भूल सुधार


सड़क संकरी थी फिर भी बस तेज़ी से दौड़ी जा रही थी क्योंकि ड्राइवर अत्यंत कुशल था। अचानक बस की गति धीमी हो गई। सामने से गन्नों से लदी हुई ट्रॉलियां आ रही थीं अत: उनको रास्ता देने के लिए ही बस की गति कम करना अनिवार्य था। जब बस गन्नों से लदी हुई ट्रालियों के पास पहुँची तो वे सड़क से थोड़ा नीचे उतरकर सड़क के किनारे लगकर खड़ी हो गईं। यह एक पर्यटक बस थी जिसमें शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी और अध्यापक सवार थे जो भारत-भ्रमण पर निकले थे। गन्नों को देखकर कई लोगों के मुंह में पानी आ गया लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि किसी ट्रॉली में से एक गन्ना भी खींच ले क्योंकि विभाग के सबसे बड़े अधिकारी भी बस में उपस्थित थे। चाहे कितने भी कामचोर अथवा भ्रष्ट कर्मचारी क्यों न हों लेकिन अपने विभाग के बड़े अधिकारियों की उपस्थिति में तो वे अधिकाधिक अनुशासनप्रिय, कर्मठ और ईमानदार होने का प्रमाण ही प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। कुछ ऐसी ही विवशता यहां भी दिखलाई पड़ रही थी।
बस की गति भी अत्यंत धीमी हो गई थी और बस सड़क के किनारे खड़ी गन्नों से लदी एक ट्रॉली को पार कर रही थी। इतने में शिक्षा अधिकारी महोदय ने बाहर हाथ निकाला और झटपट एक गन्ना खींच लिया। बस फिर क्या था। सारी वर्जनाएं टूट गईं। केवल बस की दाईं और बैठे यात्रियों ने ही नहीं अपितु विपरीत दिशा में बैठे यात्रियों ने भी दूसरी तरफ आ-आकर गन्ने खींचने शुरू कर दिए। इतने में एक नवयुवक ने खड़े होकर कहा, ‘अरे आप सब लोग ये क्या कर रहे हो? एक किसान जो इतनी मेहनत से फसल उगाता है उसे यूँ ही मुफ्त में झपट रहे हो।’ इतना कहकर नवयुवक ने शिक्षा अधिकारी की ओर मुंह किया और कहा, ‘सर आप भी!’ सहयात्री नवयुवक को आग्नेय नेत्रों से घूरने लगे और एक व्यक्ति ने कहा, ‘मिस्टर अपनी औ़कात में रहो। शिक्षा अधिकारी से इस तरह बात करने की र्जुअत कैसे की तुमने?’ इसके बाद शिक्षा अधिकारी की बारी थी। वे खड़े हो गये और बोले, ‘ठीक ही तो कह रहा है ये नवुयवक। हम सबने ़गलत कार्य किया है। मैंने भी।’
इसके बाद उन्होंने कहा, ‘हमें क्या अधिकार है किसी की चीज़ यूँ उठाने का। और चोरी के बाद अब सीनाचोरी। पहले मैंने ़गलत कार्य किया और बाद में आप सबने उसे दोहराया। मुझे फर्ख है कि पूरी बस में एक व्यक्ति तो है जिसमें ईमानदारी व नैतिकता के साथ-साथ निडरतापूर्वक अपनी बात कहने का साहस भी है जिसने अपने उच्च अधिकारी की भी ़खबर लेने की हिम्मत की। मैं अपनी ़गलती स्वीकार करता हूँ और अपने नवयुवक मित्र की ईमानदारी, नैतिकता और साहस की प्रशंसा करता हूँ।’ वास्तव में ़गलती तो किसी से भी हो सकती है लेकिन केवल महान व्यक्ति ही अपनी ़गलती का अहसास होने पर या कराए जाने पर उसे स्वीकार करने में देर नहीं लगाते। भूल अथवा ़गलतियां होना स्वाभाविक हैं। ़गलतियों को स्वीकार किए बिना उनका सुधार करना अथवा होना भी असंभव है। हम अपनी ़गलतियों से ही सबसे ज्यादा सीखते हैं अत: जो व्यक्ति भी अपनी ़गलतियों को स्वीकार कर सुधार लेते हैं वे न केवल महान बन पाते हैं अपितु सही अर्थों में वे ही महान् होते हैं।
 

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