पर्यटकों के लिए घूमने का उत्तम स्थान  उज्बेकिस्तान


गुर-ए-अमीर व समरकंद के रेगिस्तान चौराहे से लेकर बुखारा की महराब, चोर मीनार व कलां मस्जिद तक उज्बेकिस्तान में इतना कुछ है, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि हम अपने ही वतन में हैं, लेकिन इस अंतर के साथ कि स्वच्छता पर कहीं अधिक बल है, होटल सस्ते व अच्छे हैं और बॉलीवुड फिल्मों के दीवाने लोग बहुत गर्मजोशी से पर्यटकों से मिलते हैं व उनके साथ सेल्फी लेने में गर्व महसूस करते हैं। उज्बेकिस्तान के लिए वीज़ा आसानी से मिल जाता है और दिल्ली से आने जाने का टिकट बेंगलुरु की यात्रा से भी सस्ता पड़ता है। इससे भी बढ़कर यह कि ताशकंद, समरकंद व बुखारा में घूमते हुए सहज ही अंदाज़ा हो जाता है कि उज्बेकिस्तान से भारत का रिश्ता पुराना व गहरा है। 
ताशकंद आकार में दिल्ली का चौथाई है। बहुत साफ-सुथरा, ट्रैफिक तेज़ व सभ्य और पैदल चलने वालों के अपने अधिकार व रास्ते। शहर का आर्किटेक्चर जाना पहचाना लगता है- सोवियत प्रेरित सोशलिस्ट आधुनिकता, जैसी कि भारत में नेहरु के दौर में थी और नवीन इमारतें पश्चिम व ग्लोबल पूंजीवादी आधुनिकता का मिश्रण हैं। केंद्रीय अमीर तैमूर चौराहे पर प्रभावी इमारतें हैं। शहर में जगह-जगह सुंदर गार्डेंस हैं और साथ ही शानदार थिएटर व म्यूजियम भी हैं, जिन्हें देखकर शहर के प्राचीन सभ्यता से जुड़ाव और वर्तमान में युवा राष्ट्र होने का एहसास आसानी से हो जाता है। उज्बेकिस्तान लगभग तीन दशक पहले तक सोवियत संघ का हिस्सा था। लेकिन ताशकंद ही नहीं पूरे उज्बेकिस्तान का असल बोध उसके मेट्रो व रेलों में होता है।
स्टेशन कला का कार्य हैं। लेकिन वह नागरिकों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले जीवित स्ट्रक्चर भी हैं। वह इतिहास व आर्किटेक्चर और कोस्मोनौट्स व शायरों का जश्न मनाते हैं। इन्हें देखने के लिए कोई चार्ज नहीं, कोई धक्कामुक्की नहीं। संस्कृति व सुंदरता हर किसी के लिए है, जिनका सार्वजनिक स्थल जश्न मनाते व प्रतिविम्बित करते हैं। ताशकंद के चोर्सू बाज़ार में संयोग से मेरी मुलाकात रुसी निर्देशक व एक्टर येवगेनी स्टाचकिन से हो गई और यह जानकर खुशी हुई कि उनका भारतीय सिनेमा से भी एक रिश्ता है। उनकी मां क्सेनिया रयाबिनकिना ने राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ (1970) में मरीना की भूमिका अदा की थी। यह मुलाकात यादगार रही। लेकिन यह इसलिए संभव हो सकी; क्योंकि उज्बेकिस्तान में हर कोई सुरक्षित महसूस करता है और सबका स्वागत करता है। ताशकंद से अलग स्थितियां इससे भी बेहतर हैं। समरकंद में जहां मेरा होमस्टे था, वह गुर-ए-मीर काम्प्लेक्स, जहां तैमूर दफन है, मुश्किल से 50मी के फासले पर था। मकबरे को दिखाते हुए मेरे गाइड ने अपने देश के संस्थापक तैमूर की क्रूरता पर पर्दा डालने का प्रयास नहीं किया, लेकिन साथ ही उसने तैमूर की उपलब्धियों को भी बयान किया। रूस से लगभग दिल्ली तक के साम्राज्य में सांस्कृतिक नवजागरण, व्यवहारिक सर्वदेशीयता। तैमूर का लिंक ही उज्बेकिस्तान को भारत से जोड़ता है। मुगल बादशाह बाबर तैमूर के वंशज थे। गुर-ए-मीर के अतिरिक्त रेगिस्तान चौराहे का वैभव भी देखने लायक है, जहां स्कॉलर व खगोलशास्त्री तिमुरिड उलग बेग और बाद के शासकों ने शानदार मदरसों का निर्माण कराया। बेग के सेक्सटैन्ट व ओबज़र्वेट्री भी देखने योग्य है और इस्लाम-पूर्व अफरासियाब साइट्स व म्यूजियम भी। अगर संगमरमर का ताजमहल प्रेम का स्मारक है, तो शानदार शेड्स ऑफ ब्लू व चौड़ा केंद्रीय चौराहा साइंटिफिक टेम्पर व तार्किकता का सबूत है। ऐतिहासिक बुखारा की साइट्स थोड़ा छोटी हैं, लेकिन उसकी सुंदरता में कोई कमी नहीं है। बुखारा में सुकून है, छोटी-छोटी झीले हैं और वाइन व फूड ़गज़ब के हैं। तीनों ही शहर नये भी हैं और जाने पहचाने भी। अकेले समरकंद में ही दर्जनों राष्ट्रीयता व देशजता हैं। 
यह सिल्क रूट व विशाल साम्राज्य की राजधानी की विरासत है। हर शहर का अपना पुलाव (बिरयानी) है और उज्बेक बियर से अच्छी कोई बियर नहीं है। उज्बेकिस्तान व भारत के आर्किटेक्चर, व्यंजन व संस्कृति और कपड़ों (विशेषकर उत्तर भारत) में बहुत समानताएं हैं। समोसा यहीं से भारत आया था। मकबरों, हेरिटेज साइट्स, बिरयानी, कोरमा, समोसा आदि की समानता का श्रेय तैमूर को ही जाता है। बाबर तैमूर के वंशज थे, जो दिल्ली आये और उनसे पहले फरगना, समरकंद व काबुल की ज़िम्मेदारी तैमूर के वंशजों पर ही थी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर