क्रिकेट विश्व कप में भारत अंतिम बाधा क्यों नहीं लांघ सका ?

ऑस्ट्रेलिया एक ऐसी टीम है, जिसे आप एक इंच की गुंजाइश देंगे तो वह आप से एक मील छीन लेगी। आईसीसी 2023 पुरुष विश्व कप में भी उसने यही किया। प्रतियोगिता के पहले दो मैच हारने के बाद ऐसा लग रहा था कि बिखरी ऑस्ट्रेलिया नॉकआउट स्तर तक भी नहीं पहुंच पायेगी, लेकिन जैसे ही उसने अपनी पहली जीत दर्ज की, तो मानो जैसे शेर के मुंह खून लग गया हो। उसने अफगानिस्तान के विरुद्ध लीग मैच व दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सेमीफाइनल हारते हारते जीते और अपने जुझारूपन व कभी हार न मानने वाली प्रवृत्ति का बेहतरीन प्रदर्शन किया। ऑस्ट्रेलिया निश्चितरूप से बड़े मैचों की बड़ी टीम हैं, जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने पहले दो लीग मैच क्रमश: भारत व दक्षिण अफ्रीका से हारने के बावजूद उसने 16 नवम्बर, 2023 को कोलकाता के ईडन गार्डन में खेले गये सेमीफाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 3 विकेट से हराया और 19 नवम्बर, 2023 को अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में खेल गये फाइनल में फॉर्म-टीम भारत को 6 विकेट से पराजित करके अपने रिकॉर्ड का विस्तार करते हुए छठी बार विश्व कप अपने नाम किया। 
पिछले पांच माह के दौरान यह दूसरा आईसीसी फाइनल है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया ने भारत के हाथों ट्राफी आते आते छीन ली। इससे पहले जून 2023 में ओवल (इंग्लैंड) में खेले गये आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (डब्लूटीसी) के फाइनल में भी ऑस्ट्रेलिया ने भारत को हराया था। इन दोनों ही फाइनलों में ट्रेविस हेड ही भारत के लिए सिरदर्द बने। हेड ओवल व अहमदाबाद के फाइनलों के अतिरिक्त कोलकाता के सेमीफाइनल में भी मैन ऑफ द मैच थे। अहमदाबाद फाइनल से एक दिन पहले ऑस्ट्रेलिया के कप्तान पैट कम्मिंस ने कहा था, ‘खेल में इससे अधिक संतोषजनक कुछ नहीं होता कि शोर मचाती दर्शकों की बड़ी भीड़ को खामोश होते हुए देखा जाये और कल हमारे लिए यही उद्देश्य है।’ ऑस्ट्रेलिया ने यही कर दिखाया और नरेंद्र मोदी स्टेडियम में नीली जर्सी पहने एक लाख से अधिक दर्शक 100 ओवरों में से केवल 15 में ही शोर मचा सके, शेष 85 में उनके गले से आवाज़ न निकल सकी; मैच में ऑस्ट्रेलिया की इतनी मज़बूत पकड़ रही।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि आईसीसी 2023 पुरुष विश्व कप की सर्वश्रेष्ठ टीम भारत ही थी। भारतीय टीम ने फाइनल में जगह बनाने तक अपने सभी दस मैच शानदार व प्रभावी अंदाज़ में जीते थे। इसलिए यह सोचने की बात है कि वह अंतिम बाधा क्यों नहीं पार कर सकी? पैट कम्मिंस ने टॉस जीतने के बाद पहले बल्लेबाज़ी करने के लिए भारत को आमंत्रित किया। शायद उन्हें भारत बनाम पाकिस्तान का मैच याद था, जो स्टेडियम की इसी पिच पर खेला गया था। तब की तरह इस बार भी दिन में पिच धीमी खेली, बड़ा टारगेट सेट करना कठिन हो गया और रात में ओस आने से बल्लेबाज़ी करना आसान व गेंदबाज़ी करना मुश्किल हो गया। इस तरह मैच के निर्णय के संदर्भ में टॉस महत्वपूर्ण हो गया था। टॉस हारकर पहले बल्लेबाज़ी करना भारत के विरुद्ध गया। 
फाइनल से पहले सुनील गावस्कर ने दो महत्वपूर्ण बातें कही थीं। मैच का फैसला पहले दस ओवर तय कर देंगे। दूसरा यह कि अच्छी फील्डिंग पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। उनकी दोनों बातें सही साबित हुईं। भारतीय कप्तान रोहित शर्मा ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में तेज़तर्रार बल्लेबाज़ी आरंभ की, 31 गेंदों में 47 रन भी बनाये और भारत पुरुष विश्व कप के फाइनल में सबसे तेज़ 50 रन (6.3 ओवर) बनाने वाली टीम भी बनी, लेकिन इस दौरान ऑस्ट्रेलिया ने अपनी अच्छी फील्डिंग से कम से कम 15 रन बचाये भी। हालांकि रोहित ने तेज़ स्कोरिंग की, लेकिन शुरू के ओवरों में ही मालूम हो गया था कि पिच धीमी है, संभलकर खेलने पर ही बड़ा लक्ष्य रखा जा सकता था, इसलिए शुभन गिल के जल्दी आउट होने के बाद उन्हें अपनी शैली में परिवर्तन करना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं किया। भारत का स्कोर जब एक विकेट के नुकसान पर 76 रन था तो ट्रेविस हेड ने 1983 के विश्व कप फाइनल में कपिल देव की याद दिलाते हुए, अतिरिक्त डाइव के साथ, मैक्सवेल की गेंद पर रोहित का कैच लपका। अगले ओवर में कम्मिंस ने श्रेयस अय्यर को आउट कर दिया और पहले दस ओवर के भीतर ही भारत के 3 विकेट 81 रन पर गिर गये। इसके बाद तो भारत मैच में संघर्ष ही करता रहा।
विराट कोहली व के.एल. राहुल ने पारी को संभालने का प्रयास किया, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के पास हर बैटर के लिए विशिष्ट योजना थी और अच्छी फील्डिंग व पिच के धीमेपन से रन गति मंद हो गई। विराट ने एकदिवसीय में अपना 72वां अर्द्धशतक पूरा करने के बाद कम्मिंस की गेंद को अपने स्टंप्स पर चॉप कर लिया। शांत 66 रन की पारी खेलने के बाद राहुल को मिशेल स्टार्क की अति शानदार गेंद ने आउट कर दिया। भारत की पारी लड़खड़ायी तो हार्दिक पांड्या की कमी महसूस हुई। भारत निर्धारित 50 ओवर में सिर्फ 240 रन ही बना सका, जिसमें 11वें से 50वें ओवर तक सिर्फ 4 चौके थे, जबकि पहले दस ओवर में उसने 9 चौके व 3 छक्के लगाये गये थे। जसप्रीत बुमराह व मुहम्मद शमी ने ऑस्ट्रेलिया के पहले तीन बैटर्स को जल्दी आउट करके उम्मीद की हल्की सी किरण रोशन अवश्य की थी, लेकिन जब ओस आ गई, पिच बल्लेबाज़ी के लिए आसान हो गई तो ट्रेविस हेड के शतक (137) व मार्नस लबुशंगे के अर्द्धशतक (58 नाबाद) ने ऑस्ट्रेलिया को छठा विश्व कप दिला दिया। 
हेड ने अपनी पारी में 15 चौके व 4 छक्के लगाये, जोकि भारत की कुल पारी (13 चौके व 3 छक्के) से अधिक थे। इस विश्व कप से पहले भी भारत विश्व क्रिकेट की वित्तीय धुरी था और दर्शक संख्या में भी उसका प्रभावी योगदान था। इसके विपरीत इन बातों ने थोड़ा निराश किया कि स्टैंड्स में दूसरे देशों के समर्थक बहुत कम थे, दूसरी टीमों के अच्छे प्रदर्शन पर प्रशंसा कम थी। खेल की एक शानदार बात वास्तव में यह है कि इसमें दुनिया से मुकाबला दुश्मनी से नहीं ख़ुशी से होता है। इसलिए ऑस्ट्रेलिया को चैंपियन बनने पर दिल से मुबारकबाद और हमारे लिए 1983 व 2011 की सुबह फिर आयेगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर