आज भी लोगों की पहली पसंद हैं मिट्टी के दीये 

चले ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में हमारे चारों तरफ  घर को सजाने के लिए एक से बढ़कर एक इंद्रधनुषी इलेक्ट्रिक लड़ियों की भरमार हो,लेकिन दिवाली के मौके पर जो खुशी और आध्यात्मिक आनंद मिट्टी के दीये जलाकर मिलता है, वह आनंद भला इलेक्ट्रिक लड़ियों में कहां है। आजकल बाजार में मिट्टी के दीयों की भी दर्जनों किस्में मौजूद हैं।  दिवाली पर आज भी ज्यादातर लोग मिट्टी के दीये ही जलाना पसंद करते हैं। यही वजह है कि नवरात्र से ही दीयों के ऑर्डर शुरू हो जाते हैं। सवाल है आखिर लोग मिट्टी के दीयों को लेकर इतने आकर्षित क्यों होते हैं ? क्या इसकी वजह सिर्फ  परंपरा है या  फि र इसके कुछ वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। निश्चित रूप से मिट्टी के दीयों की पहली पसंद होने का कारण इनकी वैज्ञानिकता भी है और मनोवैज्ञानिकता भी। मिट्टी के दीये दिवाली के मौके पर हमें रोशनी के पर्व का खुशियों से भरा आध्यात्मिक आनंद तो देते ही हैं, साथ ही यह एक किस्म से प्राकृतिक सफ ाई और स्वच्छता का वातावरण भी बनाते हैं।
 दरअसल दिवाली मानसून के बाद आती है, इसलिए वातावरण में बीमारियां फैलाने वाले बहुत से कीट पतंगों की मौजूदगी होती है। जब हम मिट्टी के दीयों में तेल भरकर जलाते हैं तो दीये की रोशनी से आकर्षित होकर ये तमाम कीट पतंगे खत्म हो जाते हैं, इसलिए कई तरह की बीमारियों की आशंका कम हो जाती है। एक बात यह भी है कि मिट्टी के छोटे छोटे दीयों को जलाकर हम उन्हें अपने मनचाहे आकार और डिजाइन में रख सकते हैं। इससे दिवाली पर जगमगाने वाली रोशनी कहीं ज्यादा सौंदर्यपूर्ण हो जाती है।  हालांकि अब काम के मुताबिक जातियों की मौजूदगी खत्म हो रही है, लेकिन आज भी बड़े पैमाने पर मिट्टी के बर्तन बनाने का काम कुम्हार जाति के लोग ही करते हैं, जो सदियों से करते आये हैं। जब हम दिवाली के मौके पर उनके दीये खरीदते हैं तो उन्हें रोजगार मिलता है और इस तरह इस पारंपरिक कला के माहिर लोगों को अपनी कला की बदौलत रोजी रोटी की सुरक्षा मिलती है। लेकिन मिट्टी के दीयों का सबसे बड़ा फायदा पर्यावरणीय है।  इस तरह देखें तो मिट्टी के दीये जलाकर हमें सिर्फ  मानसिक सुकून और आंखों को पारंपरिक सौंदर्य का सुख ही नहीं मिलता बल्कि कई दूसरे फायदे भी होते हैं। इसलिए बेहतर है आप भी इस दीपावली में रोशनी बिखेरने के लिए दीयों को ही मुख्य माध्यम बनाएं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर