अलकनन्दा नदी के किनारे सुशोभित सुन्दर शहर चमोली

गगनचुम्बी पर्वतों की गोद में तथा अलकनन्दा नदी के किनारे बसा सुन्दर शहर है चमोली। चमोली ज़िला भी है इसलिए यहां सभी सरकारी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। यहां से विरही गंगा पीपलकोटी, गरूड़ गंगा, टंगनी, हेलंग इत्यादि प्रमुख स्थानों से होकर आप जोशीमठ के रास्ते बद्रीनाथ, हेमकुंट साहिब आदि धामो एवं धर्मिक स्थानों तक पहुंच सकते हैं। चामोला नाथ स्थानीय धर्मिक व्यक्ति हुए हैं, उनके नाम पर चामोला नाथ मन्दिर भी हुआ करता था। चामोला नाथ के नाम से ही चामोली शहर का नाम प्रसिद्ध हुआ।
चमोली हरिद्वार से लगभग 180 किलोमीटर है। दिल्ली से हरिद्वार 201 किलोमीटर है। आप दिल्ली से चंडीगढ़ से तथा सभी प्रसिद्ध शहरों से चमोली जा सकते हैं। चमोली 1069 मीटर की ऊंचाई पर बसा हुआ शहर है। इस का क्षेत्रफल 9128 वर्ग कि.मी. है। इसकी जनसंख्या 3,06,000 के करीब है। चमोली से केदारनाथ 134 कि.मी. है। चमोली से बद्रीनाथ 96 कि.मी. मार्ग शेष रह जाता है। रूद्रप्रयाग से जो मोटर मार्ग सीध बद्रीनाथ को जाता है वह भी यहां आकर मिलता है।भक्तजन ही अपने श्रद्धा भरे नेत्रों से ऐसे स्थान देख सकते हैं। जिन के नेत्रों में श्रद्धा नहीं उनके लिए यह स्थान बिल्कुल निरर्थक हैं।
चमोली शहर दो नदियों के संगम के किनारे बसा हुआ प्राचीन भव्य शहर है। यहां बहुत बड़ा लोहे का पुल है। इस पुल को पार करके ही अन्य धामों को जाया जाता है। यहा नदियों का संगम होता है। उस नुक्कड़ में यहां नदियां मिल कर अंग्रेजी की ‘बी’ का आकार लेती हैं, बिल्कुल ‘बी’ की नोक पर नदी के साथ एक शिव मन्दिर है जो एक छोटी-सी पहाड़ी पर शोभनीय है। यह मन्दिर इन नदियों को आपस में मिलाता है। नदियों का पानी मन्दिर के चरण स्पर्श करता हुआ आगे बहता चला जाता है जैसे कोई बच्चा बड़ों-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर आगे निकल जाता है। इस संगम के छोर पर कई होटल बने हुए हैं। होटलों के दरवाज़े नदी के छोर की ओर खुलते हैं जो मनोहर अनुपम दृश्य देखने को बनता है। चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़, चारों ओर हरियाली का पहरावा, नदियों की कलकल करती मन्त्रमुग्ध् मर्मस्पर्शी आवाज़ एक दिव्य दृश्य पैदा करती है। मन-तन रूह को एक सुकून मिलता है। चमोली क्योंकि सैंटर में पड़ता है इसलिए सभी ट्रक, बसें, टैक्सियां आदि यहां रूक कर ही आगे को बढ़ते हैं।
चमोली के इर्द-गिर्द अनेकानेक प्रपात, निर्झर, गहरी खडड्ें, भंयकर दृश्य देखने को मिलते हैं। इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं। अंधे मोड़ बहुत हैं। नएं तथा तज़ुर्बाहीन, अपरपक्क ड्राईवरों को ईधर नहीं आना चाहिए। सारा उत्तराखंड नदी के छोर पर ही बसा हुआ है। दूर से रास्ते एैसे प्रतीत होते हैं जैसे पहाड़ों पर सांप दौड़ रहें हों। 
यह क्षेत्र धार्मिक स्थानों-धामों से माला-माल है। ऋषियों-मुनियों, गुरूओं-अवतारों की यहां आपार कृपा है। रात के समय नदियों का भजन गायन-शब्द गायन जब अम्बर छूता है, तो दूर-दूर तक रौशनियों की मालाएं तथा तारा मण्डल अपनी सुषमा के साथ धरती को जन्नत का स्वरूप देते हैं। मन्दिरों की घंटियों की आध्यात्मिक शान्ति-पूर्वक ध्वनियां सुबह को आनंद-विमोर करती चली जाती हैं। सौंदर्य, शान्ति, अद्भुदता, एकाग्रता की दीप्ति उदय हो जाती है और मानव अण्ड, ब्राहमांड और सच खंड तक का सफर तय कर लेता है मगर इन्द्रियों के लिए अत्यक्त परोक्ष विषय श्रद्धाहीन नास्तिकों की बुद्धि में नहीं आया करते। जो महामति लोग किसी में श्रद्धा किए बिन केवल अपनी इन्द्रियों को मुख्य मानते हैं उनके लिए तो न कोई तीर्थ है और न तीर्थयात्रा न कोई पुण्य है और न पाप, न परलोक है और न परमेश्वर ही। विवेकशील, संवेदनशील, आध्यात्मिक पुरूष ही तपोभूमि की महिमा को समझ पाता है।
पुरातन काल से ही उत्तराखंड एक एकांत निर्जन स्थान है। उत्तर पश्चिम में ऋषिकेश से यमुनोत्री तक और उत्तर पूर्व में मानसरोवर कैलाश तक उत्तराखंड की तपोभूमि कही जाती है। सभी पुण्य स्थान, मन्दिर, नदियां, सरोवर और पवित्रा पहाड़ियां इसी क्षेत्र में आ जाती हैं।
जनपद चमोली के आस-पास अनेकानेक स्थान देखने योग्य है खास करके देवरियाताल, रूप कुण्ड, वैदनी बुग्याल, औल बुग्याल, ग्वालदम, नन्दादेवी पशु विहार, दुगलवीटा आदि।
सभी मन्दिरों के पट (द्वार) लगभग मई के पहले सप्ताह में खुलते हैं और दीपावली को बंद हो जाते हैं। यात्रियों, श्रद्धालुओं के लिए आवश्यक सूचनाएं यह हैं कि हैजे का टीका अवश्य लगवा कर जाएं। समुन्दर तल से 6000 फीट या उस से अधिक ऊंचे स्थानों पर, पूरी बाजू का स्वेटर, ऊनी टोपी, मोजे और जूतों की आवश्कता पड़ती है। पका हुआ खाना और चाय, कॉफी आदि प्रत्येक स्थान पर मिल जाते हैं। पहाड़ी स्थानों पर स्वास्थ्य के लिए गर्म खाना ही खाएं, ठण्डा नहीं। आवश्यकतानुसार कुछ सूखे मेवे, बिस्कुट, नमकीन, सूखा दूध आदि अपने पास ही रखें। अपनी दवाइयां अपने पास रखें। इसके अतिरिक्त टार्च, मोमबत्ती, माचिस, लालटेन, थर्मस, गिलास, छाता, ओरव कोट, और खाना खाने के साधरण बर्तनों के अतिरिक्त कैमरा अवश्य साथ लें क्योंकि यात्रा में एक से एक दर्शनीय प्राकृतिक नाटकीय ढंग से दृश्य मिलते हैं। चमोली ज़िला ही सौंदर्य से मालामाल है। केवल चमोली के आस-पास के स्थान देखने के लिए लगभग एक सप्ताह की ज़रूरत होती है। यह क्षेत्र देखने को बनता है।
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