दोहा से आयी राहत, अभी सिर्फ  फांसी टली है, सज़ा नहीं...!

कतरी फर्स्ट इंस्टैंस अदालत ने भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों को फांसी की सज़ा सुनायी थी, जिसे 28 दिसम्बर, 2023 को कतर की अपील अदालत ने रद्द करते हुए कैद की सज़ा में बदल दिया है। इन्हें जेल में कितने वर्ष बिताने होंगे, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन उनके गले से फांसी का फंदा हट जाना निश्चित रूप से अच्छी व राहत प्रदान करने वाली खबर है। ये लोग एक प्राइवेट डिफेंस कम्पनी दहरा ग्लोबल, जो कि कतरी नौ सेना के साथ काम कर रही थी, में नौकरी कर रहे थे। इनके विरुद्ध लगे आरोपों को कतर या भारत सरकार ने कभी भी सार्वजनिक नहीं किया, लेकिन अंदेशा यह है कि इन पर इज़राइल के लिए जासूसी करने के आरोप थे। भारत सरकार ने कहा है कि वह इस मामले में कतरी अधिकारियों से सम्पर्क बराबर बनाये रखेगी और आरोपियों को सभी कानूनी व कांसुलर सहयोग प्रदान करती रहेगी। अनुमान यह है कि आरोपी अपनी जेल की अवधि भारत में पूरी कर सकते हैं। 
दरअसल, इज़राइल-हमास के बीच टकराव के कारण यह केस अधिक पेचीदा हो गया था। नई दिल्ली ने तेल अवीव से बहुत गहरे संबंध स्थापित कर लिए हैं, जबकि हमास के राजनीतिक नेता दोहा में रहते हैं। डर इस बात का था कि भारत के ये पूर्व नौसेना अधिकारी विस्तृत भू-राजनीतिक रस्साकशी में मोहरे बना दिए गये थे, लेकिन अब उन्हें सुनायी गई मौत की सज़ा को खत्म करने से इन चिंताओं में काफी कमी आयी है। बहरहाल, सवाल यह है कि अब आगे क्या होगा? इस लेख के लिखते समय भी अदालत के विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा थी, इसलिए यह स्पष्ट नहीं हैं कि इन आठ व्यक्तियों को कितने समय जेल में रहना होगा। तकनीकी दृष्टि से यह संभावना है कि इन आरोपियों को अपनी सज़ा काटने के लिए भारतीय जेलों में भेज दिया जाये। 
ऐसा प्रतीत होता है कि दुबई में कोप-28 शिखर सम्मेलन की साइडलाइंस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल सानी के बीच हुई मुलाकात से इस केस में कुछ मदद मिली होगी, लेकिन नई दिल्ली इस मामले में एकदम खामोश रही कि प्रधानमंत्री मोदी ने कतरी अमीर से नौसैनिकों का मुद्दा उठाया था या नहीं। वैसे कतर की ब्लैक-बॉक्स (गोपनीय) न्यायिक व्यवस्था को देखते हुए किसी भी बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता। नई दिल्ली का कहना है कि वह विस्तृत फैसले की प्रतीक्षा कर रही है और अगला कदम उठाने से पहले लीगल टीम व आरोपियों के परिवारों से गहन विचार-विमर्श कर रही है। 
बहरहाल, नई दिल्ली के लिए इससे भी बड़ी चिंता यह है कि कतर व पश्चिम एशिया से उसके संबंध के लिए इस सबका क्या अर्थ है। लगभग 8,00,000 भारतीय कतर में रहते व काम करते हैं और कतर में 6,000 से अधिक भारतीय कम्पनियां काम करती हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि अभी तक नई दिल्ली का इतना राजनयिक वज़न नहीं है कि वह ऐसे केसों को रोक सके, हालांकि इस क्षेत्र से उसका संबंध निरन्ंतर बढ़ता जा रहा है। जिस तरह हूती भारतीय क्रू वाले जहाज़ों को निशाना बना रहे हैं, वैसी ही पेचीदा घटनाएं आगे बढ़ सकती हैं। कहने का अर्थ यह है कि पूर्व नौसैनिकों के मृत्युदंड का कैद में बदल जाना राजनयिक जीत अवश्य है, लेकिन यह केस पश्चिम एशिया में भारत के लिए भविष्य की चुनौतियों का संकेत दे रहा है। हमारे लिए सबसे अच्छा यही रहेगा कि हम पश्चिम एशिया में अपने संबंधों का अतिरिक्त विस्तार करें। आई2यू2 (इंडिया, इज़राइल, यूएई, यूएस) अच्छा है, फिर भी अन्य क्षेत्रीय शक्तियों को अनदेखा करना ठीक नहीं है। क्षेत्रीय स्टेक्स में कतर अपनी हैसियत से अधिक हासिल करने का प्रयास करता है, जैसा कि उसके विरुद्ध 2017-21 के बीच सउदी अरब के नेतृत्व वाले ब्लॉकेड के दौरान उसके लचीलेपन से स्पष्ट है। कतर मुस्लिम संसार के अनेक विपक्षी व मिलिटेंट आंदोलनों के नेताओं की मेज़बानी भी करता है, जिनमें फिलिस्तीनी हमास, मुस्लिम ब्रदरहुड व तालिबान शामिल हैं। कतर में अमरीकी व तुर्की सैन्य बेस भी हैं और साथ ही ईरान से भी उसके वर्किंग संबंध हैं। सरकारी अल-जज़ीरा ब्रॉडकास्टर के रूप में दोहा खाड़ी क्षेत्र को अपनी राय से प्रभावित करता है। 
ज़ाहिर है, इस सबके पीछे दोहा की गैस-ईंधन वित्तीय ताकत है। कतरी गैस का सबसे ज़्यादा आयात भारत करता है। पश्चिम एशिया के अन्य देश भी भारत के लिए जीवन जटिल बना सकते हैं। गौरतलब है कि इस साल मार्च में शुरू हुई सुनवायी के सात सत्र बाद कतरी फर्स्ट इंस्टैंस अदालत ने 26 अक्तूबर, 2023 को भारत के आठ रिटायर्ड नौसेना कर्मियों को मौत की सज़ा सुनायी थी। इन भारतीय पूर्व नौसेना कर्मियों को कतरी इंटेलिजेंस एजेंसी स्टेट सिक्यूरिटी ब्यूरो ने 30 अगस्त, 2022 को गिरफ्तार किया था और महीनों तक इन सबको कालकोठरी में रखा गया। दोहा में भारतीय नौसेना से जुड़े व्यक्तियों के साथ ऐसा पहली बार हुआ है। इन अधिकारियों के परिजनों ने कतर के अमीर के समक्ष दया याचिकाएं दायर की थी। 28 दिसम्बर, 2023 को जब यह मामला कोर्ट ऑफ अपील में आया तो उस समय कतर में भारत के राजदूत विपुल, अन्य अधिकारी व आरोपियों के परिजन वहां मौजूद थे। 
इस केस की प्रक्रिया की गोपनीयता व संवेदनशीलता को मद्देनज़र रखते हुए कोई भी इसके बारे में खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है। चूंकि यह मामला एक तीसरे देश (इज़राइल) के लिए तथाकथित जासूसी से संबंधित है, इसलिए कतर व भारत दोनों इस बारे में विस्तृत सूचना देने में संकोच कर रहे हैं। पूरा ट्रायल भी बंद कमरे में किया गया। कमांडर पुर्नेंदु तिवारी, कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कैप्टन बिरेन्द्र कुमार वर्मा, कैप्टन नवतेज सिंह गिल, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और सेलर रागेश भारतीय नौ सेना से अवकाश ग्रहण करने के बाद अल दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज कम्पनी के लिए काम कर रहे थे, जिसका मुख्यालय ओमान में है। दोहा-स्थित यह कम्पनी कतरी नौसेना के साथ काम कर रही थी, स्किल्स अपग्रेडेशन के लिए। यह विशेष रूप से गोपनीय गुणों वाली इतालवी मिडगेट सबमरीन में सहयोग कर रही थी। कम्पनी कतरी सशस्त्र बलों को तकनीकी कंसल्टेंसी भी उपलब्ध करा रही थी। इस कम्पनी के सीईओ को भी हिरासत में लिया गया था, लेकिन उसे फीफा विश्व कप से पहले नवम्बर 2022 में रिहा कर दिया गया था। 
बहरहाल, इन अधिकारियों को फांसी के फंदे से बचाये जाने का अंदाज़ा पहले से ही प्रबल इसलिए भी था क्योंकि कतर में फांसी की सज़ा अवश्य है, लेकिन अपने पड़ोसी देशों की तरह सिर कलम करने की वहां परम्परा नहीं है। कतर में आख़िरी फांसी की सज़ा 2021 में एक नेपाली नागरिक को दी गई थी, जिसने एक कतरी की हत्या कर दी थी। इससे पहले 20 वर्ष तक कोई फांसी नहीं दी गई थी। इसलिए अक्तूबर 2023 में भी अनुमान यही था कि रिटायर्ड नौसेना कर्मियों को फांसी से बचाने का शुभ समाचार जल्द मिल जायेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर