गगनयान के ज़रिये नया कीर्तिमान स्थापित करने चला इसरो

चंद्रयान-3 मिशन की ऐतिहासिक सफलता के बाद भारत का आदित्य-एल1 मिशन भी सूर्य की ओर तेज़ी से अपने निर्धारित लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ रहा है और अब इसरो ने अंतरिक्ष की दुनिया में सफलता का एक और कीर्तिमान स्थापित करने की दिशा में भी बड़ा कदम आगे बड़ा दिया है। चंद्रयान-3 और आदित्य एल1 के बाद अब पूरी दुनिया की नज़रें इसरो के महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन पर टिकी हैं। दरअसल धरती के रहस्यों की खोज के लिए इसरो द्वारा 21 अक्तूबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से बहुप्रतीक्षित ‘गगनयान’ मिशन की पहली टेस्ट फ्लाइट (परीक्षण वाहन विकास उड़ान) सुबह 10 बजे लॉन्च की गई थी और इसके बाद इसरो द्वारा तीन टेस्ट फ्लाइट और भेजी जाएंगी। भारत का गगनयान मानव मिशन 2025 में लांच किए जाने की संभावना है। इसरो की योजना पृथ्वी की सबसे करीबी कक्षा (लोअर ऑर्बिट) में मानव यान भेजने की है। ‘गगनयान मिशन’ इसरो के तीन अंतरिक्ष मिशन का एक ग्रुप है, जिसमें दो अभियान मानव रहित हैं जबकि तीसरे में मानव को भी अंतरिक्ष में भेजा जाना है और बताया जा रहा है कि इस मिशन में तीन अंतरिक्ष यात्री भेजे जाएंगे, जिनमें से दो पुरुष और एक महिला होगी। गगनयान 3.7 टन का एक कैप्सूल है, जो 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करेगा। भारत के इस महत्वाकांक्षी मिशन के लिए सरकार द्वारा 90.23 अरब रुपये का बजट आवंटित किया गया है।
वैसे तो चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद से ही दुनिया के अधिकांश देश इसरो के वैज्ञानिकों की दक्षता का लोहा मान रहे हैं तथा अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा तक इसरो से चंद्रयान-3 की तकनीक प्राप्त करने में रूचि दिखा चुकी है और यदि इसरो का गननयान मिशन भी पूरी तरह सफल रहा तो यह भी भारत की बहुत बड़ी ऐतिहासिक अंतरिक्ष उपलब्धि ही होगी। यदि भारत का गगनयान मिशन सफल रहा तो रूस, अमरीका और चीन के बाद ऐसा करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। सबसे पहले रूस को अपने ऐसे मिशन में सफलता मिली थी और तब 12 अप्रैल, 1961 को सोवियत रूस के यूरी गागरिन कुल 108 मिनट तक अंतरिक्ष में रहे थे। उसके चंद दिनों बाद ही 5 मई, 1961 को अमरीका के एलन शेफर्ड 15 मिनट तक अंतरिक्ष में रहे और चीन के यांग लिवेड 15 अक्तूबर 2003 को 21 घंटे तक अंतरिक्ष में रहे थे। जहां तक भारत के गगनयान मिशन की बात है तो इस मिशन में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को तीन दिनों के मिशन के लिए 400 किलोमीटर की कक्षा में प्रक्षेपित करने के बाद उन्हें पृथ्वी पर सुरक्षित रूप से वापस लाकर मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता के प्रदर्शन की परिकल्पना की गई है।
भारत के गगनयान मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2018 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर की गई थी और तब इस मिशन को 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन कोविड महामारी के प्रकोप का असर न केवल इस मिशन पर बल्कि इसरो के अन्य सभी मिशनों पर पड़ा, जिससे इन लक्ष्यों को हासिल करने में काफी विलम्ब हुआ है। इसरो द्वारा अब उम्मीद जताई जा रही है कि गगनयान मिशन 2024 के आखिर में या 2025 की शुरुआत तक पूरा होने की संभावना है। 
हालांकि अभी इसरो ने गगनयान मिशन के तहत 2024 की शुरुआत में पहले मानवरहित मिशन की योजना तैयार की है और उसके पूरी तरह सफल होने के बाद ही गगनयान का मानव मिशन होगा, जिसमें इंसान स्पेस में जाएंगे। भारत के गगनयान मिशन की शुरूआत 21 अक्तूबर को इस मिशन की पहली टेस्ट फ्लाइट भेजे जाने के साथ हो गई है और इसरो के मुताबिक इसके बाद तीन और टेस्ट फ्लाइट भेजी जाएंगी। इसरो के गगनयान मिशन का उद्देश्य मानव रहित अंतरिक्ष यान भेजना और उसे सुरक्षित रूप से वापस लाना, अंतरिक्ष में मानव उड़ान के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का विकास करना, भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को अंतरिक्ष में मानव उड़ान के क्षेत्र में प्रशिक्षित करना तथा पृथ्वी की निचली कक्षा में मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन शुरू करने के लिए स्वदेशी क्षमता का प्रदर्शन करना है।
इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ के अनुसार पहली टेस्ट व्हीकल डवलपमेंट फ्लाइट (टीवी-डी1) के बाद इसरो ने डी2, डी3 और डी4 की योजना बनाई है, जिनका उद्देश्य गगनयान मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। उनके मुताबिक गगनयान मिशन के फाइनल लांच से पहले इसरो द्वारा प्रत्येक महीने कम से कम एक प्रक्षेपण किया जाता रहेगा। उनका कहना है कि 21 अक्तूबर के गगनयान परीक्षण वाहन के प्रक्षेपण के बाद इसरो के पास जी.एस.एल.वी. है, फिर एस.एस.एल.वी. है और उसके बाद गगनयान मानवरहित मिशन होगा लेकिन बीच में एक पी.एस.एल.वी. प्रक्षेपण भी होगा। इसलिए जनवरी से पहले ही कम से कम 4.5 लांच किए जाएंगे। 21 अक्तूबर को टीवी-डी1 की लांचिंग के बाद क्रू मॉड्यूल 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर टीवी-डी1 से अलग हो जाएगा, जहां गगनयान मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को बैठाया जाएगा। 
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र (वी.एस.एस.सी.) के निदेशक डा. एस. उन्नीकृष्णन नायर का कहना है कि मानवयुक्त मिशनों में केवल मिशन की सफलता ही नहीं बल्कि चालक दल की सुरक्षा भी बहुत मायने रखती है। उनके मुताबिक यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि एस्केप सिस्टम की विश्वसनीयता बहुत अधिक हो। एस्केप सिस्टम को ट्रांसोनिक परिस्थितियों में सक्रिय किया जाएगा, जो कि मैक 1.2 है और उनका कहना है कि हमारे वैज्ञानिकों की टीम यह प्रदर्शित करेगी कि चालक दल को कैसे बचाया जाएगा। 
चूंकि गगनयान मिशन में मानव सुरक्षा सर्वोपरि है, इसीलिए इसे सुनिश्चित करने के लिए इंजीनियरिंग प्रणालियों और मानव केन्द्रित प्रणालियों सहित विभिन्न नई प्रौद्योगिकियों को विकसित और कार्यान्वित किया गया है। इस मिशन के लिए भारत के सबसे शक्तिशाली तीन स्टेज वाले रॉकेट एल.वी.एम.3 लांच व्हीकल को रीकॉन्फिगर किया गया है। रॉकेट के इस वर्जन को एच.एल.वी.एम.3 नाम दिया गया है, जो ऑर्बिटल मॉड्यूल को 400 किलोमीटर की पृथ्वी की निचली कक्षा में लांच करने में सक्षम होगा। यह रॉकेट अंतरिक्ष यात्रियों को 16 मिनट में अंतरिक्ष तक पहुंचने में मदद करेगा। गगनयान मिशन का ऑबिटल मॉड्यूल अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर पृथ्वी के चक्कर लगाएगा। इस ऑर्बिटल मॉड्यूल के दो हिस्से हैं सर्विस मॉड्यूल और क्रू मॉड्यूल। सर्विस मॉड्यूल कक्षा में रहते हुए क्रू मॉड्यूल को ज़रूरी सहायता प्रदान करेगा, जिसमें थर्मल सिस्टम, प्रोपल्शन सिस्टम, पावर सिस्टम तथा एवियोनिक्स सिस्टम होगा जबकि क्रू मॉड्यूल में क्रू के लिए पृथ्वी जैसा रहने योग्य वातावरण बनाया गया है।
गगनयान को अंतरिक्ष की निचली कक्षा में भेजा जाना है, जो पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर है। पहले चरण में इसके तहत एक खाली यान भेजा जाएगा, जो कुछ दिनों तक अंतरिक्ष का चक्कर लगाएगा। दूसरे चरण में गगनयान में रोबोट भेजे जाएंगे और दूसरी उड़ान 2024 के शुरुआती महीनों में संभावित है, जो गगनयान की पहली उड़ान की सफलता पर भी निर्भर करेगी। तीसरी उड़ान में तीन अंतरिक्ष यात्री भी सवार होंगे लेकिन तीसरी उड़ान गगनयान की पहली और दूसरी उड़ान की पूर्ण सफलता पर ही निर्भर करेगी। यदि पहली दोनों उड़ानें सफल रहती हैं तो भारत मानव को अंतरिक्ष में भेजने में सफल हो जाएगा। गगनयान के लिए अंतरिक्ष यात्रियों का चयन पहले ही हो चुका है, जिन्हें रूस में प्रशिक्षण दिया जा चुका है। यही नहीं, इसरो न केवल इसके लिए विशेष यान भी तैयार कर चुका है बल्कि अंतरिक्ष यात्रियों को वापस धरती पर उतारने के लिए अलग से कैप्सूल भी बना चुका है। इसरो 8 से 10 अगस्त के बीच चंडीगढ़ में ड्रैग पैराशूट का सफल परीक्षण भी कर चुका है, जो अंतरिक्ष यात्रियों की हिंद महासागर में सुरक्षित लैंडिंग में मदद करेगा। यह ड्रैग पैराशूट क्रू मॉड्यूल की गति को कम करते हुए उसे स्थिर भी रखेगा।
दरअसल गगनयान में ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ एक बेहद महत्वपूर्ण प्रणाली है और चूंकि गगनयान के फाइनल मानव मिशन में क्रू मॉड्यूल अंतरिक्ष यात्रियों को आउटर स्पेस में ले जाएगा, इसीलिए उस मिशन से पहले क्रू एस्केप सिस्टम का प्रदर्शन करते देखने के लिए परीक्षणों की सख्त ज़रूरत है। क्रू एस्केप सिस्टम का अर्थ है कि यदि मिशन के दौरान कोई परेशानी आती है तो रॉकेट में मौजूद अंतरिक्ष यात्री सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर पहुंच सकें। इसरो के मुताबिक यदि रॉकेट को कुछ भी होता है तो विस्फोट में रॉकेट के जलने से पहले कम से कम दो किलोमीटर दूर चालक दल को ले जाकर बचाना है और इसीलिए यह परीक्षण क्रू मेंबर्स के एस्केप की प्रणाली को प्रदर्शित करने के लिए है, जिसे ट्रांसोनिक स्थिति कहा जाता है। इसरो की योजना गगनयान मिशन के जरिये भारत के तीन अंतरिक्ष यात्रियों को 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर अंतरिक्ष में भेजने की है, जो इसरो के तीन दिन के अभियान के बाद समुद्र में लैंडिंग के जरिये वापसी करेंगे। इसरो के इस महत्वाकांक्षी मिशन का लक्ष्य तीन सदस्यों के दल को तीन दिन के मिशन के लिए पृथ्वी के चारों ओर करीब 400 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में ले जाना और फिर उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है और ऐसा करके भारत पूरी दुनिया के समक्ष अपनी मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता का प्रदर्शन करेगा।
 

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