गोल्ड की गेंद में छेद क्यों होते हैं?

‘दीदी, पिछले संडे को मैं पापा के साथ गोल्फ कोर्स गया था। वहां मैंने एक बहुत ही अजीब चीज़ नोटिस की।’
‘ऐसा क्या देख लिया?’
‘जिस गेंद से गोल्फ खेलते हैं वह टेबल टेनिस की गेंद की तरह नहीं होती बल्कि उसमें छेद होते हैं।’
‘अरे वह छेद नहीं होते हैं बल्कि गड्ढे होते हैं, जिन्हें डिंपल्स कहते हैं।’
‘वैसे गालों में जो डिंपल्स पड़ते हैं उन्हें भी तो आम भाषा में गालों में गड्ढे पड़ना ही कहते हैं।’
‘गालों के डिंपल्स को छेद तो नहीं कहते।’
‘हां, यह बात तो आपकी सही है।’
‘देखो, हर खेल की तरह गोल्फ के भी अपने कुछ खास नियम हैं। यह नियम उसकी गेंदों पर भी लागू होते हैं।’
‘अच्छा।’
‘गोल्फ की गेंद बेसबॉल या टेनिस की गेंद की तुलना में साइज़ में लगभग आधी होती है। लेकिन वह किसी भी साइज़ की नहीं हो सकती। इंग्लैंड में गोल्फ बॉल 45.9 ग्राम की होती है और उसका डायामीटर 4.11 सेंटीमीटर का होना चाहिए। लेकिन अमरीका में गोल्फ बॉल इससे थोड़ी सी बड़ी होती है।’
‘ऐसा क्यों?’
‘अपनी अपनी परम्परा है, जैसे एशेज में इस बार डियूक ब्रांड की गेंदें इस्तेमाल की गईं, जबकि भारत में जो टेस्ट क्रिकेट खेली जाती है उसमें एसजी की गेंदें प्रयोग की जाती हैं।’
‘गोल्फ बॉल किस चीज़ की बनी होती है?’
‘गोल्फ के शुरुआती इतिहास में गेंदें भारी चमड़े की बनी होती थीं, जिनके अंदर पंख भर दिए जाते थे। आज एक कोर के ऊपर स्ट्रिप रबर को टाइट लपेट दिया जाता है और फिर उसे सख्त, रबर जैसे कम्पोजीशन मटेरियल से कवर कर दिया जाता है।’
‘लेकिन आपने अभी तक यह नहीं बताया कि गोल्फ बॉल में छेद, सॉरी, डिंपल्स क्यों होते हैं?’
‘चूंकि इस खेल का एक उद्देश्य गेंद को लम्बी दूरी तक हिट करना होता है और वह भी सही से तो इसलिए उस पर छोटे-छोटे डिंपल्स होते हैं। इनकी वजह से गेंद को जब सही से हिट किया जाता है तो वह सीधी उड़ती है, हवा का प्रतिरोध भी कम हो जाता है और गेंद की पॉवर भी बढ़ जाती है। अच्छे खिलाड़ी इस गेंद को 275मी से भी दूर हिट कर सकते हैं, लेकिन 180 से 230 मी की ड्राइव भी अच्छी मानी जाती है।’

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर