शिरोमणि कमेटी को समुचित महत्त्व दें राज्यपाल

न मुझ में कहने की ताकत
कहूं तो क्या अहवाल,
न उस को सुनने की फुर्सत,
कहूं तो किससे कहूं।
भारत के अंतिम म़ुगल बादशाह बहादुर शाह ज़़फर जो बड़े शायर भी थे, का यह शे’अर मुझे उस समय याद आया  जब शिरोमणि कमेटी के तीसरी बार प्रधान बने एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी ने बड़े लाचार होकर कहा कि हम बंदी सिंहों की रिहाई के लिए 20-25 लाख हस्ताक्षर वाले पत्रों के दो ट्रक सरकार को पेश करना चाहते हैं, परन्तु राज्यपाल पंजाब समय ही नहीं दे रहे। मुझे उनकी लाचारी भी बहादुर शाह ज़़फर की बादशाह की हैसीयत वाली लाचारी जैसी ही लगी, क्योंकि उस समय म़ुगल बादशाह का शासन भी पूरे हिन्दोस्तान से सिमट कर दिल्ली की गलियों तक ही रह गया था तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी जो चाहे कानूनी रूप से सांझे पंजाब की संस्था थी, परन्तु क्रियात्मक तौर पर विश्व भर के सिखों के दिलों पर राज करती थी, का दायरा भी सिमटता जा रहा है। वैसे भी अब शिरोमणि कमेटी अपने नाम की भांति सिर्फ गुरुद्वारों तथा कुछ शैक्षणिक संस्थानों की ‘प्रबन्धन’ संस्था ही रह गई है। इसका महत्त्व वैसा नहीं रहा जब आज़ादी से पहले शिरोमणि कमेटी के ़फैसले पर इंग्लैंड के शाही तख्त तक को ध्यान केन्द्रित करना पड़ता था। आज़ादी के बाद भी शिरोमणि कमेटी के प्रधान को देश के प्रधानमंत्री से समय लेने के लिए बार-बार नहीं कहना पड़ता था। अब तो कई बाहरी देशों की सिख संस्थाएं उन देशों की सरकारों तथा शिरोमणि कमेटी से अधिक प्रभावशाली हैं।
शिरोमणि कमेटी 16 नवम्बर, 1920 को अस्तित्व में आई, चाहे कानूनी अधिसूचना एक नवम्बर, 1925 को जारी हुई परन्तु अकाली दल शिरोमणि कमेटी के बाद 14 दिसम्बर, 1920 को अस्तित्व में आया था। चाहे यह स्पष्ट है कि शिरोमणि कमेटी बनाने के लिए अकाली दल ने नहीं, अपितु समूह सिख संगतों ने कुर्बानियां दीं तथा शिरोमणि कमेटी की स्थापना के बाद सिख राजनीतिक दल के रूप में अकाली दल की स्थापना की गई। शिरोमणि अकाली दल की राजनीतिक विवशताएं हो सकती हैं, परन्तु शिरोमणि कमेटी तो निरोल रूप में सिख धर्म की चढ़दी कला के लिए काम करने वाली संस्था है। नि:संदेह इस दौरान सिख धर्म का प्राथमिक सरबत के भले वाला सिद्धांत किसी भी हालत में दृष्टिविगत नहीं होना चाहिए।
यह बहुत अच्छी बात है कि शिरोमणि कमेटी के अधिवेशन में चुनाव के बाद नये चुने गये प्रधान एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी ने बंदी सिंहों की रिहाई, शिरोमणि कमेटी के वोट बनाने की प्रक्रिया सुखद करने तथा समय बढ़ाने, पंजाबी भाषा से भेदभाव दूर करने तथा पंजाबी की हरियाणा, हिमाचल तथा चंडीगढ़ की स्थिति, कनाडा तथा भारत के रिश्तों को सुधारने की अपील, पंजाब के पानी की रक्षा हेतु वचनबद्धता, पाकिस्तान में सिख विरासतों तथा गुरुद्वारों की सम्भाल, सोशल मीडिया तथा सिख कौम के विरुद्ध बनाये जा रहे माहौल के विरुद्ध, विदेशों में सिखों पर घृणित हमले रोकने तथा सिख बच्चों की प्रशासनिक सेवाओं में भागीदारी बढ़ाने हेतु विशेष फंड स्थापित करने जैसे महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किये गये हैं, परन्तु अफसोस है कि इन प्रस्तावों संबंधी ज्यादातर शिरोमणि कमेटी सदस्यों में गम्भीरता बिल्कुल दिखाई नहीं दी। चाहिए तो यह था, कि इन प्रस्तावों संबंधी गम्भीर तथा लम्बा विचार-विमर्श किया जाता कि इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए शिरोमणि कमेटी क्या करे? कैसे करे? परन्तु हुआ यह कि चुनाव के उपरांत बहुत-से सदस्य तो उठ खड़े हुये। जब प्रधान धामी प्रस्ताव पढ़ रहे थे तो उन्हें शेष उपस्थित सदस्यों में भी कुछेक को बार-बार कहना पड़ा कि बैठ जाओ, प्रस्ताव ज़रूरी हैं, इनकी ओर ध्यान दें, परन्तु बिना बहस, बिना विचार किये प्रस्ताव सर्वसम्मति के साथ पास तो कर दिए गये पर यह बात भी खुल कर सामने आ गई कि कौम के ‘रहनुमा’ ये शिरोमणि कमेटी सदस्य कौम की मांगों के प्रति कितने सुहृदयी हैं?
किस अन्ने चौराहे ते आ के, 
राह भुल्ली है कौम मेरी
इक भी रस्ता मंज़िल दे वल
करदा कोई इशारा नहीं।
(लाल फिरोज़पुरी)
राज्यपाल का रवैया और शिरोमणि कमेटी
पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित का शिरोमणि कमेटी को बंदी सिखों की रिहाई के लिए लाखों संगतों के हस्ताक्षर वाला मैमोरंडम लेने के लिए समय न देना किसी प्रकार भी ठीक बात नहीं। राज्यपाल साहिब राजनीतिक दलों के नेताओं, जिनमें प्रताप सिंह बाजवा, सुखबीर सिंह बादल, नवजोत सिंह सिद्धू, सुनील जाखड़ और अन्य भी कई शामिल हैं, को अकेले-अकेले मिलने के लिए तो समय दे रहे हैं, फिर उनके पास शिरोमणि कमेटी जो अभी भी सिखों की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था है, जिसका महत्व किसी भी अकेले नेता से कहीं अधिक है, को मिलने के लिए समय क्यों नहीं है?
चाहे यह सच न भी हो पर ऐसा व्यवहार सिखों में ऐसे प्रभाव ज़रूर बनाता है कि क्या कहीं केन्द्र सरकार का कोई गुप्त इशारा तो नहीं कि राज्यपाल साहिब बंदी सिखों की रिहाई वाला मैमोरंडम लेने के लिए समय न दें? गौरतलब है कि यह मैमोरंडम किसी एक नेता का नहीं बल्कि लाखों सिखों का हस्ताक्षर किया हुआ मैमोरंडम है। वैसे तो एक तरफ केन्द्र सरकार और भाजपा सिख अल्पसंख्यकों साथ लेकर चलने की बातें करती हैं। कई पुस्तिकाएं प्रकाशित की जा रही हैं कि भाजपा की केन्द्र सरकार ने सिखों के लिए यह किया है, वह किया है? लेकिन बंदी सिखों की रिहाई के लिए मैमोरंडम लेने के लिए राज्यपाल का समय न देना उलट प्रभाव ही पैदा करता है।
हमें इस बात पर भी अफसोस है कि शिरोमणि कमेटी इजलास में शिरोमणि कमेटी प्रधान ने राज्यपाल द्वारा समय न देने पर लाचारी तो दिखाई, लेकिन उन्होंने ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए, इस बारे में न विचार-विमर्श किया और न ही कोई अगला प्रोग्राम दिया तथा न इस बारे में विचार करने के लिए कोई बैठक करने की तिथि ही निश्चित की। चाहिए तो यह कि कौम के मामलों के लिए कोई शांतिपूर्वक संघर्ष का रास्ता तैयार किया जाए। जिसका नेतृत्व कोई अकाली दल नहीं, बल्कि शिरोमणि कमेटी या 5 जत्थेदार साहिबान सामूहिक रूप में करें ताकि पंडित लब्भू राम जोश मलसियानी के ल़फ्ज़ों में यह पता चल सके कि : 
ज़माने को हिला देने के दावे बांधने वालो,
ज़माने को हिला देने की ताकत हम भी रखते हैं।
अकाली दल बादल का उत्थान
चाहे यह स्पष्ट ही था कि शिरोमणि अकाली दल बादल ही शिरोमणि कमेटी प्रधान के चुनाव में जीतेगा, लेकिन प्रकाश सिंह बादल के देहांत के बाद सुखबीर सिंह बादल इस पहली बड़ी चुनौती में सफल साबित हुए हैं। पिछली बार बीबी जगीर कौर की ब़गावत से बने माहौल और भाजपा के बीच एक बड़े सिख गुट की हिमायत के स्पष्ट संकेतों के चलते बीबी जगीर कौर शिरोमणि कमेटी के प्रधान के चुनाव में 42 वोट ले गई थी। जो उससे पिछले वर्ष बादल दल विरोधी उम्मीदवार द्वारा लिये 19 वोटों से दोगुणा से भी अधिक थे। इस चुनाव में बादल दल के उम्मीदवार हरजिन्दर सिंह धामी को 104 वोट तथा बीबी जगीर कौर को 28.26 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि इस बार हुए मतदान में धामी ने 118 और विरोधी उम्मीदवार संत बलवीर सिंह घुन्नस को केवल 17 वोट ही प्राप्त हुए। अभिप्राय यह है कि इस बार फिर अकाली दल को कुल पड़े वोटों का करीब 86.76 प्रतिशत मिले और संत बलवीर सिंह घुन्नस को सिर्फ 12.5 प्रतिशत वोट ही पड़े। स्पष्ट है कि सुखबीर सिंह बादल साल भर में शिरोमणि कमेटी के सदस्यों में अपना प्रभाव फिर बढ़ाने में सफल रहे हैं, जबकि इस बार उन्होंने पिछली बार की अपेक्षा इस बार मेहनत भी काफी कम की है।
-1044, गुरु नानक सट्रीट, समराला रोड़, खन्ना
मो-92168-60000