कृषि संकट दूर करने हेतु फसली विभिन्नता ज़रूरी 

पंजाब भारत के चावल उत्पादन का 10वां भाग, गेहूं का 5वां भाग तथा कपास व नरमा 5 प्रतिशत पैदा करता है। सिंचाई के अधीन रकबा बिजाई के कुल रकबे का 98.9 प्रतिशत है। फसली घनत्व सभी राज्यों से अधिक है। कृषि धान-गेहूं की फसलों तक ही सीमित है। खरीफ में धान तथा रबी में गेहूं की काश्त अधीन प्रत्येक वर्ष रकबा बढ़ रहा है। लम्बे समय से फसली विभिन्नता संबंधी किए गए सभी प्रयास असफल रहे हैं। कृषि योग्य 41.58 लाख हैक्टेयर रकबा है, जो कुल रकबे का 83 प्रतिशत है। कीमियाई खादों का इस्तेमाल 237 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर पर पहुंच गया है। कीटनाशकों की आवश्यकता के अनुसार उपलब्धता व इस्तेमाल है। अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों के धान, बासमती व गेहूं के बीज इस्तेमाल किए जा रहे हैं और अधिकतर किसानों द्वारा वैज्ञानिकों द्वारा बताई जा रही नई तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। 
सितम्बर में बासमती के निर्यातकों तथा किसान प्रतिनिधियों द्वारा की गई मांग के दृष्टिगत तथा संबंधित विभागों के सचिवों के विचार-विमर्श के बाद केन्द्र के उद्योग व खपतकार मामलों के मंत्री पीयूश गोयल ने चावल के निर्यात पर रोक लगा कर बासमती की निर्यात कीमत (जिससे कम कीमत पर बासमती निर्यात नहीं की जा सकती) 1200 डालर प्रति टन से घटा कर 850 डालर प्रति टन किए जाने का फैसला किया था, जिससे बासमती की कीमत बढ़ कर पंजाब की मंडियों में भी 4000 प्रति क्ंिवटल तक हो गई थी, परन्तु अभी तक निर्यात कीमत कम करने का सरकारी तौर पर नोटिफिकेशन न होने के कारण बासमती की कीमत मंडियों में पुन: 3500-3600 रुपये प्रति क्ंिवटल पर आ गई है। इससे किसानों का 10000 रुपये प्रति एकड़ तक का नुकसान हो रहा है। आल-इंडिया राइस एक्सपोर्टेज एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तथा बासमती के प्रसिद्ध निर्यातक विजय सेतिया कहते हैं कि भारत सरकार द्वारा ऐलान करने मे देरी क्यों? 
उधर इज़रायल व हमास के युद्ध के कारण पश्चिम एशिया में जो संकट पैदा हो गया है, उससे भी भारत से बासमती का निर्यात प्रभावित हुआ है। भारत सरकार को निर्यात करने के लिए बासमती की कीमत कम करके 850 डालर करने का सरकारी नोटिफिकेशन तुरंत जारी कर देना चाहिए ताकि किसानों का भविष्य में और नुकसान न हो और पाकिस्तान इसका लाभ उठा कर बासमती की विश्व मंडी में भारत का स्थान लेने में सफल न हो जाए। फसली विभिन्नता सफलता दिलाने में बासमती की विशेष भूमिका है। जो नई किस्में पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती-1885 तथा पूसा-1886 आदि जारी हुई हैं, वे किसान-पक्षीय हैं और उनको झुलस तथा भुरड़ रोग न आने के कारण उनका उत्पादन भी अधिक है और किसानों के लिए अधिक लाभदायक सिद्ध हो रही हैं। पंजाब सरकार द्वारा अपनी खरीफ फसल के लिए योजनाबंदी में बासमती की काश्त को विशेष स्थान देने का ज़रूरत है। बासमती किस्मों के प्रसिद्ध ब्रीडर तथा आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के डायरैक्टर एवं उपकुलपति डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि भारत 46 लाख टन के करीब 30000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा के बासमती चावल विदेशों को भेज रहा है, इसे और बढ़ाया जा सकता है। पंजाब तथा हरियाणा का निर्यात में प्रभावशाली योगदान है। बासमती की घरेलू राज्यों में भी हर वर्ष मांग बढ़ रही है। पंजाब सरकार द्वारा दूसरी फसलों के जो लक्ष्य रखे गए हैं, उन पर भी दृष्टिपात करने की आवश्यकता है। वैकल्पिक फसलों की काश्त के लिए किसानों को इन फसलों संबंधी प्रशिक्षण, ज्ञान तथा मंडीकरण की सुविधाएं उपलब्ध की जाएं। फलों की काश्त अधीन भी रकबा बढ़ सकता है, क्योंकि पंजाब का वातावरण तथा ज़मीन किन्नू, आम, अमरूद, नाख आदि फलों की काश्त करने के अनुकूल है। सब्ज़ियों की काश्त अधीन भी रकबा बढ़ाया जा सकता है। आलू का बीज पंजाब में पैदा करके दूसरे राज्यों को भेजा जाता है। सब्ज़ियों की काश्त अधीन जो रकबा है, उसमें से लगभग आधे रकबे पर आलू की ही काश्त की जाती है। 
सरकार को कपास, नरमे की काश्त के लिए रकबा बढ़ाने पर भी ज़ोर देना चाहिए। पिछले कई वर्षों से कपास, नरमे की काश्त अधीन रकबा लगातार कम होता गया है। किसी समय पंजाब की यह फसल सफेद सोना मानी जाती थी और कपास पट्टी के किसान बड़े खुशहाल माने जाते थे।
धान, गेहूं के अतिरिक्त दूसरी अन्य फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य न होने के कारण किसानों को उन फसलों के मंडीकरण में बहुत मुश्किल आती है और कई बार ज़बरदस्त मंदी का सामना करना पड़ता है। जिन फसलों की कम से कम सरकारी खरीद घोषित भी की जाती है, उनकी भी सरकारी खरीद न होने के कारण समर्थन मूल्य पर नहीं बिकतीं। किसानों में मायूसी तथा संकट को दूर करने के लिए फसली विभिन्नता का सफल होना बहुत ज़रूरी है।