बिलकिस बानो की त्रासदी

बिलकिस बानो के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार के सामूहिक दुष्कर्म के 11 आरोपियों की सज़ा माफ करने संबंधी आदेश को रद्द करने का फैसला दिया है। इसने जहां तत्कालीन गुजरात सरकार को शर्मसार किया है, नि:संदेह वहीं इस फैसले से केन्द्र सरकार को भी नमोशी का सामना करना पड़ा है। जब इन दोषियों को विगत वर्ष 15 अगस्त को रिहा किया गया था, तो रिहाई के बाद उनका गुजरात में पुष्पमालाएं पहनाकर सम्मान भी किया गया था। इस कारण देश भर में एक तरह से त़ूफान उठ खड़ा हुआ था, जिसे अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने कुछ सीमा तक शांत करने का यत्न किया है। दरअसल यह घटना इतनी भयावह थी, जिसे पढ़ते-सुनते आज भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं।
वर्ष 2002 गुजरात के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण तथा दुख भरा वर्ष था। इस समय के दौरान वहां हुये व्यापक स्तर पर साम्प्रदायिक दंगों में हज़ारों लोग मारे गये थे।  इस बड़ी त्रासदी के दौरान ही बिलकिस बानो का घटनाक्रम घटित हुआ था। इन दंगों के दौरान उस समय बिलकिस बानो मात्र 21 वर्ष की थी तथा पांच मास की गर्भवती भी थी। उसके साथ तब न सिर्फ सामूहिक दुष्कर्म ही किया गया था, अपितु उसकी तीन वर्ष की बेटी सहित उसके परिवार के 7 सदस्यों को उसके सामने ही नृशंसता से मार  दिया गया था। उसके बाद दिसम्बर, 2003 में सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्रीय एजेन्सी सी.बी.आई. को घटित इस मामले की जांच करने के लिए कहा था। केन्द्रीय एजेंसी की रिपोर्ट के बाद इन आरोपियों को उम्र भर कैद की सज़ा सुनाई गई थी। विगत वर्ष गुजरात सरकार ने स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर देश भर में मनाये जा रहे अमृतकाल के दौरान कैदियों को सज़ा में कुछ राहत देने की योजना का लाभ उठाते हुये इनकी सज़ा माफ करके इन्हें रिहा कर दिया था। इसके बाद बिलकिस बानो तथा कई अन्य लोगों द्वारा अनेक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं, जिनके आधार पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले के संबंध में पुन: सुनवाई की गई थी। 
इसके बाद ही सर्वोच्च न्यायालय की ओर से इन 11 आरोपियों को पुन: जेल में डालने का फैसला सुनाया गया है। नि:संदेह इस फैसले ने देश में कानून के राज की परिपक्वता को दर्शाया है। इस फैसले से सर्वोच्च न्यायालय में पुन: लोगों का विश्वास बंधा है। लगभग 22 वर्ष पहले घटित गोधरा कांड के बाद फैले भयावह साम्प्रदायिक दंगों को लेकर तत्कालीन राज्य सरकार पर भी उस समय अनेक तरह की उगंलियां उठाई गई थीं। इससे लोकतंत्र की चादर जिस तरह द़ागदार हुई थी, उसके द़ाग दो दशक व्यतीत हो जाने के बाद भी पूरी तरह मिटाने तो शायद सम्भव नहीं होंगे परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने व्यापक स्तर पर लोगों को एक राहत ज़रूर दी है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द