केन्द्र की नीयत

अक्तूबर, 2021 में केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा पंजाब में सीमा सुरक्षा बल (बी.एस.एफ.) के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने की अधिसूचना जारी की गई थी, जिस पर उस समय पंजाब में  बड़ी प्रतिक्रिया हुई थी। भारतीय जनता पार्टी के अतिरिक्त प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियों ने इसका कड़ा विरोध किया था। उस समय कांग्रेस के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने बड़ी चिन्ता की अभिव्यक्ति करते हुए एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी। सीमा के भीतर बी.एस.एफ. के अधिकार क्षेत्र को 15 किलोमीटर से बढ़ा कर 50 किलोमीटर किया गया था। उस समय विधानसभा का विशेष अधिवेशन बुला कर इसे रद्द करने की मांग की गई थी तथा इसके साथ प्रत्येक सरकार द्वारा इस अधिसूचना को कानूनी पक्ष से भी चुनौती देने का फैसला लिया गया था। सभी पार्टियों ने एक स्वर में इस अधिसूचना को देश के संघीय ढांचे को खत्म करने वाला कदम कहा था तथा यह भी फैसला किया था कि इसका प्रत्येक स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए। इस संबंध में केन्द्रीय गृह मंत्री के साथ भी भेंटवार्ता की गई थी।
किस्मत का मारा पंजाब एक बहुत छोटे क्षेत्र में सीमित होकर रह गया है। इसकी दयनीय हालत यह है कि आज यह देश के विभाजन से पहले के पंजाब का सिर्फ 20 प्रतिशत ही रह गया है। समय-समय पर इसके साथ बड़े अन्याय होते रहे हैं। जो पंजाब विभाजन के बाद भारत में रह गया था, उसे भी समय-समय पर खंडित किया जाता रहा है। आज हालात का मारा यह छोटा-सा प्रदेश भी रसातल की तरफ जाते दिखाई दे रहा है। इसमें पंजाबियत की भावना खत्म होने के कगार पर है। देश की एकजुटता के नाम पर अक्सर केन्द्र सरकार द्वारा संविधान की संघवाद की भावना को चोट पहुंचाई जाती रही है। बी.एस.एफ. का मुख्य काम एक सीमित दायरे में रह कर सीमाओं की रक्षा करना होता है जबकि प्रदेश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से प्रदेश सरकार की होती है। प्रदेश की पुलिस ही कानून व्यवस्था से निपटती है। केन्द्रीय सुरक्षा एजेन्सी के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा कर प्रदेश तथा इसकी पुलिस के साथ भारी अन्याय करने का यत्न किया जा रहा है। पंजाब की पुलिस इतनी अक्षम नहीं है कि वह प्रदेश की भीतरी व्यवस्था को न सम्भाल सके। केन्द्र सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना में जो अधिकार दिए गए हैं, उनसे कम से कम प्रदेश के 10 ज़िले प्रभावित हुए हैं। लगभग आधे पंजाब में एक तरह से केन्द्रीय सुरक्षा एजेन्सी को अमन-कानून तथा गड़बड़ के नाम पर खुल कर विचरण करने का अधिकार होगा।
चाहे सर्वोच्च न्यायालय में दायर किये गये मामले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अदालत ने कहा है कि इससे पंजाब पुलिस की शक्ति कम नहीं होगी, परन्तु क्रियात्मक रूप में ऐसा होना निश्चित ही है। इस तरह यदि प्रत्यक्ष ढंग से नहीं तो टेढ़े ढंग से केन्द्र का इस छोटे-से प्रदेश पर लगभग कबज़ा ही हो जायेगा। केन्द्र ऐसा कुछ इसे यूनियन टैरेटरी (केन्द्र शासित प्रदेश) बनाने के बिना ही सम्भव बना लेगा। हम प्रदेश सरकार सहित सभी राजनीतिक दलों तथा पंजाबियत को समर्पित लोगों को यह अपील करते हैं कि उन्हें प्रदेश के साथ विचार-विमर्श किये बिना जारी की गई इस अधिसूचना का प्रत्येक स्तर पर विरोध करना चाहिए। कम से कम विपक्षी दलों को ज़रूर इस संबंध में एकजुट होकर एक संयुक्त मुहाज़ बना कर इसके विरुद्ध संघर्ष शुरू करना चाहिए, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि मज़बूत लामबंदी के बिना केन्द्र सरकार ऐसी अधिसूचना को वापिस नहीं लेगी। आगे से पंजाब को संविधान के अनुसार अपनी स्वतंत्र हस्ती को कायम रखने के लिए सचेत रूप में हर पक्ष से जद्दोजहद करने की ज़रूरत होगी, ताकि पहले ही मुसीबतों में घिरे प्रदेश का और नुकसान न हो सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द