कीलादी साइट म्यूजियम जहां अतीत रोमांचित करता है

 

गुदुरै के दक्षिणपूर्व हाईवे पर शिवगंगा ज़िले की तरफ जाते हुए दोपहर की गर्मी में धूल उड़कर गोल गोल घूम रही थी और मृगतृष्णाओं ने सड़क को काल्पनिक आइनों में बदल दिया था। मात्र 13 किमी के सफर के बाद राईट टर्न लेते ही सड़क धूलभरी कच्ची सड़क में बदल गई। दोनों तरफ लहलहाते खेत हैं और यह सिलसिला वहां तक जारी रहता है, जहां गहरे गड्ढों को एस्बेस्टस की छतें गार्ड करती हैं। इस बंद रास्ते पर ही इतिहास ने पॉज लिया था और भारतीय आर्कियोलोजी ने दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। कीलादी में आपका स्वागत है। वैगई नदी के किनारे वनीय पृष्ठभूमि में कीलादी 110 एकड़ से अधिक में फैला हुआ है- लहलहाते खेत और नारियल के पेड़। खुदाई के नौ चक्रों के दौरान इस टीले ने उस विकसित सभ्यता की चीज़ें व साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं, जो छह से एक ईसा पूर्व अस्तित्व में थी। इसकी कलाकृतियों ने संगम युग को 300 वर्ष पीछे धकेल दिया है और इस अनुमान में संशोधन किया कि यह युग 3 ईसा पूर्व में आरंभ हुआ था। कीलादी की खुदाई में जो ऐतिहासिक दौलत मिली है, उससे स्पष्ट होता है कि गंगा घाटी में जो दूसरा शहरीकरण हुआ था वह तमिलनाडु में भी 6 ईसा पूर्व में हुआ था।
विशाल जियोमेट्रिक गड्ढे एक ऐसी सभ्यता के संकेत देते हैं, जिसमें ईंटों की विकसित इमारतें, पानी के पाइप, विस्तृत चमक वाले पॉट्स, खिलौनों के टुकड़े और ढाले गये सिक्के थे। इन सभी चीज़ों को बर्तनों के टूटे हुए टुकड़ों के ढेर के पास प्रदर्शित किया गया है। इनके बारे में समझाते हुए शेड की दीवारों पर पोस्टर लगे हैं, जिनसे यह भी मालूम होता है कि तमिल ब्राह्मी स्क्रिप्ट अनुमान से बहुत पहले की है। कीलादी के गहरे गड्ढों में वह सभ्यता पड़ी है जो कभी अपने चरम पर थी। इस ऐतिहासिक डेड एंड से मात्र एक किमी के फासले पर एक महलनुमा इमारत है, जो क्लासिक चेट्टीनाड शैली में बनी है। यह समतल मैदान में ऊपर को उठी हुई है और रात में वैगई के मुकुट में मोती की तरह चमकती है। इसकी इसी तरह से कल्पना की गई थी।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि कीलादी प्रोजेक्ट की वजह से ही दुनिया का ध्यान तमिल सभ्यता के इस पालने की ओर गया है। इसे प्रकाश में लाने के लिए ज़मीन को बहुत गहराई तक खोदना पड़ा था, जोकि आसान न था। इस खुदाई के महत्व को बरकरार रखने के उद्देश्य से यथास्थान या साईट पर ही म्यूजियम बनाना तय किया गया, खुदाई में निकलीं सभी कलाकृतियों के साथ। पटना के बिहार म्यूजियम से प्रेरित होकर दो एकड़ के कैंपस में अलग-अलग गैलरियां भी बनायी गई हैं। अधिकतर म्यूजियमों में सिर्फ प्रदर्शनीय वस्तुएं या दस्तावेज़ ही होते हैं, लेकिन यहां अनेक तत्वों के संगम को सुनिश्चित किया गया है जैसे कलाकृतियां जो वैज्ञानिकों द्वारा सही साबित की गई हैं, प्रतिकृतियां, मनोरंजन, इंटरएक्टिव गेम्स, सेंसरी अनुभव, सेल्फी स्पॉट्स, संगम साहित्य के संदर्भ आदि। यह संगम साहित्यिक संदर्भों के अध्ययन के लिए ‘जीवित’ लैब है कि जो कलाकृति डिसप्ले की गई है, उसका प्राचीन साहित्य से लिया गया उचित संदर्भ भी साथ दिया गया है।
लगभग 18 करोड़ की लागत से तैयार किये गये इस म्यूजियम का उद्घाटन इस साल मार्च में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने किया था। म्यूजियम रात में जगमगा उठता है और दशहरे में मैसूर पैलेस की याद दिलाता है। अब तक इसमें लगभग दस लाख पर्यटक आ चुके हैं। दरअसल, एक परिपक्व समाज अपने अतीत की जड़ों को तलाश करने का प्रयास करता है। तमिल समाज आराम के इस स्तर तक पहुंच गया है, इसलिए अतीत के अध्ययन का महत्व बढ़ गया है और राज्य सरकार भी खुदाई के लिए प्रति वर्ष 5 करोड़ रूपये का बजट निर्धारित कर रही है। आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के देशभर में 44 साईट म्यूजियम हैं जबकि तमिलनाडु ने 15 साईट म्यूजियम बनाये हैं जो खुदाई साईट के करीब हैं और इनमें पूम्पुहार का अंडरवाटर म्यूजियम भी शामिल है।
कीलादी में व्यापारों के आधार पर कलाकृतियों को श्रेणीबद्ध (लोहे के औज़ार, सिरेमिक्स, समुद्री व्यापर, कपड़ा बुनना, कृषि, जल प्रबंधन व जीवनशैली) किया गया है, जिससे मालूम होता है कि वहां काफी विकसित शहरी बसावट रही होगी। ज़ेवर व टूल्स के बीच में म्यूजियम में हाथी दांत के कंघे, सोने के आभूषण, सिक्के व मोहरें, कीमती व अर्द्ध-कीमती पत्थर आदि है, जो खामोशी के साथ संगम युग के कलाकारों की काबलियत के गुणगान कर रहे हैं और बता रहे हैं कि उस समय समुद्र पार से कारोबार भी खूब किया जाता था। एक केस में छोटा सा रोमन सिक्का भी चमक रहा है। यह छोटा ज़रूर है लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से इसकी कीमत किसी खज़ाने से कम नहीं है। म्यूजियम का कब्र वस्तु सेक्शन आपको आश्चर्यचकित कर देगा। अंत्येष्टि कलश व कंकाल उसी मुद्रा में डिसप्ले किये गये हैं, जिसमें उन्हें पाया गया था और साथ में अंतिम सफर पर विदा करते समय जो चावल, इन्द्रगोप मोती आदि अर्पित किये जाते थे वह भी रखे हैं।
व्यापार और मौत के बीच में जीवन भी था। इसलिए खिलौनों से लेकर किचन टूल्स तक सभी डिसप्ले पर हैं। कीलादी में एक प्राचीन सभ्यता आंखों के सामने ऐसी तस्वीर बनकर आती है जैसे यह कल की ही बात हो और इसका नशा उम्रभर के लिए चढ़ जाता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर