी प्रकार के आतंकवादी हमलों की सदा निंदा करता रहा है। जिस तरह का हमला इज़रायल पर यह  हुआ है, वह अपने आप में अप्रत्याशित है। यह दुनिया के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए। इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने जिस प्रखरता से अपनी बात रखी है, इसके बड़े दूरगामी परिणाम सभी देशों के लिए होंगे। 
दुनिया भर में हमास के हमलों की निंदा हो रही है, परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि देश के कुछ हिस्सों से इज़रायल विरोधी और हमास समर्थक बयान और प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं। 9 अक्तूबर को पार्टी की वर्किंग कमेटी की बैठक में कांग्रेस ने इज़रायल पर हमास के हमले में फिलिस्तीन का समर्थन करते हुए प्रस्ताव जारी कर कहा कि पार्टी फिलिस्तीनी लोगों के ज़मीनी हक, स्वशासन, आत्मसम्मान और गरिमा से जीने के अधिकारों के लिए समर्थन को दोहराती है। कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने एक दिन पूर्व बयान देंते हुए कहा कि भारत को इज़रायल के साथ-साथ फिलिस्तीनियों के लिए भी खड़ा होना चाहिए।
दूसरी ओर, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हमास के समर्थन में जुलूस निकाला गया। असदुद्दीन ओवैसी ने खुलकर फिलिस्तीन का समर्थन किया है और इज़रायल को दोषी करार दिया है। कम्युनिस्ट नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने भी इज़रायल का साथ देने के लिए भारत सरकार की आलोचना की है। कई जगहों से इज़रायल में हुए नरसंहार को सेलिब्रेट करने की खबर भी आई है।
यहां बात इज़रायल को समर्थन करने या न करने की नहीं है, बल्कि बात इज़रायल पर हमास के आतंकी हमले की है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी इस बात को लेकर सहमत है कि चाहे उसका कारण कुछ भी हो, आतंकवाद को सही नहीं ठहराया जा सकता है। इसलिए हमास के पास भले ही हमले के लिए कोई कारण था, उनके हमले को हम सही नहीं ठहरा सकते।
हमास हमले की आलोचना को फिलिस्तीन के खिलाफ इसलिए भी नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि हमास पूरे फिलिस्तीन का प्रतिनिधित्व नहीं करता। फिलिस्तीन की प्रशासनिक राजधानी रामल्ला स्थित फिलिस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण और गाज़ा स्थित हमास के बीच भारी मतभेद रहे हैं। भारत ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण के साथ रिश्ते हमेशा बरकरार ही रखे हैं जिसका सबसे बड़ा उदाहरण साल 2018 में प्रधानमंत्री मोदी की रामल्ला की यात्रा है।
चुनाव के समय तुष्टिकरण की राजनीति कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी पार्टियों को सबसे अधिक मुफीद लगती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय भी एक ओर हिंदुत्व को गाली दी जा रही थी, तो दूसरी ओर जिन्ना को देशभक्त बताये जाने की होड़-सी मची थी।
दिसम्बर 2010 में विकीलीक्स ने राहुल गांधी की अमरीकी राजदूत टिमोथी रोमर से 20 जुलाई, 2009 को हुई बातचीत का एक ब्योरा दिया। राहुल ने अमरीकी राजदूत से कहा था, भारत विरोधी मुस्लिम आतंकवादियों और वामपंथी आतंकवादियों से बड़ा खतरा देश के हिन्दू हैं। 13 नवम्बर, 2015 को इस्लामाबाद के जिन्ना इंस्टीट्यूट में दिए भाषण में सलमान खुर्शीद ने कबाइली इलाकों में आतंकवाद के खिलाफ  कार्रवाई के लिए पाकिस्तारन की सराहना की थी लेकिन आज वह हमास हमले की निंदा न करते हुए कहा है कि भारत को फिलिस्तीन में शांति के लिए प्रयास करने चाहिए थे।  
25 अगस्त, 2010 को देश के विभिन्न राज्यों के पुलिस महानिदेशकों के एक सम्मेलन को दिल्ली में संबोधित करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि हाल में कई बम धमाकों में  भगवा आतंक का बम धमाकों से संबंध का पता चला है।
20 जनवरी, 2013 को जयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में कांग्रेस नेता और केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने हिंदू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद का शिगूफा उछाला था। उधर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मुम्बई हमले 26/11 को हिंदू आतंकवाद से जोड़ दिया था। जाकिर नाइक को शांति दूत कहा था और बाटला एनकाउंटर पर सवाल उठाये थे।
दिग्विजय के इस बयान का पाकिस्तान ने खूब इस्तेमाल किया और आज भी जब इस हमले का जिक्र होता है तो पाकिस्तानी सरकार दिग्विजय सिंह के हवाले से यही साबित करती है कि हमले के पीछे आरएसएस का हाथ है। अगर अजमल कसाब को जिन्दा न पकड़ा गया होता तो सैंकड़ों हिन्दू जेलों में बन्द किए गये होते। कांग्रेस के ‘नवरत्न’  दिग्विजय सिंह जाकिर नायक को ‘शान्तिदूत’ बताते रहे जबकि जाकिर नाइक की इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के साथ कांग्रेस पार्टी के अंतरंग संबंध उजागर हो चुके हैं।
हिन्दू संस्कृति का खुलेआम अपमान करने वाले जाकिर नाइक से दिग्विजय सिंह जाकर उसके कार्यक्रम में मिले थे और प्रशंसा की थी। दिग्विजय सिंह ने बाटला मुठभेड़ को फर्जी करार देते हुए अदालत के फैसले पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया था जबकि इस मुठभेड़ में एक पुलिसकर्मी मोहन चंद शर्मा शहीद भी हुए थे। दिग्विजय सिंह ने 2009 में हुए मुम्बई आतंकवादी हमलों में शहीद हुए पुलिस अफसर हेमंत करकरे की हत्या के पीछे हिन्दू संगठनों का हाथ होने की बात कही थी। दिग्विजय सिंह ने भगवा आतंवाद और हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रचारित कराने की पूरी कोशिश की थी।
कांग्रेस के पास विचारों का दिवालियापन है। यही कारण है कि वह भारत में मुसलमानों के एक वर्ग को खुश करने के लिए इज़रायल में हमास के इस्लामी आतंकवाद की निंदा नहीं कर सकती। आतंक पर चुप्पी का मतलब आतंकवाद का साथ देना है।