अपने सौन्दर्य व नृत्य से हेलन ने लाखों दर्शकों को बनाया दीवाना
फिल्म जगत में हेलन ऐसी नृत्यांगना, खलनायिका अभिनेत्री रहीं। जिसने दर्शकों को दीवाना ही नहीं बनाया, अपितु पागल किया। इसकी नृत्य में पूरी प्रवीणता रही तथा इसी पहचान से आज तक दर्शकों के मनमें एक अलग पहचान बनाए रखी है। इनका पूरा नाम हैलेन रिचर्डसन खान है। हेलन का जन्म 21 नवम्बर, 1939 को म्यामार (बर्मा) में हुआ। कहते दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति पश्चात परिवार मुम्बई आया। यहां मां ने नर्स का काम किया। घर की आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी। अत: हेलन ने विद्यालय छोडा और माता-पिता के साथ घर में रहना शुरू कर दिया। इसी मध्य इसकी पहचान प्रसिद्ध नर्तकी कूक्कू से हुई। उसकी हेलन परिवार से मित्रता हो गई। हेलेन की प्रतिभा को देखा और फिल्मी दुनिया में नृत्य करने का परामर्श दिया। एक दिन कूक्कू इसे अपने साथ ले गई। हेलन का नृत्य वहां बहुत अच्छा रहा। निर्देशक ने कहा एक दिन यह नृत्यांगना बनेगी। उसे आवारा और शविस्तान फिल्मों में काम मिला।
हेलन ने भरतनाट्यम, कथक, मणिपुरी एवं शास्त्रीय नृत्यों को सीख लिया था। इसका एक गाना एंव नृत्य मिस्टरजान फिल्म में लोगों को अच्छा लगा और यह लोगों में प्रिय हो गई। सन् 1950 में हूरे-ए-अरब फिल्म में इनका नृत्य देखने वाला था। यहां उसे पी.एन. आरोड़ा लाए थे। बाद अलिफलैला में काम मिला। यह सर्वाधिक सुंदर और नृत्य में इतनी पारंगत हो गई। जिस फिल्म में हेलन होती। दर्शक टूट पड़ते थे। नृत्य में हेलन ने उस समय की सभी नृत्य करने वाली अभिनेत्रियों को खूब पछाड़ा। सन् 1958 में शक्तिसांमत की फिल्म हावड़ाब्रिज में ओ.पी. नैय्यर के स्वरवद्ध गीत मेरा नाम चिन चिन चू में खूब छाई। फिल्म निशान में अभिनेता संजीव कुमार के साथ नायिका का काम भी किया। फिल्म अच्छी नहीं उतरी। बाद भूत बंगला में महमूद साथ आई और अभिनेता दारासिंह के साथ भी काम किया।
अधिकतर नायिका के रूप में अच्छी नहीं उतरी। आशा भौंसले के गानों पर नृत्य करती और गाने सफल होते। खलनायिका व नायिका के रूप में कई किरदार किये परन्तु उतनी सफलता नहीं मिली। सन् 1975 को फिल्म शोले में कैरियर चमका। आर.डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में गीत महबूबा-महबूबा बहुत विख्यात हुआ और लोग झूमने पर बाधित हुये। इसकी फिल्मों की गिनती करना कठिन है। लुटेरा, गुमनाम, शतरंज, नाइटइनलंदन, सीआईडी, डॉन, तीसरी मंजिल में गीत, नृत्यों का क्या कहना। बढ़ती आयु में पीछे नहीं रही। 1976 में बनी फिल्म लहू के दो रंग में हेलन फिल्मफेयर पुरस्कार से सहनायिका तौर पर सम्मानित हुई। लिखी जीवनकथा पर लेखक को पुरस्कार मिला। सत्तर के दशक में अभिनेत्रियों द्वारा नायिका, खलनायिका के किरदार निभाने और नृत्य शुरू कर दिए। हेलन पीछे रह गई। लेखक सलीम खान के कहने पर कुछ फिल्मों में काम किया और उससे विवाह कर लिया। इसने 500 के लगभग नृत्य कर अपनी पहचान और निराली कही जाने वाली भावभांगिमा से पहचान बनाई। इसकी अदाओं के अतिरिक्त वेशभूशा कम नहीं होती। कभी सिर पर मोर के पंख लगाकर मोरनी बनकर नाच करती। कभी शुतुरमर्ग के पंखों से हैरान करती। कपड़ों की अच्छी पहचान थी। कौन, कहां, कैसे पहनने हैं निर्णय स्वयं लेती। जब पर्दे पर आती तो लोग इसे गोल्डनगर्ल कहते। लगभग 700 फिल्मों में काम किया। पी.एन. आरोड़ा जो दो बच्चों के पिता थे। यह उनकी बिन व्याही पत्नी रही। इनके नृत्य से लाखों पैसे उन्होंने कमाए। हेलन ने कभी धैर्य एंव हौंसला नहीं छोड़ा। हेलन के जीवन में सलीम खान आए। उसकी पत्नी बनने पर मुराद पूरी हुई।
दर्शकों के स्थान पर पारिवारिक उत्तरादायित्वों पर ध्यान दिया। इसकी अच्छी फिल्में खानदान, आवारा, जाल, दिल अपना और, प्रीतपराई, यदूदी, प्रिंस, इंतकाम, वोकौन थी, गंगा जमुना, हम हिन्दुस्तानी विख्यात रही। गुमनाम, लुटेरा, नाइट इन लंदन, शतरंज, तीसरी मंजिल, इन्कार, धर्म, दोस्ताना, आयातूफान, अकेला कारवां, इंतकाम रहीं। कैबरे नृत्यों में इसकी बहुत निपुणता रही। 1996 में संजय लीला भंसाली की फिल्म खामोशी में काम किया और फिर वापिस आ गई। मोहब्बतें फिल्म का नृत्य देखने वाला था। इसके जीवन में एक समय ऐसा था। जब यह केवल 13 वर्ष की थी। एक समय का खान मिल जाये बड़ी बात थी। इनकी मुलाकात उस समय पी.एन. अरोड़ा से हुई और चांस मिला। हूरे अरब में अरबी डांस पर पहचान बनी। सोलो डांसर में पहचान बनाई और परिवार का पालन-पोषण करना धर्म अपना समझा।
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