स्वजाति भक्षी बैंगनी समुद्री घोंघा

बैंगनी समुद्री घोंघा यानी पर्पल सी स्नैल, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर के उष्णकटिबंधीय भागों में पाया जाता है। इसका घोंसला हवा के बुलबुलों के एक गुच्छे के रूप में होता है, जिसे यह अपने शरीर के अगले भाग और पैर की सहायता से तैयार करता है। यह घोंघा अपने आकार से तीन गुना बड़े आकार का घोंसला तैयार करता है। घोंसला बनाने के बाद यह इसे अपने शरीर से चिपका लेता है और जीवनभर इसी के सहारे उल्टा तैरता रहता है। बैंगनी समुद्री घोंघे की शरीर की अधिकतम लम्बाई 7 सेंटीमीटर होती है। यह पारदर्शक नहीं होता। इसकी आंखें नहीं होती, मुंह के पास काले रंग की एक संस्पर्शिका होता है। इसी के सहारे यह अपने शिकार की खोज करता है। यह उन्हीं जीवों का शिकार करता है, जो इससे कमजोर होते हैं। यह अपनी ही जाति के छोटे-छोटे समुद्री घोंघों को भी खाता है। 
समुद्री घोंघे में आंतरिक निषेचन होता है और यह निषेचित अंडे अपने द्वारा छोड़ी गई वेलेल्ला की प्लेट के नीचे की सतह पर देता है। अधिकांश जातियों के बैंगनी समुद्री घोंघों के अंडे कैप्सूलों के भीतर बंद रहते हैं और कैप्सूल एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और एक लड़ी के रूप में दिखाई देते हैं। प्रजननकाल में एक बैंगनी समुद्री घोंघा 200 से लेकर 600 तक कैप्सूल निकालता है। बैंगनी समुद्री घोंघो की संख्या इसकी जाति और आकार पर निर्भर करती है यानी कुछ जातियों के बैंगनी समुद्री घोंघे अधिक अंडे देते हैं और कुछ जातियों के कम। इस प्रकार समुद्री घोंघा जितना बड़ा होता है, उतने अधिक कैप्सूल निकालता है। इसके प्रत्येक कैप्सूल में 17 से 5 हजार तक अंडे होते हैं यानी ये 30 लाख तक अंडे निकालता है। बैंगनी समुद्री घोंघो के अंडों की संख्या भी इसकी जाति एवं आकार पर निर्भर करती है। कुछ जातियों के बैंगनी समुद्री घोंघे अपने बुलबुले वाले घोंसले के नीचे की सतह पर अंडे देते हैं और कुछ समय बाद अंडे फूटते हैं और इनसे लारवे निकल आते हैं। कुछ समय तक सागर में ये स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं और फिर बच्चा बैंगनी समुद्री घोंघे में परिवर्तित हो जाता है। 
 बैंगनी समुद्री घोंघे की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसके बच्चे जन्म के समय नर होते हैं और काफी समय तक नर रहने के बाद स्वत: मादा में बदल जाते हैं और फिर जीवन के अंत तक मादा ही बने रहते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर