पाकिस्तान की नकारात्मक नीति

26 नवम्बर, 2008 को देश में एक बड़ा दुखद घटनाक्रम घटित हुआ था, जिसका स्मरण आज भी ताज़ा है। पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादियों ने वहां की सेना की शह पर भारत की आर्थिक राजधानी कहे जाते मुम्बई महानगर पर हमला किया था। कुछ दिन तक जिस तरह वे बेख़ौफ होकर इस महानगर के महत्त्वपूर्ण स्थानों तथा बाज़ारों में गोलियों की बौछार करते रहे थे, उससे पूरा देश कांप उठा था। पाकिस्तान द्वारा भारत को दी गई यह एक बड़ी चुनौती थी। ऐसे कृत्यों को पाकिस्तान पहले भी कई बार अंजाम देता रहा है। यहां तक कि एक बार उसने भारत की संसद को भी निशाना बना कर देश की प्रभुसत्ता को चुनौती दी थी। यह आम प्रभाव बना रहा है कि वहां चाहे किसी सैनिक तानाशाह का शासन हो या लोगों द्वारा चुनी गई सरकारें प्रशासन चला रही हों, परन्तु वास्तविक सत्ता सेना के हाथ में ही रहती है। यदि वोटों द्वारा चुनी गई सरकारों ने अपनी सीमाओं को समझते हुये भारत की ओर दोस्ती तथा सहयोग का हाथ बढ़ाया भी तो तत्कालीन सैनिक कमांडरों ने अपनी तयशुदा नीति के तहत उनकी किसी भी बात को पूर्ण नहीं होने दिया। अपनी ऐसी नीतियों के कारण आज पाकिस्तान बुरी तरह से दुविधा में फंसा दिखाई दे रहे है। अ़फगानिस्तान में उसने तालिबान की पूरी सहायता की तथा उसे पुन: राज सत्ता दिलाने में भी सहायक हुआ, परन्तु अब अ़फगान सरकार ही उसके विरुद्ध हुई प्रतीत होती है। उसने पाकिस्तान के खैबर पख़्तूनख्वा क्षेत्र के अधिकतर पश्तून भाग पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया है। 
भारत में ब्रिटिश शासन के समय अ़फगानिस्तान की तत्कालीन सरकारों ने कभी भी उस डूरंड रेखा को स्वीकार नहीं किया था, जिसे अंग्रेज़ों ने भारत तथा अ़फगानिस्तान के मध्य सीमा बनाया था। अब तहरीक-ए-तालिबान अभिप्राय टी.टी.पी. ने अ़फगान तालिबान की शह पर न सिर्फ इस क्षेत्र में भी हिंसा फैलाई हुई है, अपितु वे पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ा ़खतरा बने दिखाई देते हैं। पाकिस्तान के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बलोचिस्तान में अपनी आज़ादी को लेकर कड़ा संघर्ष छिड़ा हुआ है, जहां बलोच कबीले का अपने ढंग-तरीकों से पाकिस्तानी सेना के साथ लगातार टकराव बना रहता है। राजनीतिक स्तर पर पाकिस्तान में बेहद उथल-पुथल होती दिखाई देती है। आर्थिक स्तर पर भी यह एक प्रकार से पूरी कंगाल होने के कगार पर पहुंच चुका है तथा सऊदी अरब और चीन से प्रतिदिन और बड़े ऋण लेने के यत्न कर रहा है। यहां इमरान खान लोकप्रिय नेता बन कर उभरे थे, परन्तु उन्होंने जिस ढंग से शासन किया, उसने पाकिस्तान की समस्याओं में और भी वृद्धि कर दी। देश के भीतर बेहद बेचैनी को जन्म दिया। आज महंगाई ने भी लोगों को बड़ी सीमा तक बेहाल कर दिया है। यहां तक कि इसके बड़े राजनीतिक नेता भी किसी न किसी आपसी राजनीतिक मुकाबले में भारत की प्रशंसा करने में भी हिचकिचाहट नहीं दिखा रहे। 
पाकिस्तान में अब 8 फरवरी, 2024 को चुनाव होने जा रहे हैं। नवाज़ शऱीफ जैसे बड़े नेता निर्वासन के बाद पुन: देश लौट आये हैं। उनके आने से राजनीतिक गलियारों में पुन: तेज़ हलचल शुरू हो गई है। नवाज़ शऱीफ एक सूझवान नेता हैं। उन्हें इस बात की पूरी तरह समझ है कि भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए बिना पाकिस्तान इस उलझन से बाहर नहीं निकल सकता, परन्तु यहां यह भी प्रश्न उठता है कि, वहां की सेना क्या राजनीतिक नेताओं तथा पार्टियों को अपने विचारों एवं नीतियों के अनुसार सरकार चलने की स्वीकृति देगी? ऐसा इस कारण सम्भव प्रतीत नहीं होता क्योंकि पिछले दिनों से मिल रहे समाचारों के अनुसार अब पाकिस्तान ने पूर्व सैनिकों को भी आतंकवादी संगठनों में शामिल करने की नीति अपना ली है, यह जहां भारत के लिए ़खतरे की और भी बड़ी घंटी है, वहीं इससे स्वयं पाकिस्तान को भी और अधिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। ऐसी नीतियों के जारी रहने से पाकिस्तान तथा समूचे दक्षिण एशिया के इस क्षेत्र के लिए और भी बड़ी तथा गम्भीर समस्याएं पैदा होंगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द